SAD in Punjab: पंजाब की राजनीति लगातार करवट ले रही है. कभी पंजाब की सबसे बड़ी सियासी ताकत रहा शिरोमणी अकाली दल लगातार अपनी जमीन खो रहा है. विधानसभा और लोकसभा में खराब प्रदर्शन के बाद शिरोमणी अकाली दल बड़ी टूट की तरफ बढ़ रहा है. और इसकी वजह बताई जा रही है पार्टी के भीतर मचे अंतर्कलह को. 


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देश का दूसरा सबसे पुराना राजनीतिक दल, पंथ की राजनीति जिसकी पहचान है, जो लंबे वक्त तक पंजाब की सत्ता में प्रधान रहा है लेकिन अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या पंजाब की सत्ता से शिरोमणि अकाली दल का नामो निशान खत्म हो रहा है.


विधानसभा के बाद लोकसभा में शर्मनाक प्रदर्शन


पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल का प्रदर्शन खराब रहा, चुनाव दर चुनाव हार के बाद पार्टी के भीतर ही मौजूदा अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं और उनके खुद के अपने अब उन्हें कुर्सी छोड़ने की नसीहत दे रहे हैं.


SAD नेता हरिंदरपाल सिंह चंदूमाजरा ने कहा, 'क्या उन्हें त्याग की भावना नहीं दिखानी चाहिए और अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देना चाहिए..झुंडन कमेटी की रिपोर्ट थी कि क्या वरिष्ठ नेतृत्व में बदलाव होना चाहिए, लेकिन उन्होंने झुंडन कमेटी की रिपोर्ट लागू नहीं की.'


बादल परिवार के खिलाफ बागियों ने खोला मोर्चा


अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल ने चंडीगढ़ में पार्टी के जिला अध्यक्षों के साथ बैठक के साथ बैठक की तो बागी नेताओं के गुट ने अलग से जालंधर में बैठक कर बादल परिवार के खिलाफ मोर्चा खोला दिया है.


बादल परिवार के खिलाफ बगावत के सुर एक दो नहीं है. बल्कि शिकवों की लंबी कतार है. सुखबीर बादल के साथ साथ उनकी पत्नी हरसिमरत कौर को भी पार्टी नेता कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.


SAD नेता चरणजीत सिंह बरार ने कहा, 'हम बठिंडा के नेता नहीं हैं, हम पंजाब के नेता हैं, जो एक सीट जीतकर पार्टी जीती और बाकी 10 सीटों पर जमानत जब्त हो गई, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? हम बागी नहीं हैं, हम शिरोमणि अकाली दल के भीतर काम करते हैं... मैं सुखबीर सिंह बादल से विनती करता हूं कि पार्टी मत तोड़ो.'


हालांकि सुखबीर बादल खेमे की तरफ से दावा किया जा रहा है कि 117 नेताओं में सिर्फ 5 नेता ही बादल परिवार के खिलाफ है और बगावत से निपटने के लिए बागियों के साथ संवाद की बजाय  सीधे कार्रवाई की चेतावनी दी जा रही है.


वहीं SAD नेता दिलजीत सिंह चीमा ने कहा, 'कार्यसमिति ने पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को फिर से विस्तारित करने के लिए शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष को सभी अधिकार दिए हैं. अगर कोई पार्टी मंच से बाहर जाकर अनुशासन तोड़ता है तो यह गलत है.' 


उपचुनाव से SAD की तौबा-तौबा


अंदरूनी कलह से जूझ रही अकाली दल की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जालधंर पश्चिम सीट उपचुनाव से अकाली दल ने पैर पीछे खींच लिए हैं और सहयोगी बीएसपी को समर्थन देने का एलान किया है. क्योंकि हालिया चुनावों के नतीज़े अकाली दल को आगे बढ़ने का भरोसा नहीं दे पा रहे हैं.


दरअसल, लोकसभा चुनाव में पंजाब की 13 सीट में से अकाली दल सिर्फ 1 सीट जीत पाई. ये सीट बठिंडा से हरसिमरत कौर को मिली. वहीं 2022 विधानसभा चुनाव में अकाली दल 117 सीट में से सिर्फ 3 सीट जीत पाया था.


यानी हर मोर्चे पर शिरोमणि अकाली दल पिछड़ रही है. सत्ता में लौटने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. फैसले बादल परिवार तक सिमटे हुए हैं, कई नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस, आप और बीजेपी में शामिल हो रहे हैं और बागी सुर जिस तरह बुलंद हो रहे हैं. वो अकाली दल में बड़ी टूट का इशारा कर रहे हैं.


SAD के अस्तित्व पर कैसे आया खतरा?


विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में क्लीन स्वीप किया तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बड़ी ताकत बनकर उभरी, बीजेपी भले ही पंजाब में खाता ना खोल पाई हो लेकिन वोट शेयर के मामले में वो अकाली दल से आगे निकल गई है. लोकसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस को 26.30 फीसदी वोट शेयर मिले. AAP को 26.02 फीसदी वोट मिले. BJP को 18.56 फीसदी वोट मिले तो वहीं अकाली दल को सिर्फ 13.42 फीसदी वोट मिले.