ZEE News Time Machine: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में आज हम आपको ले चल रहे हैं साल 1951 में जिसमें हम आपको बताएंगे देश के पहले सफेद बाघ के बारे में जिसे VEGETARIAN खाना भी पसंद था, जी हां, देश का पहला सफेद शाकाहारी बाघ. इसके अलावा आपको बताएंगे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनकी लेडी पायलट के बारे में. इसके अलावा 1951 का एक सियासी अंधड़ भी आपको उठता नजर आएगा जिसमें सोमनाथ के शिवलिंग के मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू खफा हो गए थे राजेंद्र प्रसाद से. TIME MACHINE में आपको स्वदेशी साइकिल और देश के पहले वोटर के बारे में भी बताएंगे. आपको दिल्ली के एक पॉश मार्केट का पाकिस्तानी कनेक्शन भी पता चलेगा, आखिर किस पाकिस्तानी के नाम पर उस बाजार का नाम रखा गया. आइये आपको बताते हैं 1951 की दस अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.


रीवा में मिला सफेद बाघ 'मोहन


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मध्यप्रदेश के रीवा की वजह से, भारत का नाम पूरी दुनिया में छाया, जिसकी वजह बना white tiger.. भारत में पहला white tiger 1951 में पाया गया. रीवा राजघराने के राजा मार्तंड को शिकार का बहुत शौक था. 1951 में जब राजा मार्तंड शिकार के लिए रीवा से लगभग 27 किमी दूर मुकुंदपुर इलाके में गए तो उन्हें बाघ का एक छोटा सा बच्चा नजर आया. ये शावक बमुश्किल 9 महीने का रहा होगा. राजा मार्तंड ने बाघ के इस बच्चे पर अपनी बंदूक तान दी. वो गोली चलाने ही वाले थे कि फिर अचानक उनका मन बदल गया. उस नन्हे से जीव को देखने के बाद राजा मार्तंड ने उसे मारने की बजाय पालने का मन बना लिया. वो उसे अपने साथ राजभवन ले आए. ये बाघ रीवा राजघराने का हिस्सा बन गया और इसका नाम रखा गया मोहन. दरअसल मोहन कोई ऐसा वैसा बाघ नहीं था. ये दुनिया का पहला सफेद बाघ था. 60 और 70 के दशक में मोहन की वजह से रीवा की रियासत, सफेद बाघों की धरती कही जाने लगी. 19 साल में मोहन ने कई बाघिनों के साथ मिलकर 34 शावकों को जन्म दिया जिसमें से 21 सफेद थे. मोहन के नाम पर मध्यप्रदेश सरकार ने डाक टिकट भी जारी की, मोहन की शोहरत इस कदर थी कि लोगों की खास फरमाइश पर इसे अमेरिका और इग्लैंड जैसे देशों के टूर पर भी ले जाया गया.


VIP को प्लेन में उड़ाने वाली पहली महिला कमर्शियल पायलट


21वीं सदी में आज महिलाएं देश दुनिया से लेकर अंतरिक्ष तक कि यात्राएं कर रही हैं. वो जंगी जहाजों से लेकर फाइटर जेट, स्पोर्ट बाइक्स और रेसिंग कर तक चला रही हैं. लेकिन 50 के दशक में ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता था. महिलाओं के लिए अकेले बाहर निकलना तक मुश्किल था. लेकिन प्रेम माथुर की सोच अलग थी, कम मौकों और सामाजिक चुनौतियों के बावजूद प्रेम, भारत की पहली महिला कमर्शियल पायलट बन गईं. 1924 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मी प्रेम माथुर बचपन से ही आसमान में उड़ना चाहती थीं. लेकिन उनकी इस ख्वाहिश को पंख दिए उनके भाई और  Delhi Flying Club के कैप्टन अटल ने. अटल, प्रेम को डराने के इरादे से राइड पर ले गये थे. इस दौरान प्रेम को डराने के लिए उन्होंने कई हवाई करतब दिखाए. लेकिन डर की जगह प्रेम को काफी मजा आया. ये देख उनके भाई ने प्रेम से कहा कि वो भी पायलट बन सकती है. बाद में प्रेम माथुर को डेकन एयरवेज, हैदराबाद के निजाम की एयरलाइन से सबसे पहले ऑफर मिला. प्रेम से हवाईजहाज उड़ाने से जुड़े कई सवाल किए गए और उन सब में वो पास भी हो गईं. बतौर कमर्शियल पायलट प्रेम की ये पहली नौकरी थी, डेकेन एयरवेज में काम करने के दौरान प्रेम ने इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री और लेडी माउंटबैटन जैसे वीआईपी लोगों को भी उनकी मंजिल तक पहुंचाया. इस तरह भारत भी किसी महिला पायलट को नौकरी देने वाला पहला देश बन गया.


