Connection of Dholna Jewelery with Mughals: मुगलिया सल्तनत बेशक अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसके अत्याचारों का कहानियां अब भी जीवित हैं. उन्होंने और पश्चिम एशिया से आए दूसरे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने न केवल भारत का बेशकीमती खजाना लूटा बल्कि देश की सभ्यता-संस्कृति को भी नष्ट करने की भरसक कोशिश की. उनके उन अत्याचारों का प्रतीक ढोलना (Dholna Jewel) भी है. मंगलसूत्र की तरह गले में पहना जाने वाला यह आभूषण पूर्वी यूपी, बिहार और झारखंड में सुहागिनों की निशानी माना जाता है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बारातों पर हमला कर देते थे मुगल सैनिक


इतिहासकार कहते हैं कि भारत में शादी-विवाह समेत सभी मांगलिक कार्य दिन में ही होते थे. लेकिन मुगलों के सैनिक (Mughal Empire) खूबसूरत लड़कियों की चाह में शादी-समारोह पर हमला कर देते थे और सामान समेत लड़कियो को उठा ले जाते थे. उनके इन बार-बार हमलों से बचने के लिए दिन के बजाय रात में शादियों का चलन शुरू हुआ. लड़कियों के फेरे होने के साथ ही उनकी विदाई भी तारों की छांव में होती थी. हालांकि इसके बावजूद लड़कियां सुरक्षित नहीं थी.


बचने के लिए निकला गया ये रास्ता


ऐसे में लोगों ने सोच-विचार कर एक रास्ता निकाला गया. लड़कियों के गले में मंगलसूत्र की तरह ढोलना (Dholna Jewel) पहनाया जाता था. ढोलक की आकार वाले इस आभूषण का बहुत धार्मिक महत्व था. मुगलों के हमले से बचने के लिए अफवाह फैलाई गई कि ढोल के आकार वाले इस आभूषण में महिलाएं सूअर के बाल भरकर पहनती हैं. चूंकि मुसलमान सूअर को नापाक जानवर मानते हैं. इसलिए  सूअर के बाल पहनने की वजह से मुगल सैनिक (Mughal Empire) ऐसी महिलाओं को हाथ लगाने से बचते थे. साथ ही उसके आभूषणों को भी नहीं छूते थे. रात में दुल्हन के गले में ढोलना देखकर वे उससे दूर ही रहते थे. 


गले में धारण करने लगीं ढोलना


ढोलना (Dholna Jewel) से जुड़ी कई किवदंतियां भी मौजूद हैं. इसे हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों में पहना जाता है. हालांकि हिंदुओं में इसे ढोलना और मुसलमानों में इसे ताबीज कहा जाता है. अधिकतर मुगल सैनिक अपने गले में ताबीज पहनते थे. उनका जोर तलवार के बल पर मार-काट मचाकर ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं को मुस्लिमों के रूप में परिवर्तित करने का रहता था. जिस लड़की के गले में वे ढोल नुमा ताबीज पहने देखते थे, उसे जाने देते थे. इसके चलते मुगलों के अत्याचारों से खुद को बचाने के लिए ताबीज के जैसा दिखने वाले ढोलना को गले में धारण करने का चलन बढ़ गया, जिसके बाद वे खुद को मुस्लिम बताकर वहां से बच निकलती थीं. 


कुछ क्षेत्रों तक सिमट गई परंपरा


ढोलना (Dholna Jewel) का उदय कहां से हुआ, इसे लेकर लोगों की राय बंटी हुई है. कई इतिहासकारों का मानना है कि ढोलना एक राजस्थानी शब्द है. इसलिए ढोलना का उदय राजस्थान में हुआ, जहां से मुगल काल में यह चलन बिहार, पूर्वी यूपी और झारखंड समेत दूसरे हिस्सों में फैल गया. आदि गुरू शंकराचार्य की पुस्तक ‘सौंदर्य लहरी’ के मुताबिक 6वीं सदी में ढोलना और मंगलसूत्र पहनने का चलन शुरू हुआ. मंगलसूत्र पहनने की परंपरा तो पूरे देश में फैल गई लेकिन ढोलना का रिवाज कुछ खास क्षेत्रों तक सिमट कर रह गया. 


दूल्हे का बड़ा भाई करता है भेंट


ढोलना (Dholna Jewel), असल में लाल धागे मे ढोल के आकार में ताबीज जैसा होता है. इसके बीच में कुछ लड़ियां लगी होती है. शादी समारोह में आम तौर पर दूल्हे का बड़ा भाई इसे दुल्हन को पहनने के लिए भेंट करता है. प्रत्येक शुभ अवसर पर विवाहिताएं बड़े शौक के साथ अपने गले में इस आभूषण को धारण करती हैं. 


(भारत की पहली पसंद ZeeHindi.com - अब किसी और की ज़रूरत नहीं)