Bahraich Wolf Attack: सुनहरी आंखों वाले भेड़िए शिकार से पहले कुछ भी खाने के लिए तैयार रहते हैं. हालांकि क्या, कब और कैसे खाना है, ये फैसला 'बाहुबली' करता है. हां, वही होता है भेड़ियों का लीडर. काली आंखों वाला वो अल्फा नर बेहद खूंखार होता है. इनके समूह का एक रूल होता है और उसी के हिसाब से सभी चलते हैं. लीडर तय करता है कि कौन कितना और कहां खाएगा. अगर किसी ने विरोध किया तो उसे लीडर के गुस्से का सामना करना पड़ता है. जब से यूपी के बहराइच में आदमखोर भेड़ियों ने 8 लोगों की जान ली है, इनकी काफी चर्चा हो रही है. इसमें भी एक लीडर है.


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कभी-कभार कोई गुस्सैल सुनहरी आंखों वाला भेड़िया मरने मारने पर उतारू हो जाता है. हालांकि जब नर भेड़िया डांटना शुरू करता है तो इसे अपनी दुम नीचे करनी ही पड़ती है. लीडर को इस तरह चुनौती देने का मतलब होता है कि वह खुद लीडर बनना चाहता है. आखिर में उसे भागना पड़ता है. ऐसे में एक सवाल उठता है कि जब आराम से भोजन का जुगाड़ हो जाता है तो कोई भेड़िया लीडर बनने के लिए क्यों उतावला रहता है?


सब खेल 'पावर' का है


वैसे तो भेड़िए झुंड में रहते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अकेले नई राह पर निकल पड़ते हैं. एक्सपर्ट इसे dispersion (प्रसार) कहते हैं. इसका मकसद समूह के भीतर आपसी प्रजनन को कम करना होता है. इससे कुछ साहसी युवाओं को विशेष अधिकार मिल जाता है जो आमतौर पर अल्फा नरों के पास ही होता है. हां, वो है प्रजनन का अधिकार. ये साथी ढूंढकर संबंध बनाते हैं. 


परिवार बढ़ाने वाला कपल


भेड़ियों के झुंड में एक जटिल सामाजिक तानाबाना होता है. इसमें भी माता-पिता, बच्चे, भाई-बहन, चाची, चाचा वाला बड़ा परिवार होता है. बूढ़े भेड़ियों को देखभाल की जरूरत होती है. बच्चों को ट्रेन्ड करने की जरूरत होती है और युवा जो जवान हो रहे होते हैं उन्हें शिकार करने के गुर सिखाने होते हैं. पूरी व्यवस्था और तालमेल बनाने की जिम्मेदारी अल्फा पर होती है. ये प्रजनन करने वाला कपल होता है. सामान्य रूप से एक झुंड में केवल एक अल्फा कपल होता है. अगर इनकी मौत होती है तो पूरा परिवार बिखर जाता है. कहते हैं कि कपल में अगर किसी की हत्या हो जाती है तो दूसरा साथी बदला लेने पूरे झुंड के साथ आता है. यूपी के बहराइच में भी कुछ ऐसे दावे किए जा रहे हैं. अल्फा के बाद दूसरे नंबर के भेड़ियों को बीटा कहा जाता है. आखिर में ओमेगा होता है. बीच की स्थितियां काफी अस्थिर होती हैं.


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झुंड में क्यों रहते हैं भेड़िए


दरअसल, झुंड में रहने से न केवल बच्चों को पालना और खिलाना आसान होता है बल्कि शिकार में सहयोग करना और इलाके की रक्षा भी हो जाती है. झुंड के सदस्यों के बीच भावनात्मक संबंध भी मजबूत होते हैं. ये भेड़िये एक-दूसरे की व्यक्तिगत रूप से देखभाल करते हैं. ये दोस्ती समझते हैं और अपने बीमार या घायल साथी की देखभाल करते हैं. जब वे झुंड के किसी साथी को खो देते हैं तो ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि वे उसका शोक मनाते हैं. 


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लोन वुल्फ क्या होता है?


हां, हम 'लोन वुल्फ' खबरों में सुनते रहे हैं. दरअसल, अकेले रहने वाले भेड़िए को कठोर व्यक्तिवादी, समझौता न करने वाला और स्वतंत्र माना जाता है. वह अपने रास्ते खुद बनाने के लिए प्रेरित होता है. शोध में पता चलता है कि बहुत कम भेड़िए ऐसा करना चाहते हैं. अकेला भेड़िया भी किसी की खोज में होता है. वह है साथी दूसरा भेड़िया, जिसके साथ वह अपनी फैमिली बनाएगा. (फोटो- lexica AI)


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