न्यूज़ चैनलों के Studios में बैठकर बहस करने से कभी सच सामने नहीं आता. सच सामने लाने के लिए पत्रकारों को ज़मीन पर उतरना पड़ता है, और आज एक ऐसा ही सच सामने लाने के लिए हमने केरल से Ground Reporting की है. और आज जो सच हम आपके दिखाएंगे उसे देखने के बाद आप भी समझ जाएंगे कि कैसे देश भर में PFI नाम का एक इस्लामिक संगठन जिहाद फैलाने की कोशिश कर रहा है. देश भर में नए नागरिकता कानून को लेकर आंदोलन चल रहे हैं और कहा जा रहा है कि ये विरोध प्रदर्शन आम लोग अपने दम पर कर रहे हैं.


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इसके पीछे किसी राजनीतिक पार्टी या फिर संगठन का हाथ नहीं है. लेकिन ये देश से बोला गया सबसे बड़ा झूठ है और आज हम इसी झूठ का पर्दाफाश करेंगे. हम आपको बताएंगे कि इन विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के पीछे ना सिर्फ कुछ इस्लामिक संगठनों का हाथ है. बल्कि ये संगठन देश में इस्लाम के राज का सपना भी देखते हैं.


Enforcement Directorate यानी ED की रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि नागरिकता कानून के खिलाफ हुई हिंसा में Popular Front Of India यानी PFI और इससे जुड़े कुछ संगठनों का हाथ था. PFI ने हिंसा भड़काने के लिए ना सिर्फ देश के अलग अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों की Funding की बल्कि इस संगठन के द्वारा कई बुद्धिजीवियों और बड़े लोगों को भी मोटी रकम दी गई थी.


केरल के कोझीकोड में PFI के एक बैंक खाते की जांच की गई तो पता चला कि इस संगठन ने कई जाने-माने लोगों या संस्थाओं को भुगतान किया है. इस रिपोर्ट में तीन साल पुराने हादिया केस का भी जिक्र है. जिसे लड़ने के लिए PFI ने देश के बड़े-बड़े वकीलों को करीब 92 लाख रुपये का भुगतान किया था.


इनमें कांग्रेस के नेता और वकील कपिल सिब्बल भी शामिल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक कपिल सिब्बल को 77 लाख रुपये दिए गए थे. इस लिस्ट में इंदिरा जय सिंह और दुष्यंत ए. दवे जैसे वरिष्ठ वकीलों का भी नाम है . जिन्हें 4 लाख और 11 लाख रुपये का भुगतान किया गया था.


हालांकि कपिल सिब्बल का कहना है कि हादिया केस में वो सिर्फ हादिया के वकील थे. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में हादिया की जीत हुई थी. हमारा भी मानना है कि कपिल सिब्बल देश के एक सम्मानित वकील हैं और उन्हें किसी भी केस की पैरवी के बदले फीस लेने का पूरा अधिकार है. लेकिन आज हम जो सवाल उठा रहे हैं वो इस केस में PFI की भूमिका से जुड़े हैं. इसके लिए पहले आपको ये समझना होगा कि हादिया केस आखिर था क्या.


केरल की रहने वाली हादिया के पिता का आरोप था कि उसकी बेटी लव जिहाद का शिकार हुई है. NIA यानी National Investigation Agency की जांच में पता चला था कि हादिया का असली नाम अखिला अशोकन था और अखिला का जबरदस्ती धर्म बदलवाकर, उसका निकाह करा दिया गया. हालांकि जांच एजेंसी के दावों से अलग हादिया अपने शौहर शफीन के साथ रहना चाहती थी. ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां हादिया की जीत हुई. इसी केस के सिलसिले में देश के बड़े बड़े वकीलों को करीब 92 लाख रुपये का भुगतान किया गया था.


