DNA on Mathura Shri Krishna Janmabhoomi Shahi Idgah Masjid Dispute: मथुरा में हिंदू पक्ष पिछले करीब दो सौ वर्षों से शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा कर रहा है . अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष द्वारा शाही इदगाह मस्जिद के सर्वे की मांग को स्वीकार कर लिया है और आदेश दिया है कि मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण किया जायेगा. इस आदेश को मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी मुस्लिम पक्ष को झटका देते हुए आज इलाहाबाद हाईकोर्ट के शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश पर रोक लगाने से साफ मना कर दिया है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह के जमीनी विवाद में Court Commissioner, शाही ईदगाह परिसर का सर्वे करेंगे.


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मस्जिद का सर्वे करेंगे कोर्ट कमिश्नर


Court Commissioner की टीम शाही ईदगाह परिसर में जाकर उसके नीचे मंदिर होने के दावे की जांच करेगी और सबूत जुटाएगी. सर्वे का तरीका क्या होगा और ये सर्वे कब होगा. ये सब 18 दिसंबर को हाईकोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई में तय होगा. लेकिन आपको शायद पता नहीं होगा कि आज से 160 वर्ष पहले Archeological Survey of India ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद के प्राचीन मंदिर के अवशेषों पर बने होने की पुष्टि की थी.


क्या आपको किसी ने आजतक बताया कि अंग्रेजों के जमाने में 1832 से 1935 तक मथुरा की जिला अदालत से लेकर इलाहाबाद हाइकोर्ट तक ने हर बार पूरी जमीन का मालिक हिंदुओं को माना था. आज भी मथुरा के राजस्व रिकॉर्ड में जिस जगह पर मस्जिद बनी है, उसके मालिक के तौर पर श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट लिखा हुआ है. 


ये 5 बड़े सबूत जान लीजिए


आज से 160 वर्ष पुरानी Archeological Survey of India की रिपोर्ट, 27 जनवरी 1670 को दिया गया मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब का फरमान और 1968 के उस समझौते की Original Copy, जो श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह इंतजामिया कमेटी के बीच हुआ था. इसके अलावा वर्ष 1935 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की Copy, जिसमें  इस विवाद में हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया था और उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग का वो दस्तावेज, जिसमें शाही ईदगाह मस्जिद की जमीन का मालिकाना हक श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम दर्ज है .


ये वो सबूत हैं जिनके आधार पर हिंदू पक्ष दावा करता है कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, प्राचीन कृष्ण मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी. लेकिन इन दस्तावेजों में लिखे सच को समझने के लिए जरूरी है कि आपको इस विवाद का इतिहास पता हो तो सबसे पहले आपको वही बता देते हैं. 


2.5 एकड़ जमीन पर है पूरा विवाद


दरअसल ये पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है, जिसमें 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. ये बंटवारा 1968 के समझौते के आधार पर हुआ है लेकिन ये समझौता भी विवादों में है. हिंदुओं का दावा है कि जिस जमीन पर ईदगाह मस्जिद है, पहले वहां मंदिर था जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर मस्जिद बनवाई थी.


हिंदू पक्ष का ये भी दावा है कि ईदगाह मस्जिद, वही जगह है जहां कंस की कारागार में देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया था. यानी ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी हुई है. हिंदू पक्ष चाहता है कि उसे पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक दिया जाए. जिसको लेकर मथुरा कोर्ट में 25 सितंबर 2020 में याचिका दाखिल की गई थी. जिसे कोर्ट ने Places Of Worship Act 1991 के आधार पर खारिज कर दिया था.


जिसके बाद 12 अक्टूबर 2020 को दोबारा पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. इसी केस में अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया है. लेकिन मुस्लिम पक्ष ये मानने के लिए तैयार नहीं है कि शाही ईदगाह मस्जिद, श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी है.


औरंगजेब के आदेश पर तोड़ा गया मंदिर


पुरानी कहावत है कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती. अब हम आपको ऐतिहासिक प्रमाणों और सबूतों को एक-एक कर आपके समाने बताते हैं. इसकी शुरुआत मुस्लिम आक्रांता औरंगजेब के उस फरमान से करते हैं, जो उसने 27 जनवरी 1670 को दिया था. इस फरमान की मूल प्रति फारसी भाषा में है. जिसका अंग्रेजी अनुवाद..औरंगजेब के फरमानों के अनुवाद पर लिखी पुस्तक Masir A alamgiri में किया गया है. 


इस फरमान में लिखा है कि रमज़ान के पाक महीने में मथुरा स्थित केशव देव मन्दिर को तोड़ने का फरमान बादशाह ने दिया है. मन्दिर को तोड़ कर उसकी मूर्तियों को आगरा स्थित बेगम साहिब मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे दफना दिया जाना है. साथ ही मथुरा का नाम अब से बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया है. इतिहासकारों के मुताबिक मन्दिर को विध्वंस करने के फरमान पर अमल होने के बाद, 1670 में ही शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण...ध्वस्त मन्दिर के अवशेषों से कर दिया गया था. 


