क्या सनातनियों ने संविधान बनाया... PM मोदी ने क्यों कहा संविधान बनाने वाले सनातनी थे?
Lok Sabha Election: लोकतंत्र में जितना अधिकार आम जनता को अपनी बात रखने का है, उतना ही अधिकार, चुनावों के वक्त राजनेताओं को मंचों और जनसभाओं में बोलने का होता है. सत्ता पक्ष अपने कार्यों का गुणगान बढ़ा चढ़ाकर करता है.
Lok Sabha Election: लोकतंत्र में जितना अधिकार आम जनता को अपनी बात रखने का है, उतना ही अधिकार, चुनावों के वक्त राजनेताओं को मंचों और जनसभाओं में बोलने का होता है. सत्ता पक्ष अपने कार्यों का गुणगान बढ़ा चढ़ाकर करता है. ठीक वैसे ही विपक्षी पार्टियां कुछ ना कुछ विवादित बोलकर, सत्ता पक्ष विरोधी माहौल तैयार करने में जुट जाती हैं. आजकल बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस समेत INDI गठबंधन, एक विशेष अफवाह लेकर चुनावी मैदान में उतरा हुआ है. INDI गठबंधन अलग-अलग मंचों से ये बता रहा है कि बीजेपी अगर तीसरी बार सत्ता में लौटकर आई, तो देश का संविधान ही बदल देगी.
संविधान बदलने की मंशा का आरोप
पिछले कुछ दिनों से बीजेपी के कुछ नेताओं ने संविधान में मौजूदा स्थितियों के हिसाब से बदलाव किए जाने के सवालों पर अपना पक्ष रखा. इनके विचार को विपक्ष ने हथियार बनाया और निशाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर साध दिया. INDI गठबंधन लगातार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर संविधान बदलने की मंशा का आरोप लगाते हुए, जनता के बीच डर का माहौल तैयार कर रहा है.
'संविधान बदल देंगे'
INDI गठबंधन के 'संविधान बदल देंगे' वाले आरोपों पर, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के गया में पलटवार किया. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार के गया और पूर्णिया में रैलियां थीं. दोनो जगहों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी का विचार और Vision के बारे में जनता को बताया. लेकिन उन्होंने सबसे विस्फोटक भाषण गया में दिया. बोध गया में जिस तरह से महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'संविधान बदल देंगे' वाले मामले पर INDI गठबंधन को ज्ञान की प्राप्ति करवा दी.
संविधान निर्माताओं में 80-90 प्रतिशत सनातनी>>
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य रूप से INDI गठबंधन को संविधान, राम मंदिर और सनातन विरोध के नाम पर घेर लिया. INDI गठबंधन के नेताओं का संविधान बदल देंगे वाले आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केवल संविधान निर्माताओं के विषय में ही नहीं, बल्कि उन्होंने सनातन विरोध के नाम पर राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का विरोध करने पर भी INDI गठबंधन को जनता के सवालों के घेरे में डाल दिया. न्यूज़ एजेंसी ANI को दिए अपने इंटरव्यू में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान के स्वरूप और मूल प्रति पर छपे हिंदू धार्मिक चित्रों के विषय में बताया था. इस तरह से उन्होंने कल भी INDI गठबंधन को संविधान और सनातन धर्म से उसके संबंधों के बारे में बताया था.
संविधान और सनातन को जोड़ने वाली जो बातें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही हैं, उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें हम आपको बताना चाहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बात तो ये कही थी कि संविधान बनाने वालों में से 80 से 90 प्रतिशत लोग सनातनी थे. तो इस पर हम आपको बताना चाहते हैं कि संविधान सभा में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई ही नहीं अन्य धर्मों के लोग भी शामिल किए गए थे. लेकिन देश के बहुसंख्यक आबादी यानी हिंदुओँ की संख्या इसमें ज्यादा थी.
- शुरुआती चरण में संविधान सभा में मुख्य रूप से तीन सौ नवासी लोग थे, लेकिन विभाजन के बाद इस संविधान सभा में 299 लोग रह गए थे.
- संविधान सभा ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को अपना अध्यक्ष चुना था. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति तो थे ही, इसके अलावा सोमनाथ मंदिर की पुनर्स्थापना में भी उनका अहम योगदान था.
- संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बीएन राव थे.
- ड्राफ्टिंग कमेट के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर थे. इस कमेटी में 6 सदस्य और भी थे, जिसमें केएम मुंशी, एन माधव राव, गोपाल स्वामी अयंगर,कृष्णा स्वामी अय्यर, टीटी कृष्णामाचारी और मोहम्मद सदुल्लाह शामिल थे.
- इसके अलावा वल्लभ भाई पटेल, जेबी कृपलानी, एवी ठक्कर, गोपीनाथ बोर्दोलई, कैलाश नाथ काजू, रामेश्वर प्रसाद सिन्हा, रणबीर सिंह हुड्डा, कला वेंकट राव, के. कामराज और हरगोविंद पंत समेत कई लोग बड़े और मुख्य पदों पर थे.
देखा जाए तो देश के बहुसंख्यक हिंदू या कहें कि सनातन धर्म से ताल्लुक रखने वाले लोगों की संख्या,संविधान सभा में अधिक थी. बड़े और मुख्य पदों पर काबिज़ लोगों में भी सनातन धर्म से जुड़े लोगों की संख्या अधिक थी. तो इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, का ये कहना कि संविधान निर्माताओं में भी 80-90 प्रतिशत तक सनातनी थे, इसको खारिज नहीं किया जा सकता. हालांकि संविधान निर्माताओं ने सनातन के बारे में सोचकर देश का संविधान नहीं बनाया होगा, इसकी गारंटी ली जा सकती है.
