ZEE जानकारीः राष्ट्रगान के सम्मान में निकले बेशकीमती आंसुओं का विश्लेषण
World Under 20 Athletics Championship में 400 मीटर की रेस में Gold Medal जीतने के बाद जब हिमा दास के सामने तिरंगा लहराया और भारत का राष्ट्रगान बजाया गया, तब उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. इसलिए आज सबसे पहले राष्ट्रगान के सम्मान में निकले इन बेशकीमती आंसुओं का विश्लेषण करना ज़रुरी है.
पिछले दो दिनों से दुनिया भर में फुटबॉल वर्ल्ड कप की चर्चा है और भारत में हिमा दास की चर्चा है. आज हम इन दोनों की तस्वीर दिखाएंगे लेकिन अलग अंदाज़ से. हम आपको ये भी बताएंगे कि जब हिमा दास पोडियम पर पहुंचीं तो उनकी आंखों में आंसू क्यों थे. वैसे तो आंसुओं को अक्सर कमज़ोरी की निशानी माना जाता है. लेकिन भारत की हिमा दास ने पूरी दुनिया को ये बताया है कि आंसू देशप्रेम की निशानी भी बन सकते हैं.
World Under 20 Athletics Championship में 400 मीटर की रेस में Gold Medal जीतने के बाद जब हिमा दास के सामने तिरंगा लहराया और भारत का राष्ट्रगान बजाया गया, तब उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े. इसलिए आज सबसे पहले राष्ट्रगान के सम्मान में निकले इन बेशकीमती आंसुओं का विश्लेषण करना ज़रुरी है. यकीन मानिए, राष्ट्रगान की धुन और हिमा दास के ये आंसू, आपके जीवन के सारे नेगेटिव विचारों को बहाकर ले जाएंगे. यहां हम ज़ोर देकर उन लोगों का ध्यान इन तस्वीरों की तरफ खींचना चाहते हैं, जो ’भारत तेरे टुकड़े होंगे’ गैंग में शामिल हैं. और जिन्हें राष्ट्रगान का सम्मान करने से ऐतराज़ है.
राष्ट्रगान का सम्मान क्या होता है, इसे समझने के लिए हमने दो और Videos आपके लिए निकाले हैं. पहला वीडियो Russia के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का है. और दूसरा वीडियो, Jamaica के एथलीट Usain Bolt का है. सबसे पहले ये देखिए कि पुतिन अपने देश के राष्ट्रगान का कितना सम्मान करते हैं.
पुतिन एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पहुंचे थे. तालियों से उनका स्वागत किया जा रहा था, लेकिन अचानक Russia का राष्ट्रगान बजने लगा. ऐसे में वो जहां थे, वहीं खड़े हो गए, और अपने पास बैठे, युवक को भी खड़े होने का इशारा कर दिया. ध्यान देने वाली बात ये है, कि अगर वो चाहते, तो बिना रुके आगे जा सकते थे. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. ये पुतिन का राष्ट्रवाद है.
अब Usain Bolt की बात करते हैं. वर्ष 2012 में London में हुए Summer Olympics के दौरान स्पेन की एक महिला पत्रकार बोल्ट का इंटरव्यू ले रही थीं. लेकिन अचानक स्टेडियम में राष्ट्रगान बजने लगा. और ये देखते ही बोल्ट ने इस इंटरव्यू को बीच में ही रोक दिया. यहां सबसे दिलचस्प बात ये है, कि स्टेडियम में उनके देश Jamaica का राष्ट्रगान नहीं, बल्कि अमेरिका का राष्ट्रगान बजाया जा रहा था. यानी अमेरिका का नागरिक ना होने के बावजूद बोल्ट ने वहां के राष्ट्रगान के प्रति वही सम्मान दिखाया, जैसा सम्मान वो अपने देश के राष्ट्रगान के प्रति करते हैं.
National Flag यानी राष्ट्रीय ध्वज और National Anthem यानी राष्ट्रगान...किसी भी देश की पहचान होते हैं. लेकिन ये पहचान इतनी आसानी से नहीं मिलती. इस पहचान को पाने के लिए खून बहाना पड़ता है....कुर्बानियां देनी पड़ती है...भयानक अत्याचार सहने पड़ते हैं....सर्वोच्च बलिदान करना पड़ता है. अंग्रेज़ों के अत्याचार के खिलाफ लंबे संघर्ष के बाद भारत को स्वतंत्रता मिली थी और दुनिया में अपनी अलग पहचान मिली थी. इस पहचान को सम्मान देना बहुत ज़रूरी है.
