महिला आरक्षण बिल से जुड़े हर सवाल का विश्लेषण, क्या है कांग्रेस की Politics?
DNA Analysis: देश को नया संसद भवन मिल गया है. नये संसद भवन में पहला बिल पेश हुआ- महिला आरक्षण बिल. इसे सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक नाम दिया है. नये संसद भवन में कार्यवाही शुरु होते ही इस बिल को लाया गया.
DNA Analysis: देश को नया संसद भवन मिल गया है. नये संसद भवन में पहला बिल पेश हुआ- महिला आरक्षण बिल. इसे सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक नाम दिया है. नये संसद भवन में कार्यवाही शुरु होते ही इस बिल को लाया गया. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस बिल को पेश किया. जिस पर अब लोकसभा में 20 सितंबर यानी कल बहस होगी. हम आज इस बिल का विश्लेषण करेंगे और इससे जुड़े हर सवाल का जवाब आपको देंगे.
पहला सवाल तो यही है कि महिला आरक्षण बिल में क्या-क्या प्रावधान हैं? महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 फीसदी सीटें आरक्षित होंगी. SC-ST के लिए आरक्षित सीटों में से 33 फीसदी पर उसी समुदाय की महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिलेगा. इस बिल में प्रस्ताव है कि हर परिसीमन की प्रक्रिया के बाद महिला आरक्षित सीटों को Rotate किया जाएगा. यानी महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें बदल दी जाएंगी. आपको बता दें कि परिसीमन के जरिये लोकसभा और विधानसभा सीटों का दोबारा से निर्धारण किया जाता है.
इस बिल के मुताबिक महिला आरक्षण कानून की समय सीमा 15 वर्ष होगी यानी 15 वर्ष बाद ये आरक्षण खत्म हो जाएगा. हालांकि उसके बाद संसद में संशोधन के जरिये इस आरक्षण को बढ़ाया जा सकेगा. यानी आसान भाषा में कहें...अगर ये बिल पास होकर कानून बन जाता है तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में हर तीसरी सदस्य, महिला होगी. लेकिन समझने वाली बात ये है कि अगर ये बिल पास हो भी जाता है, तब भी 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं होगा. क्यों नहीं होगा, ये भी समझिये. बिल में कहा गया है कि...
महिला आरक्षण, परिसीमन यानी Delimitation के बाद ही लागू होगा. और अगला परिसीमन, तब होगा जब नई जनगणना हो जाएगी. लगभग तय है कि जनगणना और परिसीमन, आम चुनाव के बाद ही होगा. यानी अगर अभी महिला आरक्षण बिल पास होकर कानून बन भी जाता है तो इस बार के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं हो पाएगा. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला ये बिल नया नहीं है. क्योंकि सबसे पहले ये बिल वर्ष 1996 में लाया गया था. आज कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष, मोदी सरकार द्वारा लाए गए इस महिला आरक्षण विधेयक को समर्थन दे रहा है. लेकिन सच तो ये है कि 27 साल में कई बार संसद में पेश होने के बावजूद, महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला ये बिल आजतक कानून नहीं बन पाया.
पुराने हो चुके संसद भवन में जिस महिला आरक्षण बिल को पेश करने का सिर्फ नाटक ही होता आया था. आज मोदी सरकार ने उसी बिल को पेश करके नए संसद भवन में पहले दिन की कार्यवाही का शुभारंभ किया. महिला आरक्षण बिल मोदी सरकार ने पेश किया, लेकिन इसका क्रेडिट लेने के लिए कांग्रेस खड़ी हो गई. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन ने कहा कि जो आरक्षण की बात पीएम ने कहा है, जब राजीव जी पीएम थे 1989 में पंचायात में सुनिश्चित किया.. तब से हमारी सरकार अलग-अलग समय पर अपनी हैसियत के अनुसार पास कराने की कोशिश की थी.
यही कांग्रेस का गेम प्लान है. जो महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण देने का समर्थन तो करती है, लेकिन इतिहास गवाह है कि जब-जब संसद में ये बिल पेश हुआ है, कांग्रेस और उसके सहयोगी ही इस बिल के खिलाफ खड़े हुए हैं. क्योंकि संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव 27 सालों से Pending है. तभी से महिलाओं को संसद में आरक्षण देने की सिर्फ बातें होती आईं हैं.
पहली बार महिला आरक्षण बिल को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने 12 सितंबर 1996 को पेश किया था. तब सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव, महिला आरक्षण बिल के विरोध में थे. बिल पास होने से पहले ही देवेगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई थी. इसके बाद जून 1997 में गुजराल सरकार के कार्यकाल में फिर एक बार इस बिल को पास करवाने की कोशिश हुई. वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की NDA सरकार में भी महिला आरक्षण बिल को पेश करने की कोशिश हुई.