संविधान की मूल प्रति से जुड़ी कुछ रोचक बातें भी आपको जरूर जाननी चाहिए. भारत के संविधान की मूल भावना को समझने के लिए हमें संविधान की मूल प्रति को देखना चाहिए. भारत के संविधान की मूल प्रति दरअसल हाथ से लिखी गई कॉपी थी. इसमें बहुत सारे चित्र बनाए गए थे. इन चित्रों में भारत के हजारों वर्ष पुराने इतिहास को दर्शाया गया था. इन चित्रों को शांति निकेतन के चित्रकार नंदलाल बोस और उनके सहयोगियों ने बनाया था.
- संविधान के भाग 2, जिसमें नागरिकता के विषय में बताया गया है, उसमें एक चित्र है जिसमें एक ऋषि जंगल में यज्ञ करते दिखाई देते हैं.
- संविधान के भाग 3 में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विषय में बताया गया, यहां एक चित्र है जिसमें श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण, अयोध्या लौटते हुए नजर आते हैं.
- संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के बारे में बताया गया है, इसमें एक चित्र है जिसमें महाभारत का एक दृश्य दिखाया गया है. इसमें श्रीकृष्ण, अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं.
- संविधान के भाग 5 में महात्मा बुद्ध का चित्र दिखाया गया है.
- संविधान के भाग 6 में भगवान महावीर जैन का चित्र है.
- भाग 12 में शिव के नटराज स्वरूप और स्वस्तिक का चित्र है.
- इसके अलावा अलग अलग भागों में छत्रपति शिवाजी महाराज और गुरु गोविंद सिंह के भी चित्र हैं.
संविधान और सनातन के कनेक्शन
यानी संविधान निर्माताओं ने जब संविधान की मूल प्रति बनाई थी तो इस बात का ध्यान विशेष रूप से रखा गया था कि देश में मौजूद धर्मों के संतों, महानुभावों और भगवानों के चित्र इसमें जरूर हों. संविधान और सनातन के कनेक्शन पर बोलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने INDI गठबंधन के संविधान बदल देने वाले आरोंपों को खारिज कर दिया. अब सवाल ये है कि क्या संविधान को बदला जा सकता है?
वर्ष 1950 में संविधान के लागू होने के बाद से सितंबर 2023 तक 106 बार संविधान में संशोधन यानी बदलाव किया जा चुका है. संशोधन का अर्थ यही है कि जो नियम संविधान में मूल रूप से लिखे गए थे, उनको बदला गया या उसमें कुछ सुधार किया गया. जब INDI गठबंधन के नेता खासतौर से कांग्रेस पार्टी संविधान बदलने वाले आरोप लगाते हैं, तो ऐसा करके वो जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. संविधान में समय-समय पर लोगों के भले के लिए बदलाव यानी संशोधन किए जाते रहे हैं.
संविधान में बदलाव को लेकर नियम क्या कहते हैं प्रक्रिया क्या है?
संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन के विषय में बताया गया है. पहली है- संसद में साधारण बहुमत का आधार. दूसरी प्रक्रिया है- संसद के दोनों सदन में विशेष बहुमत के आधार. तीसरी प्रक्रिया है- संसद के दोनों सदन में विशेष बहुमत और 50 प्रतिशत राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी का आधार.
- साधारण बहुमत का मतलब ये है कि दोनों सदनों में मौजूद सदस्यों की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा हो, यानी संशोधन को लेकर 50 प्रतिशत से ज्यादा सदस्यों की मंजूरी हो. इस प्रक्रिया का इस्तेमाल मुख्य रूप से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या न्यायाधीश के वेतन भत्तों से जुड़े मामलों में, नए राज्यों को जोड़ने के लिए,राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन के लिए या नागरिकता संबंधित मामलों के लिए किया जाता है.
- विशेष बहुमत से होने वाले संशोधन की प्रक्रिया साधारण बहुमत की प्रक्रिया से ज्यादा कठिन होती है.
-विशेष बहुमत से मतलब ये है कि लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों के कुल सदस्यों की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा हो, और मौजूद सदस्यों में से 66 प्रतिशत सदस्य, संशोधन के पक्ष में हों. ऐसा होने पर ही संशोधन के लिए विशेष बहुमत हासिल होता है.
- संशोधन की तीसरी प्रक्रिया में राज्यों की विधानसभाओं का भी जिक्र है. तीसरी प्रक्रिया में सदन में विशेष बहुमत तो हासिल करना ही होता है, इसके अलावा देश के 50 प्रतिशत राज्यों की विधानसभाओं की भी मंजूरी लेनी होती है.
संविधान में कुछ भी बदला जा सकता है?
अब सवाल ये है कि क्या इन तीनों प्रक्रियाओं की ताकत से संविधान में कुछ भी बदला जा सकता है? क्या नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों में इन शक्तियों से बदलाव किया जा सकता है? हमने इस पर एक्सपर्ट से बात की.
क्या संविधान में कुछ भी बदला जा सकता है चाहे वो मौलिक अधिकार ही क्यों ना हों? संविधान का अनुच्छेद 368 संसद की संविधान संशोधन की शक्ति को सीमित नहीं करता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1973 में केशव नंदा भारती केस में कहा था, कि संसद भी संविधान के बुनियादी ढांचे को नहीं बदल सकती है. हालांकि संविधान का बुनियादी ढांचा क्या है, इसको लेकर ना सुप्रीम कोर्ट ने कोई व्याख्या दी है, ना ही संविधान में इसको लेकर कुछ लिखा गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अलग-अलग फैसलों में नागरिकों के मौलिक अधिकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, लोकतांत्रिक मूल्य , देश के संघीय ढांचे की सुरक्षा और न्यायपालिका के समीक्षा करने के अधिकार को संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा बताया है.