जब बना देश का पहला IIT


मैथ्स से पढ़ाई करने वाले लगभग 90 प्रतिशत छात्रों का सपना होता है कि वो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला ले सकें और स्टूडेंट्स की इस विश लिस्ट में सबसे ऊपर रहता है IIT खड़गपुर​.  दुनिया के टॉप एजुकेशनल संस्थानों में शुमार IIT खड़गपुर​ की स्थापना 1951 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बंगाल में की थी. वर्तमान परिसर का लेआउट और इमारतों का डिजाइन एक स्विस वास्तुकार, वर्नर एम. मोजर के मार्गदर्शन में किया गया था.


एशिया में बजा दिल्ली का डंका


गणतंत्र बनने के बाद एक ऐसा स्वर्णिम अवसर आया जब भारत को First Asian Games होस्ट करने का मौका मिला. 4 मार्च 1951 को Major Dhyan Chand National Stadium में देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने एशियन खेलों का उद्घाटन किया गया. Asian Games में 11 देशों के 489 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था. इसमें Afghanistan, Burma Indonesia, Iran, Japan, Nepal Singapore और Thailand जैसे देश शामिल थे. हालांकि इन खेलों में भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने हिस्सा नहीं लिया था. उस वक्त भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद चरम पर था. दोनों एक युद्व भी लड़ चुके थे. पाकिस्तान ने इस खेल आयोजन में शामिल न होने का फैसला लिया. Asian Games में 24 गोल्ड मेडल जीतकर जापान ने अपनी धाक जमाई थी, तो वहीं भारत के खाते में भी 15 गोल्ड मेडल आए थे.


सोमनाथ में शिवलिंग स्थापना


1951 में गुजरात के सोमनाथ मंदिर के उद्दाटन का कार्यक्रम और शिवलिंग की स्थापना होनी थी. इसके लिए तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी निमंत्रण दिया गया था, लेकिन जब ये बात उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो उन्होंने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से कहा कि वो इस कार्यक्रम में न जाएं. नेहरू ने तर्क दिया कि भारत सरकार का इस कार्यक्रम से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसे में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी इससे अलग रहना चाहिए, क्योंकि एक धर्मनिरपेक्ष देश में राष्ट्रपति अगर खुद को किसी धर्म से जोड़ता है, तो इसका गलत संदेश जाएगा. डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने नेहरू के इस पत्र का जवाब भी दिया. उन्होंने कहा था कि मुझे अपने धर्म पर पूरा भरोसा है और मैं खुद को इससे अलग नहीं कर सकता. राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की सलाह नहीं मानी और 11 मई को वो सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए.


असम में NRC की जड़ें


देश में करीब ढाई साल पहले NRC के मुद्दे पर जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे. तब से ही इसे मुद्दे पर अक्सर सियासत देखने को मिलती रही है.. लेकिन क्या आप जानते हैं कि national register of citizen का ख्याल कहां से आया...कब आया और इसकी जड़ें कहां से जुड़ी हुई है? जवाब है असम...जी हां, असम देश का इकलौता राज्य है, जहां एनआरसी बनाया जा रहा है. आसान भाषा में कहें तो एनआरसी वो प्रक्रिया है जिससे देश में गैर-कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती है. असम में आजादी के बाद 1951 में पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बना था. यानी पहली दफा NRC  को जवाहरलाल नेहरू के दौर में असम में लागू किया गया था. इस सिटिजन रजिस्टर को लागू करने की सबसे बड़ी वजह थी सन 1947 का बंटवारा. जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीनें असम में ही थी, जिस वजह से इन लोगों का आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसी समस्या को दूर करने के लिए वर्ष 1951 में नेशनल सिटिजन रजिस्टर यानी NRC को लागू किया गया.


डायरेक्टर के सामने बदलने पड़ते थे कपड़े!


