DNA: क्या अपनी जाति का दबदबा बढ़ाने के लिए कर दिया गया फर्जी सर्वे? बिहार की जातीय जनगणना पर उठ रहे सवाल
Bihar caste census: क्या बिहार में हुई जातीय जनगणना फर्जी थी. जी न्यूज की पड़ताल में कई ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं, जिनके बारे में जानकर आप यकीन नहीं कर पाएंगे.
Zee News DNA on Bihar caste census: क्या बिहार में हुई जातीय जनगणना की Report फर्जी है? 2 अक्टूबर को जब ये रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी, तभी से ये सवाल लोगों के मन में है और आज जब ये रिपोर्ट बिहार विधानसभा में पेश हुई है, तब भी इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. Zee News को इससे जुड़े कुछ ऐसे दस्तावेज हाथ लगे हैं, जिससे ये साबित होता है कि बिहार में हुआ जातीय सर्वे यकीन करने लायक नहीं है. हम ऐसा किस आधार पर कह रहे हैं, वो भी आपको बताते हैं.
कागजों पर कर दी गई जनगणना
कायदे से तो जनगणना के लिए Proper Form होता है लेकिन यहां जातीय जनगणना रजिस्टर के पेपरों पर ही कर दी गई है. इन पेपरों में भी आधी-अधूरी जानकारियां भरी हुईं हैं. जातीय जनगणना के ये कागजात सिवान जिले के कैराताल में नायका टोला के हैं. जिसमें सबसे रोचक बात ये है कि सर्वे के बाद भी जाति के कॉलम में अवधिया जाति को कुर्मी जाति के साथ जोड़ दिया गया है. कुछ लोगों के नाम जोड़े गए लेकिन उनके जातीय विवरण गलत लिख दिए गए हैं.
हुआ ही नहीं जातिगत सर्वे
इन्हीं कागजातों को लेकर Zee News की टीम, सिवान के कैराताल पहुंची. इन कागजातों में दर्ज जातीय जनगणना का Fact Check किया. Zee News की टीम ने गांव में घर-घर जाकर लोगों से पूछा कि क्या इन कागजातों में दर्ज जानकारियां, उनके द्वारा दी गई जानकारियों से मेल खाती हैं? तो कई लोगों ने बताया कि उनका तो जातिगत सर्वे हुआ ही नहीं है.
कुछ लोगों ने ये भी बताया कि उनसे जो जानकारी ली गई, वो सादे कागज पर दर्ज की गई, कोई Form नहीं भरा गया. कई महिलाओं ने बताया कि सर्वे करने आए लोगों ने उन्हें डरा-धमकाकर खाली सादा कागज पर अंगूठा लगवाया.
सर्वे में की गई है धांधली!
सिवान के कैराताल से जातीय जनगणना Report का ये रियलिटी चेक इस बात का सबूत है कि बिहार में जातीय सर्वे में धांधली हुई है और रिपोर्ट जारी करने के लिए सरकार ने आनन-फानन में जातिगत Survey को पूरा किया है. सर्वे में जो गलतियां हुईं हैं, वो भूल से नहीं बल्कि जान-बूझकर की गईं हैं. जिसकी गवाही सिवान के कैराताल गांव के लोगों ने Zee News के कैमरे पर भी दी है.
बिहार में अवधिया जाति की आबादी करीब 12 लाख है. फिर भी अवधिया जाति के लिए जनगणना में अलग से कोई Code नहीं दिया. जातीय जनगणना में सरकार ने अवधिया जाति की जनगणना, कुर्मी समाज में करवा दी. लोग आरोप लगा रहे हैं कि कुर्मी जाति से आने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी जाति की जनसंख्या बढ़ाने के लिए ये खेल किया है.
बढ़ा दी गई अपनी जाति की संख्या?
इस आरोप पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही कह रहे हैं कि जातीय जनगणना में किसी भी जाति की जनसंख्या घटाई या बढ़ाई नहीं गई है . लेकिन प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती. हम आपको प्रमाण भी दे चुके हैं कैसे सिवान में अवधिया जाति को कुर्मी जाति में शामिल करके जातीय जनगणना कर दी गई.
तो इस बात की क्या गारंटी है कि जो खेल, अवधिया जाति के साथ किया गया. वो किसी और जाति के साथ नहीं किया गया होगा. लेकिन ऐसा किया क्यों गया? इसका Hint भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के उस बयान में मिल रहा है जिसमें उन्होंने बिहार में आरक्षण की सीमा 65 प्रतिशत करने की इच्छा जाहिर की है.
शक के दायरे में आई जनगणना
जब बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी हुई थी, तब बिहार सरकार एक सुर में दावा कर रही थी कि इससे सरकार को जनता के लिए बेहतर नीतियां बनाने में मदद मिलेगी. सरकारी योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी. लेकिन नीतीश सरकार ने इन आंकड़ों का इस्तेमाल जाति आधारित राजनीति में करने की मंशा साफ कर दी है. ये भी एक वजह है जिससे बिहार की जातीय जनगणना के आंकड़ों पर शक होता है.