ZEE जानकारी: क्या है अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद से जुड़ा पूरा विवाद?
पिछले 67 साल में इस देश ने अयोध्या में धर्मगुरुओं, नेताओं और अदालतों को आजमा कर देख लिया. लेकिन राम मंदिर बनने का फॉर्मूला नहीं निकल पाया.
आज हम एक बार फिर अयोध्या विवाद का विश्लेषण करेंगे...देश को आज़ाद हुए 70 साल बीत चुके हैं और क़रीब इतने ही समय से देश में ये विवाद है...आज अयोध्या का मुद्दा देश का सबसे बड़ा धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक विवाद का मुद्दा बन चुका है... और सच्चाई ये है कि जब तक अयोध्या विवाद का हल नहीं होता, तब तक देश में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल नहीं आ सकता...अगर ये कहें कि अयोध्या विवाद का हल किए बिना NEW INDIA नहीं बन सकता तो ग़लत नहीं होगा...
हमने बुधवार (15 नवंबर) को आपको बताया था कि इस विवाद का समाधान दोनों पक्षों के लोगों को मिल-जुलकर करना चाहिए और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला अंतिम विकल्प हो...क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर भी सवाल उठ सकते हैं... ऐसा भी हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के 50 या 100 साल बाद कोई एक समुदाय ये कहे कि हमारे साथ अन्याय हुआ था...लेकिन अगर दोनों समुदायों के लोग मिलकर फ़ैसला लेते हैं तो बाद में किसी के पास शिकायत का मौक़ा नहीं रहेगा...
हमारा ये भी मानना है कि इस विवाद को सुलझाने के लिए ऐसे लोगों को शामिल किया जाना चाहिए जो ना तो धर्मगुरु हों और ना ही कोई नेता... ये ऐसे लोग होने चाहिए जिनकी बात दोनों धर्म के लोगों को स्वीकार हो, जिनकी निष्पक्ष छवि हो...ऐसे लोगों को ढूंढने में मुश्किलें आएंगी, लेकिन इनकी बातचीत से जो समाधान निकलेगा, वो स्थायी होगा...ये एक मुश्किल लक्ष्य ज़रूर है, लेकिन दोनों समुदायों के ऐसे बहुत से लोग हैं जो मिल-बैठकर अयोध्या विवाद हल कर सकते हैं...
हालांकि इस कोशिश में ऐसे लोग भी सामने आएंगे जो नहीं चाहते कि अयोध्या विवाद का हल हो...क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो उनकी कई वर्षों से चली आ रही राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएंगी...बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए नये मुद्दे लाने होंगे... हम इस मुद्दे पर देश के लोगों के बीच जन-जागरण अभियान चलाना चाहते हैं जिससे लोगों को ये पता चल जाए कि वो कौन हैं जो नहीं चाहते कि अयोध्या मुद्दे का हमेशा-हमेशा के लिए निपटारा हो जाए...
आपमें से बहुत से लोगों को ये नहीं पता होगा कि ये पूरा विवाद क्या है.. इसलिए हम आपको बहुत संक्षेप में इसके बारे में समझाएंगे. ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1528 में अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू भगवान श्रीराम का जन्म स्थान मानते हैं. ये कहा जाता है कि ये मस्जिद मुग़ल बादशाह बाबर ने बनवाई थी, जिसकी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था.
ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर ये मस्जिद बनाई गई वहां भगवान राम का मंदिर था और उसे तोड़कर ही बाबर ने यहां पर मस्जिद बनवाई थी. लेकिन मुख्य रूप से इस विवाद की शुरुआत 1949 से हुई, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं. इसके बाद सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित करके यहां ताला लगा दिया.
फिर जनवरी 1950 में फैज़ाबाद की अदालत में हिंदू महासभा और दिगंबर अखाड़ा की तरफ से पहला मुकद्दमा दायर किया गया. इसके बाद राम मंदिर के नाम पर इस विवादित स्थल पर देश भर में कई दशकों तक राजनीति होती रही. 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर बनाने का आंदोलन तेज़ किया. और फिर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया. इस घटना के बाद देश की राजनीतिक और सामाजिक तस्वीर भी बदल गई.