राष्ट्रगान के लिए सम्मान होना चाहिए, लेकिन कोई भी राष्ट्र तब बड़ा माना जाता है जब वो अपने नागरिकों का बिना उनकी जाति या मज़हब देखे सम्मान करे और उन्हें पूरी सुविधाएं दे. और जब भी दुनिया में ऐसे देशों की बात होगी, फ्रांस का नाम सबसे आगे होगा. फ्रांस ने कल ही फुटबॉल वर्ल्ड कप जीता है और फ्रांस की इस ऐतिहासिक जीत में उसके शरणार्थियों की बहुत बड़ी भूमिका है. वैसे तो दुनिया के ज्यादातर देश शरणार्थियों को बोझ समझते हैं, लेकिन फ्रांस ने शरणार्थियों के दम पर खुद को Football का एक Power House बना लिया. इसीलिए आज फ्रांस की इस अनोखी कहानी को Decode करना ज़रूरी है. लेकिन सबसे पहले आपको फ्रांस की ऐतिहासिक जीत पर हुए जश्न की कुछ तस्वीरें दिखाते हैं.
ये फ्रांस की राजधानी पेरिस की तस्वीरें हैं. जहां कल फ्रांस और क्रोएशिया के बीच का अंतिम मुकाबला देखने के लिए हज़ारों लोग जमा हुए थे. एक साथ फुटबॉल का मैच देखते हुए इतने लोग आपने शायद पहले कभी न देखे हों. लेकिन पेरिस में कल ऐसा ही नज़ारा था. जैसे ही फ्रांस ने वर्ल्ड कप जीता पूरे फ्रांस में जश्न शुरू हो गया. लोग Eiffel Tower के बाहर जश्न मना रहे थे. और ये सिलसिला पूरी रात चलता रहा.
फ्रांस ने क्रोएशिया को 4-2 से हराया और इसके बाद फ्रांस की टीम के ड्रेसिंग रूम में भी खूब जश्न हुआ, जिसमें फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron भी शामिल हुए. लेकिन फ्रांस को ये जश्न मनाने का मौका उनके देश में शरण लेने वाले विदेशी लोगों ने दिया है. आज से 20 साल पहले 1998 में भी जब फ्रांस ने वर्ल्ड कप जीता था, तो उस टीम में भी 11 खिलाड़ी शरणार्थी थे. और फ्रांस की आज की राष्ट्रीय टीम के 23 खिलाड़ियों में से 16 Immigrants यानी शरणार्थी हैं. यानी करीब 70 प्रतिशत खिलाड़ी शरणार्थी हैं और 30 फीसदी मुसलमान हैं.
पूरी दुनिया शरणार्थियों को हिकारत भरी नज़रों से देखती है, लेकिन फ्रांस ने इस सोच को बदल कर रख दिया है. और ये कहानी आज की नहीं है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब फ्रांस बर्बाद हुआ तो उसे दोबारा खड़ा करने में शरणार्थियों का ही बहुत बड़ा योगदान था. इराक और सीरिया में ISIS के आतंक के बाद पूरी दुनिया में शरणार्थियों का संकट बढ़ा, और शरणार्थियों को अपने देश में बसाने में फ्रांस आगे रहा.
फ्रांस में इस वक्त करीब 1 करोड़ विदेशी मूल के नागरिक रहते हैं. जो फ्रांस की कुल जनसंख्या के करीब 15% हैं. फ्रांस के कारोबारियों में करीब 22% विदेशी मूल के लोग हैं. जबकि विदेशी मूल के कामगारों की संख्या 24% से ज्यादा है. हालांकि कुल बेरोज़गारों में विदेशी मूल के लोगों की संख्या करीब 28% है. फ्रांस में रहने वाले विदेशी मूल के नागरिकों में यूरोपीय़ लोगों की संख्या 36% अफ्रीका के नागरिकों की संख्या 44%एशिया के लोग 14% और अमेरिका के लोग करीब 6% हैं.
हालांकि मौजूदा दौर में शरणार्थी फ्रांस में राजनीति का भी बहुत बड़ा साधन बन चुके हैं. उन्हें लेकर राष्ट्रवादी पार्टियां तरह तरह के आरोप भी लगाती हैं. लेकिन फ्रांस ने शरणार्थियों को बोझ नहीं बल्कि एक साधन माना और इसी वजह से आज वो फुटबॉल का विश्व विजेता बन गया है.
हमारी इस रिपोर्ट को देखने के बाद आप ये भी कह सकते हैं कि फ्रांस ने तो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शरणार्थियों को फ्रांस में जगह दी थी. फ्रांस की राष्ट्रवादी पार्टियां लगातार शरणार्थियों का विरोध करती रही हैं, लेकिन कुल मिलाकर फ्रांस ने पूरी दुनिया को ये दिखा दिया है कि शरणार्थियों का सम्मान कैसे किया जाता है. और उन्हें बोझ समझने के बजाए.. उन्हें एक अच्छा संसाधन यानी Resource कैसे बनाया जाता है ? ये कला दुनिया के सभी देशों को और ख़ासतौर पर भारत को सीखनी चाहिए.