इसके बाद 1999 में भी दोबारा इस बिल को संसद में पेश करने की कोशिश हुई. वाजपेयी सरकार में ही वर्ष 2003 में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल पेश करने की कोशिश हुई. लेकिन ये बिल कभी पास ही नहीं हो पाया. क्योंकि जो नेता, संसद के बाहर महिला सशक्तिकरण पर बड़े-बड़े भाषण देते थे, वो ही संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ खड़े हो गए थे.
वाजपेयी सरकार ने संसद में महिला आरक्षण बिल छह बार पेश किया. जो कांग्रेस महिला आरक्षण बिल का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है, उसी कांग्रेस और उसके उसके सहयोगी दलों ने हर बार महिला आरक्षण बिल को कानून बनने से रोका. 8 मार्च 2010- राज्यसभा में मनमोहन सरकार में महिला आरक्षण बिल पेश हुआ तो UPA के ही सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के सांसदों ने बिल की कॉपी फाड़ दी. और बिल पर चर्चा को रोकने की कोशिश हुई.
अगले दिन जब बिल पर वोटिंग हुई तो सरकार की सहयोगी BSP और TMC ने वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया. लेकिन फिर भी राज्यसभा में ये बिल पास हो गया. क्योंकि बीजेपी ने तब इस बिल के समर्थन में वोट दिया था. लेकिन लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सरकार इस बिल को पास नहीं करवा पाई क्योंकि उसके ही सहयोगी दलों ने इस बिल का विरोध कर दिया.
इस बिल को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि कई सालों से महिला आरक्षण के संबंध में बहुत चर्चा हुई. काफी वाद-विवाद हुए. महिला आरक्षण को लेकर संसद में पहले भी कुछ प्रयास हुए हैं. 1996 में इससे जुड़ा विधेयक पहली बार पेश हुआ. अटल जी के कार्यकाल में कई बार महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया, लेकिन उसे पास कराने के लिए आंकड़े नहीं जुटा पाए और उस कारण से वह सपना अधूरा रह गया. महिलाओं को अधिकार देने, उन्हें शक्ति देने जैसे पवित्र कामों के लिए शायद ईश्वर ने मुझे चुना है.
अब राज्यसभा में पारित होने के 13 वर्ष बाद ये बिल लोकसभा में पेश हुआ है, तो इसका श्रेय वही कांग्रेस और विपक्षी दल लूटने की कोशिश में जुटे हैं. जिन्होंने अपनी सरकार होने के बावजूद कभी इस बिल को पास नहीं होने दिया. आज लोकसभा में अमित शाह ने भी कांग्रेस को आईना दिखाया है. पहली बार संसद में आने के 27 वर्षों बाद अब महिला आरक्षण बिल पास होने के आसार हैं. क्योंकि मोदी सरकार के पास जरूरी नंबर भी है. और उससे भी ज्यादा जरूरी नीयत भी लग रही है.
आपको समझ में आ ही गया होगा कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के नाम पर सिर्फ राजनीति होती आई है और महिला आरक्षण विधेयक उसका Tool बनता आया है. लेकिन अबकी बार मोदी सरकार ने ये बिल ऐसे वक्त पर पेश किया है, जब लोकसभा और राज्यसभा, दोनों में उसके पास इस बिल को पास करवाने के लिए जरूरी Number हैं. यानी इस बिल को कानून बनाने में मोदी सरकार को कोई खास मुश्किल नहीं होने वाली है.
अब आपको संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मौजूदा आंकड़े भी बताते हैं...
-अभी 543 सीटों वाली लोकसभा में सिर्फ 78 महिला सांसद हैं. यानी लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी अभी 14.4 प्रतिशत है.
-238 सीटों वाली राज्यसभा में सिर्फ 31 महिला सांसद हैं. यानी कुल सदस्यों में सिर्फ 13 प्रतिशत महिलाएं हैं.
-जहां तक राज्य विधानसभाओं की बात है तो देश में एक भी ऐसा राज्य नहीं है जहां की विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 15 प्रतिशत से ज्यादा हो. Mizoram में तो एक भी महिला विधायक नहीं है.
Top Three राज्य- महिलाओं का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा
14.4 प्रतिशत महिला विधायकों के साथ छत्तीसगढ़
13.7 प्रतिशत महिला विधायकों के साथ पश्चिम बंगाल
और 12.4 प्रतिशत महिला विधायकों के साथ झारखंड
बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या 10 से 12 फ़ीसदी है. और 17 राज्यों की विधानसभाओं में महिला विधायकों की संख्या 10 फ़ीसदी से भी कम है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य भी शामिल हैं. मिजोरम में तो एक भी महिला विधायक नहीं है.
