Ratan Tata Last Rites: दिग्गज बिजनेसमैन रतन टाटा के निधन से पूरा देश गम में है. बीमारी के चलते वे कई दिनों से मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में एडमिट थे. बुधवार की रात उनका निधन हो गया. गुरुवार को राजयकीय सम्मान के साथ मुंबई के वर्ली स्थित शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया. यहां आपके मन में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाज से क्यों नहीं हुआ? उनका पार्थिव शरीर 'टॉवर ऑफ साइलेंस' पर गिद्धों के लिए क्यों नहीं छोड़ गया? आइये इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.


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राजकीय सम्मान के साथ रतन टाटा का अंतिम संस्कार


पूरे देश ने रतन टाटा को बृहस्पतिवार को भावभीनी विदाई दी. हजारों आम नागरिकों से लेकर दिग्गज उनकी अंतिम यात्रा शामिल हुए और श्रद्धांजलि अर्पित की. टाटा का अंतिम संस्कार बृहस्पतिवार शाम मुंबई के वर्ली शवदाह गृह में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. मुंबई पुलिस ने उन्हें श्रद्धांजलि और गार्ड ऑफ ऑनर दिया. पद्म विभूषण से सम्मानित टाटा (86) का बुधवार रात शहर के एक अस्पताल में निधन हो गया


क्या कहा पारसी धर्म गुरु ने


शवदाह गृह में मौजूद एक धर्म गुरु ने बताया कि अंतिम संस्कार पारसी परंपरा के अनुसार किया गया. अब आपको बताते हैं पारसी परंपरा के अंतिम संस्कार के बारे में. पारसी समाज शव को कब्र में दफनाने या जलाने की बजाय इसे खुले में रखता है. शव को जहां रखा जाता है उसे.. "टॉवर ऑफ साइलेंस" (Dakhma) कहा जाता है. यह जगह आमतौर पर पहाड़ी इलाके में होती है. इसे इसलिए चुना जाता है क्योंकि यह शव को प्रकृति और पक्षियों द्वारा प्राकृतिक तरीके से नष्ट किए जाने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है. पारसी समाज का मानना है कि शव को प्रकृति में वापस मिलाकर उसे शुद्ध किया जाता है और यह अग्नि और हवा के तत्व के अनुसार होता है.


रतन टाटा का अंतिम संस्कार शवदाह गृह में हुआ


लेकिन रतन टाटा का अंतिम संस्कार शवदाह गृह में हुआ. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कोरोना काल में शवों के दाह संस्कार को लेकर नियम बदले गए थे. इसके तहत शव को खुले में नहीं रखा जा सकता. 2020 में कोरोना महामारी के दौरान पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार की पारंपरिक विधियों में बदलाव आया. महामारी के कारण शवों को खुले में रखने और टॉवर ऑफ साइलेंस में अंतिम संस्कार करने पर रोक लगा दी गई थी.


टॉवर ऑफ साइलेंस क्यों नहीं ले जाया गया रतन टाटा का पार्थिव शरीर


इस समय शवों को स्वच्छता और सुरक्षा कारणों से पारंपरिक तरीके से नष्ट करने के लिए पक्षियों को तवज्जो देने में भी कठिनाई आई. चील और गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी और उचित स्थान का न होना, पारसी अंतिम संस्कार की प्रक्रियाओं में बदलाव का कारण बने. इसके अलावा, कुछ अन्य मुद्दों की वजह से भी पारसी समुदाय को अपने अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव करने पड़े. इनमें टॉवर ऑफ साइलेंस के लिए उपयुक्त स्थान का अभाव और पक्षियों की कमी शामिल है.