लेकिन, सवाल उठता है कि पति-पत्नी और निकाह के इस केस में PFI आखिर कहां से आया. अगर ये एक साधारण सा घरेलू केस था तो लड़ने के लिए इतनी मोटी रकम क्यों चुकाई गई. कहा जाता है कि हादिया का पति PFI का एक्टिविस्ट था. और इसी वजह से PFI ने अपने कार्यकर्ता की पैरवी के लिए करीब 1 करोड़ रुपये खर्च कर दिए. आज हमने केरल से PFI की पूरी पड़ताल की है. केरल को PFI का गढ़ माना जाता है और इस राज्य में इस संगठन पर कई तरह के आरोप लग चुके हैं. इसलिए आज हम आपको सीधे केरल से ही हादिया केस की हकीकत बताएंगे.


हमने इस मामले में हादिया के पिता अशोकन एम से भी बात की है. अशोकन एम एक पूर्व सैनिक हैं और जम्मू, असम, और पठानकोट जैसी जगहों पर देश की सेना के लिए अपनी सवाएं दे चुके हैं. ये ठीक है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक हादिया ने अपनी मर्ज़ी से निकाह किया था. लेकिन हादिया के पिता का आरोप है वो देश के बड़े बड़े वकीलों के आगे सुप्रीम कोर्ट को इतने कागज़ नहीं दिखा पाए कि वो केस जीत पाते. 


आज हमारे पास गृह मंत्रालय की वो रिपोर्ट है. जिसमें PFI पर बहुत गंभीर आरोप लगाए गए हैं. PFI का नाम धर्म परिवर्तन के मामलों में तो आता ही रहा है. लेकिन आज आपको पता लगेगा कि कैसे ये संगठन देश भर में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने और आतंकवादियों के साथ संबंध रखने का भी आरोपी है.


NIA के मुताबिक 1992 में अयोध्या का विवादास्पद ढांचा टूटने के बाद 1993 में केरल में National Democratic Front यानी NDF का गठन हुआ था, जिसका नाम वर्ष 2006 में PFI यानी Popular Front of India कर दिया गया. पहली बार ये संगठन साल 2010 में तब चर्चा में आया, जब इस पर केरल में एक प्रोफेसर का हाथ काटने का आरोप लगा. PFI पर केरल में लव जिहाद यानी जबरदस्ती धर्मांतरण के बाद निकाह कराने का भी आरोप है. आरोप है कि इस संगठन को सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों से फंड मिलता है.


इस रिपोर्ट की एक कॉपी इस समय मेरे हाथ में है. इसे आप PFI के अपराधों की कुंडली भी कह सकते हैं. आज हम इस संगठन का पूरा कच्चा चिट्ठा देश के सामने रखेंगे. इस रिपोर्ट के पेज नंबर 8 पर लिखा है कि PFI का उद्देश्य देश में राजनीति को खत्म करके तालिबान की तर्ज पर इस्लाम को बढ़ावा देना है. यानी जिस संगठन का संबंध शाहीन बाग़ और देश के दूसरे हिस्सों में हो रहे विरोध प्रदर्शनों से है. वो तालिबान की विचारधारा से प्रभावित है.


इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि PFI के पास ऐसे Trained लोगों का समूह है जो Crude Bombs और IED जैसे Bomb बनाने में Expert हैं. आप सोचिए जिस संगठन पर नए नागरिकता कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों की Funding करने के आरोप हैं. उसके कार्यकर्ता आतंकवादियों की तरह बम बनाने में Expert हैं.


इस रिपोर्ट के मुताबिक अपनी ज़हरीली विचारधारा का प्रचार करने के लिए PFI ने कई और संगठनों का निर्माण किया है. जिनमें Campus Front Of india यानी CFI भी शामिल है. CFI Popular Front Of India की छात्र इकाई है. CFI पर देश की अलग अलग Universities के छात्रों को धर्म के नाम पर भड़काने के आरोप हैं.


