धनतेरस पर सोने की चांदी हो गई, आखिर गोल्ड खरीदने में क्यों आगे हैं भारतीय?
सोचिए जिस देश के लोगों को गरीब बताया जाता है, जिसके बारे में ये कहा जाता है कि यहां महंगाई एक बड़ा मुद्दा है और लोगों के पास अपनी गाड़ी में पेट्रोल डलवाने का भी पैसा नहीं है. उस देश के लोग एक दिन में साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का सोना-चांदी खरीद लेते हैं.
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नई दिल्ली: आज धनतेरस के मौके पर भारत में साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का सोना और चांदी खरीदा गया, जिनका कुल वजन 15 हजार किलोग्राम है. भारतीय, सोना इसलिए खरीदते हैं क्योंकि वो इसे सबसे सुरक्षित निवेश मानते हैं, सोना हमारी संस्कृति का भी हिस्सा है और इसे स्त्री धन भी कहा जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि गरीबी और महंगाई से त्रस्त भारत के लोग सोना खरीदने के मामले में दुनिया में सबसे आगे क्यों हैं?
देश में 15 हजार किलो सोने-चांदी की बिक्री
देश के अलग-अलग राज्यों से ऐसी तस्वीरें आई हैं, जहां आज लोगों ने तीन वर्षों के बाद सोने की रिकॉर्ड खरीदारी की. भारत में धनतेरस का त्योहार धन और संपदा के रूप में मनाया जाता है. यही वजह है कि आज धनतेरस के मौके पर देशभर में लगभग 15 हजार किलोग्राम सोने और चांदी की बिक्री हुई, जिसकी कीमत साढ़े सात हजार करोड़ रुपये होती है. ये जानकारी Confederation of All India Traders ने दी है.
ये स्थिति भी तब है जब जनवरी 2020 के मुकाबले 10 ग्राम सोने की कीमत लगभग 11 हजार रुपये बढ़ी है. जनवरी 2020 में 10 ग्राम 39 हजार 119 रुपये का था, जिसकी कीमत अब 48 हजार से 49 हजार के बीच है. कोरोना के बाद से सोने की कीमत में 28 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है. लेकिन इसके बावजूद गोल्ड के खरीदार कम नहीं हुए हैं.
पेट्रोल के लिए पैसा नहीं, सोने की बंपर खरीद
सोचिए जिस देश के लोगों को गरीब बताया जाता है, जिसके बारे में ये कहा जाता है कि यहां महंगाई एक बड़ा मुद्दा है और लोगों के पास अपनी गाड़ी में पेट्रोल डलवाने का भी पैसा नहीं है. उस देश के लोग एक दिन में साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का सोना-चांदी खरीद लेते हैं. ये पैसा दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड BCCI की दो साल की कमाई के बराबर है. BCCI की सालाना आय साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये है.
अंग्रेजी की एक कहावत है Old is Gold. लेकिन भारत के संदर्भ में कहें तो यहां Gold is Old की परम्परा रही है. भारत में प्राचीन काल से ही सोने को एक धातु के रूप में पूजा जाता रहा है और आज हमारे देश के घरों में अमेरिका के सरकारी खजाने से तीन गुना ज्यादा सोना रखा हुआ है. अमेरिका के सरकारी खजाने में 8 हजार 133 टन सोना जमा है तो भारत के घरों में 25 हजार टन सोना जमा है. इस सोने की कीमत भारत की कुल GDP के 40 प्रतिशत हिस्से के बराबर है.
सोना है सबसे सुरक्षित निवेश
हमारे देश में एक जमाने में ये कहावत काफी बोली जाती थी कि एक बार के लिए अपने सगे भी साथ छोड़ देंगे लेकिन सोना कभी साथ नहीं छोड़ेगा. सोने के प्रति ये भरोसा आज भी लोगों के मन में है. भारत में सोना केवल आभूषण बनाने के काम में नहीं आता. यहां लगभग 30 प्रतिशत गोल्ड निवेश के रूप में इस्तेमाल होता है. 15 प्रतिशत केन्द्रीय बैंकों के पास जमा है और साढ़े सात प्रतिशत गोल्ड Electronic Gadgets और Micro Chip में भी इस्तेमाल होने लगा है. जबकि लगभग 50 प्रतिशत गोल्ड के आभूषण बनाए जाते हैं. यानी सोने के बहुत सारे रोल हैं और उनमें से एक बड़ा रोल है Financial Security का यानी वित्तीय सुरक्षा का. लोगों को लगता है कि मुश्किल घड़ी में जब कोई काम नहीं आएगा, तब ये सोना ही उनकी मदद करेगा.