विदेशियों ने भी की तारीफ


विध्वंस से पहले मन्दिर कितना सुंदर था, इसका जिक्र डॉक्टर Francois Bernier (बेर्नियर) अपनी किताब Travels in the Mogul Empire 1656-1666 में करता है. Francois Bernier लिखता है कि दिल्ली से आगरा के बीच 50 से 60 मील यानी 277 से 330 किलोमीटर की दूरी के बीच कुछ भी देखने लायक नही है. सब बेकार है सिवाए मथुरा के जहां एक प्राचीन और सुंदर मंदिर अभी भी खड़ा है. इतिहासकार मानते हैं कि ये मथुरा का केशव राय मन्दिर है, जिसका जिक्र बेर्नियर कर रहे है. जिसे औरंगजेब ने तुड़वाकर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करवा दिया था.


मथुरा में मस्जिद की दीवारों पर मंदिर के निशान पहचानने के लिए किसी पारखी नजर की जरूरत नहीं है. मुस्लिम आक्रांताओं ने हिंदू निशानों और प्रतीक चिन्हों को मिटाने में मेहनत तो पूरी की. लेकिन कहते हैं ना..दुनिया में ऐसी कोई दीवार नहीं बनी जो सच को दबा पाए. पूरी 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक तो राय पटनीमल से होते हुए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के पास आ गया. लेकिन 2.5 एकड़ जमीन के लिए सैकड़ों वर्षो से भगवान श्रीकृष्ण खुद अपनी जन्मभूमि के मालिकाना हक की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं. जिनके पैरवीकारों में शामिल हैं महेंद्र प्रताप सिंह.


मस्जिद कमेटी को ASI पर भरोसा नहीं


ऐतिहासिक तथ्यों से लेकर ASI की रिपोर्ट तक शाही ईदगाह मस्जिद के हिन्दू मन्दिर को तोड़ कर बनाये जाने की गवाही दे रही है लेकिन शाही ईदगाह मस्जिद इंतजामिया कमेटी तो ASI की रिपोर्ट को ही मनगढंत बता रही है.


अयोध्या, मथुरा हो या काशी या फिर कुतुब मीनार...पेशे से वकील हरिशंकर जैन...30 वर्षो से आराध्यों के हक की लड़ाई कोर्ट में लड़ रहे हैं . वो मथुरा में हिंदू मुस्लिम पक्ष के बीच हुए 1968 के समझौते को Fraud की संज्ञा दी रहे हैं और उम्मीद जता रहे हैं जैसे अयोध्या में जीत हासिल को थी, वैसे ही मथुरा में करेंगे.


हरिशंकर जैन कहते हैं कि अगर कल को नौकर को घर की जिम्मेदारी दे दी जाए और मालिक की अनुपस्थिति में नौकर पड़ोसी के साथ मकान का समझौता कर ले तो क्या नौकर के समझौते के आधार पर मकान पड़ोसी का हो जाएगा. मथुरा जन्मभूमि और शाही ईदगाह के विवाद पर मथुरा की अलग अलग अदालतों में कई मुकदमे चल रहे हैं. लेकिन प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती . शाही ईदगाह मस्जिद खुद इसकी गवाही दे रही है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि अगर कहीं है तो यहीं है, यहीं है. असल में ये समझौता ही इस विवाद की असली जड़ है.



सरकारी कागज खोल रहे कमेटी की पोल


शाही ईदगाह मस्जिद की इंतजामिया कमेटी..वर्ष 1976 में इसी कथित समझौते को लेकर मथुरा नगर पालिका के पास जाती है और उससे 2.5 एकड़ जमीन जहां मस्जिद है, उसे मस्जिद इंतजामिया कमेटी के नाम करने का आवेदन करती है लेकिन मथुरा नगरपालिका इस समझौते को ही खारिज कर देती है. मथुरा नगर निगम का वो Document भी है जिसमें खेवत संख्या 255...जहां शाही ईदगाह मस्जिद बनी है..उस जमीन का मालिक..श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट..लिखा हुआ है. 


इसके अलावा हमारे पास वर्ष 2015 का उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा verified खतौनी की भी Copy है..यहां भी खेवत संख्या 255 का मालिक भगवान श्रीकृष्ण को ही बताया गया है. यानी सारे कागज, शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर होने के पक्ष में गवाही दे रहे हैं और शाही ईदगाह मस्जिद की दीवारों पर भी सच साफ-साफ दिखाई दे रहा है, जो हमने आपको दिखाया भी है. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाही मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश दे दिया है. जिसमें क्या निकलकर सामने आता है..ये देखने वाली बात होगी.