इसके अलावा National Women's Front यानी NWF भी PFI से जुड़ा हुआ है. NWF महिलाओं को कट्टर इस्लाम की विचारधारा मानने के लिए बाध्य करता है. और Muslim Dress Code का पालन करने की नसीहत देता है.


इसके अलावा Social Democratic Party Of India यानी SDPI भी PFI से जुड़ी हुई है. SDPI एक तरह से PFI की राजनीतिक ईकाई है. SDPI PFI के लिए एक कवर की तरह काम करती है. ताकि PFI के कार्यकर्ता हिंसा फैलाते रहें और SDPI लोकतंत्र की दुहाई देकर राजनीति में अपनी पकड़ बनाती रहे.


इसके साथ ही All India Imam Council, India Fraternity Forum, Muslim Relief Network, Media Research And development Foundation, Markazul Hidaya (मर्कज़ुल हिदाया), और Green Valley Foundation भी PFI से जुड़े संस्थान हैं.


India Fraternity Forum यानी IFF विदेशों में भारतीय मुसलमानों का इस्तेमाल करके अपनी गतिविधियों के लिए Fund इकट्ठा करता है. तो Media Research And development Foundation का काम हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत पैदा करने वाले Content और साहित्य का निर्माण करना है. ये संस्था बाबरी मस्जिद और गुजरात दंगों को लेकर भड़काऊ और विवादास्पद Visual Content बना चुकी है . आरोपों के मुताबिक इस संस्था के संबंध कई इस्लामिक देशों और वहां की संस्थाओं से हैं. इनमे Islamic Development Bank जैसी संस्थाएं भी शामिल हैं.


कल हमने आपको बताया था कि PFI और इससे जुड़े संगठनों के कई दफ्तर देश की राजधानी दिल्ली में भी हैं. और इनमें से 5 दफ्तर दिल्ली के शाहीन बाग़ में है. वही शाहीन बाग़ जहां तक पहुंचना देश की पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए भी आसान नहीं है. इसलिए हम ये सवाल उठा रहे हैं कि कहीं विरोध प्रदर्शनों की आड़ में PFI का सच छिपाने की कोशिश तो नहीं की जा रही.


गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक PFI के संबध आतंकवादी संगठनों से भी हैं. माना जाता है कि PFI देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप में प्रतिबंधित की गई संस्था Students Islamic Movement Of India यानी SIMI की विचारधारा का पालन करती है. PFI और NDF के जितने भी संस्थापक हैं, वो सभी एक समय में SIMI के नेता रह चुके हैं. SIMI पर देश में हुई कई आतंकवादी घटनाओं में शामिल रहने के आरोप हैं.


PFI के पूर्व अध्यक्ष EM अब्दुर रहिमान 1980 से 1983 के बीच SIMI के राष्ट्रीय महासचिव थे. इसी तरह प्रोफेसर P Koya, ई अबु बकर, पी अब्दुल हमीद, के मोहम्मद अली, के सदात, पी अहमद शरीफ, के एच नसीर और VT इकरामुल हक भी कभी ना कभी SIMI से जुड़े हुए थे. या उससे हमदर्दी रखते थे और बाद में ये सभी लोग PFI के पदाधिकारी बन गए.


रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि PFI के संबध दूसरे कट्टर संगठनों से भी हैं. और ये संस्था देश भर के मुसलमानों को भड़काने का काम करती है. PFI और SDPI जैसी संस्थाएं मुसलमानों को भड़का कर कानून व्यवस्था के लिए चुनौती पैदा करने की भी कोशिश करती हैं.


ये रिपोर्ट NIA और दूसरी जांच एजेंसियों ने गृहमंत्रालय को कुछ समय पहले सौंपी थी और इसे पढ़कर लगता है कि PFI देश में इस्लामिक राज्य लाने का सपना देख रही है. यानी पहले जो काम पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठन किया करते थे. वही काम अब देश में मौजूद कुछ इस्लामिक संस्थाएं कर रही हैं.