आज बॉलीवुड में जहां ऑडिशन के लिए बकायदा एक कास्टिंग टीम होती है वहीं 1951 में डायरेक्टर और प्रोड्यूसर खुद ही कलाकारों का ऑडिशन लेते थे, लेकिन ये ऑडिशन लड़कों की तुलना में महिला कलाकारों के लिए काफी मुश्किलों भरा होता था. 1951 में डायरेक्टर अब्दुल राशिद करदार की फोटोज को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये ऑडिशन कितना चैलेंजिंग होता था. उस दौर में ऑडिशन देने के लिए लड़कियां घर से तैयार होकर नहीं आती थीं, उन्हें डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के सामने ही तैयार होना पड़ता था. जहां लड़कियों के पूरे लुक को भी बारीकी से चेक किया जाता था. डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के सामने कपड़े चेंज करना उस वक्त बहुत बड़ी बात होती थी और उसके लिए लड़कियों को काफी बोल्ड होना पड़ता था. अगर वो कलाकार रिजेक्ट हो जाती थीं तो, उसे समाज में अवहेलना का शिकार भी होना पड़ता था.


पहली बार भारत के लोगों ने डाला वोट


भारत विश्व का सबसे बड़ा और जीवंत लोकतंत्र देश है. लोकतंत्र में जनता खुद अपनी सरकार चुनती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव कब हुआ. पहली बार वोट कब डाले गए और वोट डालने वाला सबसे पहला वोटर कौन था? वैसे तो संविधान लागू होने के बाद भारत में पहली बार आम चुनावों के लिए फरवरी 1952 में वोट डाले गए थे. लेकिन हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में ठंड और बर्फ़बारी की आशंका को देखते हुए वहां पांच महीने पहले ही चुनाव करा लिए गए थे. इस तरह हिमाचल प्रदेश का किन्नौर पहली ऐसी जगह बन गया जहां देश में सबसे पहले चुनाव करवाए गए. जबकि किन्नौर के ही श्याम शरन नेगी ने इन चुनावों में सबसे पहले वोट डाले थे. श्याम शरन नेगी उस वक्त 33 साल के थे. श्याम सरन नेगी की उम्र अब 104 साल है और उन्होने पिछले आम चुनावों में भी वोट डाला था. श्याम सरन हिमाचल प्रदेश के उन 1,011 मतदाताओं में भी शामिल हैं, जिनकी उम्र 100 वर्ष से अधिक है.


1951 में आई साइकिल क्रांति


वक्त चाहे कोई हो, दौर कितना ही आधुनिक क्यों न हो. लेकिन साइकिल की सवारी कभी गुजरे दौर की बात नहीं हुई. चाहे फिटनेस फ्रीक हों या फिर सामान्य लोग. सड़कों पर साइकिलों की सवारी करते हुए लोग आज भी दिख ही जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में साइकिल क्रांति कौन लेकर आया? इसका जवाब है जानकी दास कपूर. जानकी दास कपूर ने 1951 में  एटलस साइकिल कंपनी की स्थापना की. ये कंपनी उन्होंने  एक टिन शेड के नीचे से शुरू की थी और सबसे पहले यहां सिर्फ साइकिल की गद्दियां ही बनाई जाती थीं. इसके बाद 1952 में इसी फैक्टरी में पहली साइकिल बनाई गई. पहले साल फैक्ट्री में कुल 12000 साइकिलें बनाई गईं का उत्पादन हुआ और उसके बाद कंपनी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उस वक्त साइकल स्टेटस सिंबल था. लेकिन एटलस ने इस सवारी को आम लोगों तक पहुंचा दिया. 1958 में एटलस ने इंटरनेशनल मार्केट में कदम रखा और उसके बाद मिडिल ईस्ट, म्यांमार और साउथ अफ्रीका समेत कई देशों में इस कंपनी की बनी साइकिलें एक्सपोर्ट की गईं. यहां तक की 1982 में नई दिल्ली में हुए एशियन गेम्स के लिए भी एटलस ही साइकिलों की आधिकारिक सप्लायर थी.


पाकिस्तानी 'खान' के नाम पर बनी खान मार्केट!


71 सालों में खान मार्केट ने देश-दुनिया में अपनी एक खास पहचान बनाई है. या कह सकते हैं कि खान मार्केट, नाम ही काफी है. लेकिन क्या आप जानते है कि इस खान मार्केट की नींव साल 1951 में पड़ी थी. जी हां दिल्ली के पुराने और मशहूर बाजारों में से एक खान मार्केट की स्थापना 1951 में हुई थी. ‘खान मार्केट‘ का नाम सीमांत गांधी के नाम से मशहूर ‘खान अब्दुल गफ्फार के खान‘ के नाम पर रखा गया है. जो आगे चलकर पाकिस्तान के बड़े नेता बने. भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के हिस्से से भागकर आए कारोबारियों को यहां कारोबार के लिए जगह दी गई थी. नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस को अब पाकिस्तानी सूबे खैबर पख्तून ख्वा नाम से भी जाना जाता है.


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