एक और दिलचस्प जानकारी ये है कि भारत के मन्दिरों में भी सोने का विशाल भंडार है. एक अनुमान के मुताबिक हमारे देश के मन्दिरों में 4 हजार टन से ज्यादा सोना जमा है. इतना सोना जर्मनी, इटली, फ्रांस, रूस, चीन और जापान के पास भी रिजर्व नहीं है. यानी भारत में सोना भगवान को खुश करने के लिए भी चढ़ाया जाता है.
भारतीय क्यों खरीदते हैं सोना?
भारत के लोग पूरी दुनिया के मुकाबले सोना क्यों खरीदते हैं इसे आप सोने के चार S के जरिए समझ सकते हैं. पहला S ये है कि भारत में सोने को सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है. यानी लोग निवेश करने के उद्देश्य से सोना खरीदना पसंद करते हैं. दूसरा S है संस्कार, भारत में सोना संस्कृति का हिस्सा है. सोने के आभूषणों को एक मां अपनी बेटी को विवाह के समय देती है, फिर बेटी अपनी बेटी को सोने के आभूषण देती है. ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहता है. सोने को शुभ माना जाता है और यही वजह है कि चाहे शादी विवाद का मौका हो या फिर कोई और पावन अवसर, हर मौके पर सोने का प्रयोग होता है.
सोने का तीसरा S है स्त्रीधन. भारत में ज्यादातर महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होतीं और वो निवेश भी नहीं करतीं, उनके लिए सबसे सरल निवेश सोना होता है वो सोना खरीदती हैं और यही उनका सबसे मजबूत निवेश बन जाता है. संकट आने पर ये सोना काम भी आता है. इसलिए जब शादी विवाह के मौके पर किसी महिला को सोने के आभूषण दिए जाते हैं तो उसे स्त्रीधन कहा जाता है क्योंकि ये उस स्त्री का धन होता है.
चौथा कारण ये है कि सोना है सदा के लिए क्योंकि सोने के दाम अक्सर बढ़ते हैं और बहुत कम मौकों पर इसके दाम में गिरावट आती है. हर व्यक्ति चाहता है कि उसके पास जो संपत्ति है उसका मूल्य कम होने की बजाय हमेशा बढ़ता रहे और सोना इसी बात की गारंटी देता है.
क्यों मनाया जाता है धनतेरस?
अब धनतेरस की बात करते हैं. धनतेरस का त्योहार इसलिए मनाया जाता है क्योंकि पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान धनवंतरि प्रकट हुए थे, जिन्हें आयुर्वेद का जनक और औषधि का देवता माना जाता है. धनवंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. धनवंतरि की प्रिय धातु तांबा है इसीलिए धनतेरस के दिन लोग ताबें के बर्तन जरूर खरीदते हैं. इसके अलावा भागवत पुराण के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान विष्णु के वामन अवतार ने असुर राज बलि से दान में तीनों लोक मांग कर देवताओं को उनकी खोई हुई संपत्ति और स्वर्ग प्रदान किया था. इसी उपलक्ष्य में देवताओं ने धनतेरस का पर्व मनाया था.
आज ही के दिन कुबेर और लक्ष्मी की भी पूजा होती है जो धन के देवी और देवता हैं. यानी कुल मिलाकर आज का दिन अच्छे स्वास्थ, सुख और समृद्धि की कामना करने का दिन है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि जीवन में ये सारी समृद्धि और सफलता हासिल करने की सबसे बड़ी कुंजी क्या है? वो कुंजी है आपका स्वास्थ्य. आपका बैंक बैलेंस चाहे कितना भी हो, आपके पास चाहे जितनी संपत्ति हो, गाड़ियां हो या दूसरी सुख सुविधाए हों, इन सबका आनंद आप तभी ले सकते हैं जब आपके पास अच्छा स्वास्थ्य होता है. कुल मिलाकर अच्छा स्वास्थ्य ही आपकी सबसे बड़ी दौलत है.
धन की चिंता, तन की नहीं
धनतेरस को लोग अक्सर सिर्फ धन से जोड़कर देखते हैं. लेकिन असल में ये त्योहार आपके स्वास्थ्य को भी समर्पित है और आज स्वास्थ्य के हिसाब से धनी होने का दिन है. पुराणों में कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था तब धनवंतरि प्रकट हुए थे और उनके हाथ में एक अमृत कलश था जो लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. पिछले करीब 2 वर्षों के दौरान पूरी दुनिया और कोरोना के बीच भी एक ऐसा ही समुद्र मंथन हुआ, जिसमें अमृत के रूप में वैक्सीन निकली और अब ये वैक्सीन दुनिया भर में करोड़ों लोगों की जान बचा रही है.
