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DNA with Sudhir Chaudhary: पूरा उत्तर भारत पिछले कई दिनों से हीट वेव की गिरफ्त में है. अप्रैल के अंतिम हफ्ते में ही तापमान 45 डिग्री पार कर गया. वैसे आज दिल्ली समेत उत्तरी हिस्सों को गर्मी से थोड़ी राहत मिली लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान अब भी गर्मी से तप रहे हैं और इतनी गर्मी के बीच अगर बिजली भी चली जाए तो दिक्कत कई गुना बढ़ जाती है. देश के कई हिस्से भीषण गर्मी के बीच घंटों की बिजली कटौती झेल रहे हैं. बिजली कटौती के पीछे की असली वजह क्या है? क्या वाकई देश में कोयले की कमी है? आइए बत्ती गुल के कारण को समझते हैं. पहले बात उन राज्यों की जहां बिजली कटौती पर सवाल खड़े हो रहे हैं.


फ्री बिजली वाले पंजाब में भारी कटौती


राजस्थान के शहरी इलाकों में 3 घंटे तक बिजली काटी जा रही है. राज्य में गर्मियों में बिजली की मांग 31 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है. महत्वपूर्ण बात ये है कि राजस्थान में गहलोत सरकार बिजली पर अब भी छूट देती है, हर महीने जो लोग 100 यूनिट तक बिजली खर्च करते हैं उनकी 50 यूनिट बिजली मुफ्त हो जाती है. पंजाब में भी 2 घंटे तक की बिजली कटौती की जा रही है. यहां गर्मी में बिजली की मांग 8 हजार मेगावॉट तक पहुंच चुकी है. जबकि सप्लाई 5 हजार मेगावॉट है, ये वही पंजाब है जहां आम आदमी पार्टी की सरकार के आने के बाद से हर घर को हर महीने 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही है.


इन राज्यों में भी भरपूर काटी जा रही बिजली


बिहार का भी बुरा हाल है, वहां शहरों में 2 घंटे तो गांवों में 2-3 घंटे तक बिजली गुल रहती है. वहीं उत्तर प्रदेश में भी शहरों में 2-3 घंटे बिजली कट रही है, गर्मी में यहां भी बिजली की मांग 23 हजार मेगावॉट हो गई है जबकि सप्लाई है सिर्फ 20 हजार मेगावॉट. हिमाचल प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों में 4-6 घंटे तक बिजली कट रही है. हरियाणा में हर रोज 6-8 घंटे तक बिजली काटी जा रही है. हरियाणा सरकार भी किसानों को सिर्फ 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली देती है.


वोटबैंक के लिए हो रही भारी छूट


राज्य सरकारें जनता को बिजली पर छूट देकर भले ही अपना वोटबैंक देख रही हों लेकिन ये छूट सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही है. अगर 2019 के आंकड़ों को देखा जाए तो भारत में राज्य सरकारों ने बिजली पर जनता को 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपए की छूट दी, जिसका तीन चौथाई हिस्सा यानी 82 हजार 793 करोड़ रुपए किसानों को गया. ये बात आप इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि भारत का शिक्षा बजट कुल 1 लाख 4 हजार करोड़ रुपए का है. यानी देश के शिक्षा बजट से भी ज्यादा बजट फ्री बिजली का है जो तमाम राज्य सरकारें वोटबैंक के लिए दे रही हैं.


अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर देश में अचानक बिजली की कमी कैसे हो गई है? गर्मियों में अमूमन बिजली की मांग बढ़ जाती है, लेकिन यहां तो अप्रैल महीने में ही बिजली कटौती की नौबत आ गई. ये मुद्दा बिजली की कमी से ज्यादा कोयला बिल के भुगतान का है. बिजली कटौती का ये संकट ज्यादातर राज्यों का खुद का खड़ा किया गया संकट है. आंकड़ों को देखें तो वक्त पर बिल न भरने की राज्यों की बुरी आदत का पता चलता है, इस आदत का नुकसान आम आदमी उठा रहा है.


इसी साल 18 अप्रैल तक के केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार -


  • महाराष्ट्र ने कोयला कंपनियों को 2 हजार 608 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है.

  • दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है जो जिसे 1 हजार 509 करोड़ रुपए का बिल भरना बाकी है.

  • तीसरे नंबर पर है झारखंड जिसके सिर पर कोयला कंपनियों का 1 हजार 18 करोड़ रुपया बकाया है.

  • इसके बाद आता है तमिलनाडु, जिसे कोयला कंपनियों का करीब 824 करोड़ रुपया भरना है.

  • मध्य प्रदेश सरकार ने भी कोयला कंपनियों के करीब 532 करोड़ रुपए का बिल नहीं चुकाया है.


वहीं राजस्थान के सिर करीब 430 करोड़ रुपए का बिल है तो आंध्र प्रदेश को 271 करोड़ और उत्तर प्रदेश को करीब 214 करोड़ रुपए चुकाने हैं. छत्तीसगढ़ को भी कोयला कंपनियों का करीब 203 करोड़ रुपए का बिल और कर्नाटक को करीब 135 करोड़ रुपए का बिल भरना है. कोयला कंपनियां राज्यों के बिजली घरों को कोयला सप्लाई करती हैं और सरकारों को उनका पैसा वक्त रहते चुकाना चाहिए. लेकिन ये आँकड़े बता रहे हैं कि ऐसा हो नहीं रहा है. 


इन 4 Points में समझें


1- गर्मियों में बिजली की डिमांड बढ़ती है तो राज्यों को उसके लिए अतिरिक्त बिजली खरीदने की जरूरत पड़ती है.


2- कोयला कंपनियों का बिल भरना अक्सर उनके एजेंडे में नहीं होता है, इसीलिए वो जितना कोयला मिल रहा है उसी में संतोष कर लेते हैं, यानि उनके बिजली घर बढ़ी डिमांड के हिसाब से अतिरिक्त बिजली बना नहीं पाते.


3- राज्यों के पास ग्रिड से अतिरिक्त बिजली खरीदने का विकल्प होता है, वो 12 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर बढ़ी हुई मांग की पूर्ति कर सकते हैं. लेकिन राज्य ऐसा नहीं करते.


4- इसके बाद बिजली कटौती का मैप तैयार करते हैं, ये तय किया जाता है कि किन इलाकों में कितने घंटे बिजली काट कर मौजूदा स्टॉक में काम चला लिया जाए.


कुछ ऐसे समझें 'कटौती का कागजी खेल'


यहां बिजली कटौती का खेल समझने की जरूरत है. उत्तर प्रदेश के गांवों में करीब 3 घंटे बिजली कटौती की जा रही है. इस आंकड़े को देख कर ये समझ सकते हैं आप कि 24 घंटे में से सिर्फ 3 घंटे बिजली कट रही है यानी गांवों में 22 घंटे बिजली आ रही है. लेकिन ऐसा नहीं है, यूपी के बिजली विभाग ने गांवों को 15 घंटे बिजली देने का ही वादा किया था. इसमें सरकारी टर्म इस्तेमाल किया गया है -- 'रोस्टर के अनुरूप' यानी सरकारी रोस्टर में गांवों को 15 घंटे ही बिजली देने की बात है और 3 घंटे की कटौती के बाद वहां 24 घंटे में 12 घंटे बिजली दी जा रही है. इसी तरह शहरों में रोस्टर के मुताबिक 24 घंटे में से 21 घंटे 30 मिनट बिजली देने का वादा था लेकिन 19 घंटे बिजली दी जा रही है, इसे यहां भी इस तरह से 3 घंटे की कटौती.


क्या देश में कोयले की कमी है? 


देश के बिजली घरों में कोयला जला कर बिजली बनाई जाती है. केंद्र सरकार का कहना है कि फिलहाल देश में कोयले का पूरा स्टॉक मौजूद है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त 2 करोड़ 10 लाख टन कोयला रिजर्व स्टॉक में रखा है. ये वो स्टॉक है जिसका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर किया जाता है. दिक्कत उन बिजली घरों को होती है जो रेलवे कॉरिडोर से दूर हैं औऱ वहां तक कोयला पहुंचने में कई बार ज्यादा वक्त लग जाता है.


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