तो अब समझने की बात ये है कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की इतनी कम भागीदारी इसलिए नहीं है कि महिलाएं, चुनाव नहीं जीत पातीं. बल्कि सच तो ये है कि राजनीतिक दल, महिलाओं को टिकट देने में ही कंजूसी करते हैं. अब इसका सबूत भी आपको दे देते हैं..
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 8 हजार 54 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे. जिसमें 726 यानी सिर्फ 9 प्रतिशत महिलाएं थीं. इस दौरान कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 54 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. बीजेपी ने 53 महिलाओं को अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया. BSP ने 24, TMC ने 23, CPM ने 10, CPI ने चार और NCP ने सिर्फ एक महिला प्रत्याशी को चुनाव में टिकट दिया था.
इसमें समझने वाली बात ये भी है कि जो राजनीतिक दल, अपनी पार्टी में ही महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए तैयार नहीं हैं, वो संसद और विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण देने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं . यही वजह है कि पिछले 27 वर्षों के दौरान कई बार महिला आरक्षण बिल संसद में पेश हुआ, लेकिन आजतक कानून नहीं बन पाया. अब सवाल तो ये भी पूछा जा रहा है कि जब महिला आरक्षण परिसीमन की प्रक्रिया के बाद ही लागू होना है और परिसीमन 2024 चुनाव के बाद होना है, तो फिर अगर ये बिल, संसद से पास हो भी जाता है तो इसका क्या फायदा होगा? ये सवाल उठाते हुए कांग्रेस इस बिल को सबसे बड़ा चुनावी जुमला बता रही है. और बीजेपी इसे अपनी उपलब्धि बता रही है.
ये सच है कि 2024 के चुनाव में महिला आरक्षण कानून लागू नहीं हो पाएगा. लेकिन अच्छी बात ये है कि देर से ही सही, संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को उनका उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए एक गंभीर पहल हुई है. तो आइये, अब आपको दुनियाभर की संसदों में महिलाओँ की भागीदारी से जुड़े Facts बताते हैं.
राष्ट्रीय संसदों के वैश्विक संगठन Inter-Parliamentary Union यानी IPU ने चुनाव करवाने वाले 47 देशों के आंकड़ों पर रिसर्च की है. जिससे ये पता चला है कि. दुनियाभर में करीब 25 प्रतिशत सांसद, महिलाएं हैं. जबकि वर्ष 2011 में दुनियाभर में 20 प्रतिशत सांसद, महिलाएं थीं. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर की संसदों में अब महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ रहा है. संसद में महिला सांसदों की संख्या के मामले में सबसे आगे अफ्रीकी देश रवांडा है, जहां 60 फीसदी से ज्यादा सीटों पर महिला सांसद हैं. साल 2008 में रवांडा, महिला बहुमत वाला पहला देश बना था. दूसरे नंबर पर क्यूबा है, जहां की संसद में 53 प्रतिशत सांसद, महिलाएं हैं. 52 प्रतिशत महिला सांसदों के साथ, निकारागुआ की संसद में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है. New Zealand, Mexico और UAE की संसदों में 50 प्रतिशत महिलाएं हैं. अमेरिकी कांग्रेस में 540 में से 125 सांसद, महिलाएं हैं. ये कुल सदस्यों का करीब 28.7 फीसदी है. ब्रिटेन की संसद, House Of Commons में 650 सदस्य हैं, जिनमें से 223 महिलाएं हैं. ये पहली बार है जब ब्रिटिश संसद में महिला प्रतिनिधित्व एक तिहाई से ज्यादा है.
UN Women Organisation की Report के मुताबिक अभी 17 देशों में राष्ट्र प्रमुख यानी Head Of State महिलाएं हैं. जबकि 19 देशों में सरकार की मुखिया यानी Head Of Government महिलाएं हैं. इसके अलावा पूरी दुनिया की संसदों में औसतन 22.8 प्रतिशत महिलाएं, Cabinet Members हैं जिन्हें आप मंत्री भी कह सकते हैं. और तेरह देशों में चल रहीं सरकारों की Cabinet में महिला मंत्रियों की संख्या 50 प्रतिशत या उससे ज्यादा है. यानी पूरी दुनिया की Politics में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है. अब महिला आरक्षण बिल पेश करके मोदी सरकार ने भारत की संसद और विधानसभाओं में भी महिलाओं को उनका उचित स्थान देने की मंशा जता दी है.