नई दिल्ली: कहते हैं कि जीवन में मिठास जरूरी है. अगर जीवन में मिठास ना हो तो, सारा जग, सभी सुख-सुविधाएं बेमानी लगती हैं. जीवन में मिठास लाने के लिए मीठी वाणी होनी चाहिए. लेकिन अगर यह मिठास आपके जीवन के बजाए शरीर में बढ़ने लगे तो जीवन को खतरा पैदा हो जाता है. शरीर में बढ़ती इस मिठास यानी मधुमेह, शुगर या फिर डायबिटीज के प्रति जागरूकता को लेकर आज 14 नवंबर को 'वर्ल्ड डायबिटीज डे' मनाया जा रहा है. हम आधुनिकत तकनीकों के लोकर लगातार जागरूक हो रहे हैं, लेकिन जिस शरीर की सुख-सुविधा के लिए हम नित-नई तकनीक अपना रहे हैं, उसे लेकर हम कतई जागरूक नहीं हैं. अगर सही में ऐसा होता तो हमें ऐसे आंकड़े देखने को नहीं मिलते जैसा कि आज हर बीमारी को लेकर आंकड़े हमें चौंका रहे हैं. 


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अगर डायबिटीज की बात करें तो शुगर के मरीजों द्वारा ली जाने वाली दवाओं और इंसुलिन पर कराये गए एक अध्ययन में सामने आया है कि नौ साल की अवधि में इंसुलिन की बिक्री में पांच गुना से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. डायबिटीज की ओरल दवाओं में चार साल की अवधि में ढाई गुना की वृद्धि दर्ज की गई. इनमें खासतौर पर नई दवाओं और इंसुलिन की बिक्री तेजी से बढ़ी है जिस पर चिंता जताई गई है. जानेमाने मधुमेह रोग विशेषज्ञ और नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कॉलेस्ट्रॉल फाउंडेशन (एन-डॉक) के अध्यक्ष डॉ. अनूप मिश्रा के नेतृत्व में देशभर में मधुमेह-रोधी ओरल दवाओं और इंसुलिन की बिक्री का अध्ययन किया गया और इस रोग की नई दवाओं और इंसुलिन तथा पुरानी दवाओं के पैटर्न में बदलाव का आकलन किया गया.


विश्व मधुमेह दिवस (14 नवंबर) के अवसर पर जारी अध्ययन की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि वर्ष 2008 से 2012 के बीच इंसुलिन की बिक्री 151.2 करोड़ रुपये से 218.7 करोड़ रुपये हो गई. 2012 से बढ़ते हुए 2016 में यह बिक्री 842 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई. यानी नौ साल में इसमें पांच गुना से अधिक वृद्धि दर्ज की गयी. इसकी मुख्य वजह रोगियों और डॉक्टरों में इंसुलिन के इस्तेमाल के प्रति निष्क्रियता में कमी आना रही. इसके साथ ही रोगियों की संख्या बढ़ना और कंपनियों का बढ़-चढ़कर किया जाने वाला प्रचार भी मुख्य कारणों में हैं.


देश में पिछले पांच वर्षों में मधुमेह पीड़ितों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई


इसी तरह गोलियों या कैप्सूल के रूप में ली जाने वाली मधुमेह-रोधी दवाओं की बिक्री भी तेजी से बढ़ी है. 2013 में यह बिक्री 278 करोड़ रुपये दर्ज की गई जो 2016 में 700 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई. अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि डायबिटीज की वजह से किडनी की पुरानी बीमारियां भारतीयों में अधिक देखी जाती हैं और ऐसे मामलों की पहचान भी तेजी से हो रही है. इस वजह से भी इंसुलिन की उपयोगिता बढ़ती जा रही है.


अध्ययन में ऑल इंडियन ऑरिजिन केमिस्ट्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स लिमिटेड (एआईओसीडी) से आंकड़े लिए गए. फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज एंड अलायड स्पेशलिटीज के चेयरमैन डॉ. मिश्रा ने कहा कि ये आंकड़े इसलिए चिंताजनक हैं क्योंकि अधिकतर भारतीयों को डायबिटीज के इलाज के लिए बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि भारत में चिकित्सकों को ध्यान रखना चाहिए कि केवल अधिक महंगी और नई इंसुलिन तथा दवाएं हमेशा बेहतर नहीं होती औंर पुरानी दवाएं तथा इंसुलिन भी सही तरीके से इस्तेमाल में लाए जाएं तो प्रभावी हो सकते हैं. जिनके पास धन की कमी है, उनके लिए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए. डॉ. मिश्रा ने अपने अध्ययन के आधार पर नई दवाओं की बिक्री और विपणन के नियमों के संदर्भ में दवाओं के दामों पर नियंत्रण, डॉक्टरों में जागरुकता और फार्मास्टयुटिकल कंपनियों के लिए सख्त नियमों का सुझाव दिया है. 


वर्ल्ड डायबिटीज डे: 14 नवम्बर चाटर्रा, बेन्टिंग का जन्म दिन है जिन्होंने कानाडा में बेन्ट के साथ मिलकर सन 1921 में इन्सुलिन की खोज की थी. इतिहास की इस महान खोज के लिए इंटरनेशनल डायबिटीज फेडेरेशन (आईडीएफ) द्वारा 14 नवम्बर को विश्व डायबिटीज दिवस मनाया जाता है. यह दिन डायबिटीज के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए आयोजित किया जाता है. 


(इनपुट भाषा से भी)