OP Rajbhar: भाजपा को पानी पी-पी कर कोसने वाले यूपी के दिग्गज ओबीसी नेता ओपी राजभर एक बार फिर पाला बदलकर एनडीए में शामिल हो गए हैं. ओपी राजभर अकेले नेता नहीं हैं, जिनका अचानक दल बदलने का मन किया. इस पाला बदल में बिहार के दिग्गज नेता जीतन राम मांझी की भी चर्चा जोरों पर हो रही है. इन दो नेताओं का एनडीए में शामिल होना, विपक्षी एकता के लिए बड़े झटके की तरह देखा जा रहा है. वहीं, भाजपा के लिए यह कदम लोकसभा चुनाव से पहले दलित और ओबीसी वोटबैंक बटोरने की कोशिश बताया जा रहा है.


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बता दें कि ओपी राजभर पिछले कई दिनों से समाजवादी पार्टी से नाखुश चल रहे थे. वे कई मौकों पर अखिलेश यादव को एसी कमरे से बाहर निकलकर जनता के बीच आने के लिए भी कह चुके हैं. यही कारण है कि लोकसभा चुनाव 2019 से ऐन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोलकर भाजपा गठबंधन से नाता तोड़ने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर एक बार फिर भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल हो गए. 


उन्होंने यह फैसला अचानक नहीं लिया है. वह पिछले करीब एक साल से भाजपा के प्रति झुकाव दिखा रहे थे. राजभर की राजग में वापसी से कई लोगों को आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि उन्होंने काफी पहले से यह संकेत दे रखे थे कि उनके लिए सभी विकल्प खुले हैं. सुभासपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 भाजपा के साथ गठबंधन में लड़ा था और चार सीटें जीतीं थीं. राजभर को गठबंधन के सहयोगी के तौर पर कैबिनेट मंत्री बनाया गया था लेकिन उन्होंने पिछड़ों और वंचितों के साथ अन्याय का आरोप लगाते हुए सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ही खिलाफ मोर्चा खोल लिया था इसकी वजह से सरकार के सामने कई बार असहज स्थिति अभी पैदा हुई थी. 



लगातार तल्खी के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजभर ने भाजपा गठबंधन से नाता तोड़ लिया था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था. राजभर की पार्टी ने 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) से हाथ मिलाया और छह सीटें जीतीं. उस चुनाव में राजभर ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के 'खेला होबे' के नारे की तर्ज पर 'खदेड़ा होबे' का नारा दिया था. यह राज्य सत्ता से भाजपा को "बाहर निकालने" का आह्वान था. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तब कहा था, ''राजभर उस दरवाजे को बंद कर देंगे जिसके माध्यम से भाजपा (उत्तर प्रदेश में) सत्ता में आई थी और सपा कार्यकर्ता उस पर ताला लगा देंगे.''


लेकिन सपा गठबंधन भाजपा को सत्ता से हटाने में विफल रहा इसलिए गठजोड़ के घटक दलों में कलह शुरू होते देर नहीं लगी. उसके बाद राजभर ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के खिलाफ मुखर रुख अख्तियार कर लिया. राजभर की पार्टी ने पिछले साल जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा के बजाय राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया. अब एक साल बाद, सुभासपा राजग का हिस्सा बन चुकी है. 


चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी उत्तर प्रदेश के आठ जिलों की लगभग 10 लोकसभा सीटों और 40 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकती है. प्रदेश में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि राजभर की पार्टी को राजग में वापस लाने में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी भूमिका निभाई है. पाठक ने कहा, ''समाजवादी पार्टी पटरी से उतर गई है और राज्य की जनता ने उन्हें खारिज कर दिया है. दूसरी ओर, राजग में नए लोगों के शामिल होने से भाजपा का कुनबा बढ़ रहा है.'' 


उन्होंने कहा, "जनता का समर्थन और जनादेश दोनों (भाजपा और एनडीए के पक्ष में) बढ़ रहा है. हम एक बड़े लक्ष्य के लिए एक साथ आए हैं." उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के साथ अब केवल दो सहयोगी -राष्ट्रीय लोक दल और अपना दल-कमेरावादी बचे हैं और धीरे-धीरे वे भी सपा छोड़ देंगे. ओमप्रकाश राजभर के बड़े बेटे और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरविंद राजभर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कहा कि उन्होंने शाह के साथ जातिवार जनगणना, राजभर जाति को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने और उत्तर प्रदेश में मंत्रिपरिषद के विस्तार सहित कई मुद्दों पर चर्चा की.


(एजेंसी इनपुट के साथ)