इसके बाद से अयोध्या में राम मंदिर बनाये जाने का मुद्दा घोषणापत्रों का हिस्सा बन गया. लेकिन अयोध्या में राम मंदिर नहीं बना . इसी के साथ राम मंदिर विवाद को लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भी शुरू हो गई. और राम मंदिर के मुद्दे का लगातार राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा.
आज ये जानना भी ज़रूरी है कि देश की राजनीतिक पार्टियां किस तरह अयोध्या विवाद से फायदा लेती रही हैं... इसमें सबसे पहले नाम आता है बीजेपी का... वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ़ 2 सीट मिली थी लेकिन राम मंदिर का मुद्दा जोर-शोर से उठाने के बाद 1989 के चुनाव में ये आंकड़ा बढ़कर 85 हो गया.. आज भी वोट पाने के लिए बीजेपी इस मुद्दे का इस्तेमाल करती है.
अयोध्या विवाद का फ़ायदा उठाने में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही है...1986 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवाया गया था...कहा जाता है कि शाहबानो मामले से ध्यान हटाने के लिए राजीव गांधी ने ये क़दम उठाया था...बाद में भी कांग्रेस ने अयोध्या विवाद का फ़ायदा उठाया...आरोप लगते रहे कि कांग्रेस ने बार-बार मुसलमानों के मन में असुरक्षा का डर दिखाकर वोटों का ध्रुवीकरण किया है
अयोध्या विवाद का फ़ायदा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को भी हुआ... वर्ष 1990 में मुलायम सिंह यादव के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए अयोध्या में कारसेवकों पर फायरिंग हुई थी...मुलायम के इस आदेश पर काफ़ी विवाद हुआ और माना जाता है कि मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में करने में उन्हें काफ़ी मदद मिली...
महाराष्ट्र में शिवसेना ने भी अयोध्या विवाद का राजनीतिक फ़ायदा उठाया... असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी अयोध्या विवाद के नाम पर मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती रही है... राजनीतिक पार्टियों के अलावा धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं ने भी अयोध्या विवाद के नाम पर दुकानदारी चलाई...विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू महासभा, ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और शिया वक़्फ़ बोर्ड जैसी संस्थाओं को भी पूरे विवाद का फ़ायदा हुआ...
पिछले 67 साल में इस देश ने अयोध्या में धर्मगुरुओं, नेताओं और अदालतों को आजमा कर देख लिया. लेकिन राम मंदिर बनने का फॉर्मूला नहीं निकल पाया. इसलिए अब वक्त आ गया है कि हम अपने फॉर्मूले में कुछ बदलाव करें. क्योंकि जितने सारे फॉर्मूले इन तमाम लोगों ने बताए हैं वो सब नाकाम रहे हैं. क्या अब वक्त आ चुका है कि किसी ऐसे नये फॉर्मूले की बात की जाए, जिसके बारे में किसी ने न सुना हो. वो नया फॉर्मूला क्या हो सकता है. क्या वो नया फॉर्मूला वही फॉर्मूला है, जो ईस्ट और वेस्ट जर्मनी ने अपनाया था, और अपने देशों के बीच की दीवार गिरा दी थी.
क्या हिंदू और मुसलमान अपने बीच की दीवार तोड़ने का फैसला कर सकते हैँ. लेकिन हमें लगता है कि अगर ये दोनों संप्रदाय ऐसा चाहेंगे तो इनके धर्मगुरू और नेता ऐसा नहीं करने देंगे. इसलिए हम ऐसा कह रहे हैं कि एक ऐसा फॉर्मूला हो जिसमें भाईचारा, सहनशक्ति हो और एक दूसरे के लिए कुर्बानी देने का जज्बा भी हो.