कौन थे मेजर शैतान सिंह, जिनके वॉर मेमोरियल के अपमान का कांग्रेस ने लगाया आरोप?
भारत माता के सपूत शहीद मेजर शैतान सिंह को 1962 के `रेजांग-ला युद्ध` का महानायक माना जाता है. इन्हीं की याद में लद्दाख में एक स्मारक बनाया गया था. अब कांग्रेस बीजेपी पर आरोप लगा रही है कि वो इस स्मारक को तोड़कर शहीदों का अपमान कर रही है.
Kharge Targets Modi Govt: चीन से लगी सीमा पर साल 1962 में शहीद हुए मेजर शैतान सिंह के सम्मान में लद्दाख में एक स्मारक बनाया गया था जिसे तोड़े जाने की खबर है. इस मामले के सामने आने के बाद कांग्रेस ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमला बोला दिया. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी शहीदों का अपमान कर रही है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि स्मारक तोड़ना काफी निराशाजनक है. आइए जानते हैं आखिर कौन थे शहीद मेजर शैतान सिंह? जिन्हें लेकर कांग्रेस सत्ताधारी बीजेपी पर हमलावर हो गई है.
1962 के असली हीरो हैं शहीद मेजर शैतान सिंह
भारत माता के सपूत शहीद मेजर शैतान सिंह को 1962 के 'रेजांग-ला युद्ध' का महानायक माना जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मेजर शैतान सिंह का जन्म 01 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के फलोदी जिले में हुआ था. अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करके मेजर शैतान सिंह जोधपुर रियासत की राज्य बल में शामिल हो गए. इसके बाद जोधपुर रियासत का विलय हुआ और कुमाऊं रेजिमेंट में मेजर का ट्रांसफर कर दिया गया. मेजर शैतान सिंह नागा हिल्स और गोवा विलय जैसे अहम ऑपरेशन्स का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन साल 1962 में इनकी बटालियन को चुशूल सेक्टर में तैनात किया गया था.
चीन की चालबाजी और मेजर की वीरता
गौरतलब है कि 18 नवंबर 1962 को चीन ने सुबह-सवेरे रेजांग-ला रेंज पोस्ट पर हमला कर दिया. इस दौरान पोस्ट की सुरक्षा मेजर शैतान सिंह और उनकी बटालियन के जिम्मे थी. सामने से कई हमले हुए लेकिन चीनी सेना भारत का किला भेद नहीं पाई. तमाम असफल हमलों के बाद चीनी सैनिकों ने पीछे से वार किया. भारतीय नौजवान चीनी हमलों को रोकते रहे लेकिन चीनी सेना हावी होती गई. चारों ओर चलती गोलियां और बम के धमाकों के बीच मेजर शैतान सिंह अन्य पोस्ट के साथ सामंजस्य बनाने के लिए दौड़ रहे थे, ताकि चीनी हमलों का करारा जवाब दिया जाए. बिना किसी सुरक्षा के मेजर शैतान सिंह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट तक चलते रहें. इस दौरान उन्होंने कई चीनी गोलियां अपनी छाती पर ले लीं. वो बहुत बुरी तरह से जख्मी हो गए और अंत में चीन से लोहा लेते रहे. वो जंग के मैदान में शहीद हो गए. मेजर की शूरवीरता के लिए साल 1963 में उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.