फिर भी कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में अब तक 50 लाख लोग और भारत में साढ़े चार लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. अगर लोग पहले से अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरुक होते और अपनी इम्युनिटी को बेहतर बनाने की दिशा में काम करते तो इनमें से बहुत सारी मौतों को टाला जा सकता था. लेकिन समस्या ये है कि लोग अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना ही तब शुरू करते हैं जब संकट बिल्कुल सिर के ऊपर आकर खड़ा हो जाता है.
भगवान धनवंतरि को पुराणों में आयुर्वेद का जनक और देवताओं का चिकित्सक माना गया है. धनवंतरि ने कहा था कि धर्म और धन से भी ऊपर स्वास्थ्य होना चाहिए. लेकिन धनतेरस के मौके पर जिस तरह की भीड़ बाजारों में दिख रही है, उसे देखकर लगता है कि लोगों को सिर्फ धन की चिंता है, क्योंकि अगर इन्हें अपने स्वास्थ्य की चिंता होती तो ये लोग सोशल डिस्टेंसिंग की गाइडलाइंस का पालन करते और अपने साथ-साथ दूसरों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते.
कोरोना का खतरा बरकरार
विशेषज्ञ लगातार इस बात की आशंका जता रहे हैं कि दिवाली के बाद भारत में संक्रमण के नए मामले तेजी से बढ़ सकते हैं. हम ये नहीं कह रहे कि आप पिछले साल की तरह इस साल भी अपने घरों में बंद रहें या त्योहार का आनंद ना लें. हम सिर्फ ये कह रहे हैं कि अभी मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को भुलाने की जरूरत नहीं है क्योंकि संक्रमण का खतरा अब भी बरकरार है और इस भीड़-भाड़ के बीच ये खतरा और बढ़ सकता है.
हालांकि अच्छे स्वास्थ्य का अर्थ सिर्फ स्वस्थ शरीर नहीं है, इसमें अच्छा मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल है. इस महामारी के दौर में वो लोग हर जंग आसानी से जीत जाते हैं जो अपने मन को मजबूत बनाना जानते हैं. लेकिन जिनका मन कमजोर होता है वो या तो थक जाते हैं या फिर हार मान लेते हैं. उदाहरण के लिए पिछले वर्ष भारत में जितनी मौतें कोरोना वायरस की वजह से नहीं हुई उससे ज्यादा मौतें आत्महत्याओं की वजह से हुईं.
लगातार बढ़े सुसाइड केस
National Crime Records Bureau के नए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में भारत में 1 लाख 53 हजार लोगों ने आत्महत्या की थी. जबकि 2020 में कोरोना से मरने वालों की संख्या 1 लाख 49 हजार थी. पिछले वर्ष भारत में जितनी आत्महत्याएं हुईं वो पिछले 10 वर्षों के मुकाबले सबसे ज्यादा हैं.
आत्महत्या करने वालों में पहले नंबर पर मजदूर थे. जिनका जीवन लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. पिछले वर्ष 37 हजार 666 मजदूरों ने आत्महत्या की थी. आत्महत्या करने वालों में दूसरे नंबर पर वो लोग थे जिन्हें पहले से कोई ना कोई गंभीर बीमारी थी, ऐसे लोगों की संख्या 27 हजार से ज्यादा थी.
आत्महत्या करने वाले लोगों में 71 प्रतिशत पुरुष थे यानी पिछले साल महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पुरुषों ने आत्महत्या की. लेकिन जिन महिलाओं ने आत्महत्या की उनमें से 50 प्रतिशत महिलाएं वो थी जो घर संभालती थीं. यानी जो कामकाजी नहीं थीं. अपनी जान लेने वालों में साढ़े 12 हजार छात्र और 10 हजार किसान भी थे.
मजबूत तन और साफ मन भी जरूरी
हैरानी की बात ये है कि पिछले वर्ष आत्महत्या करने वालों में बेरोजगारों से ज्यादा संख्या ऐसे लोगों की थी, जो या तो खुद का कोई काम करते थे या फिर नौकरियां करते थे. इसके अलावा कई Celebrities ने भी पिछले वर्ष आत्महत्या की जिनमें सबसे बड़ा नाम अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का था. इसके अलावा भी कई अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने पिछले वर्ष आत्महत्या की.
इसलिए आज धनतेरस के मौके पर हम आपसे कह रहे हैं कि जीवन में स्वस्थ तन, शांत मन और पर्याप्त धन तीनों की जरूरत होती है. असली समृद्धि का महल इन्हीं तीनों स्तंभों पर टिका होता है. इसलिए धन को सोच समझकर खर्च कीजिए, तन को मजबूत बनाइये और मन को बुरे और दूषित विचारों से दूर रखिए.