Odisha Train Accident: ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम हुए रेल हादसे में 280 लोगों की मौत हो चुकी है और एक हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं. हादसे को लेकर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो चुका है. इसी बीच इस दुर्घटना के कारणों का पता लगाया जा रहा है. बड़ा सवाल यह भी है कि तीन ट्रेनें कैसे टकराईं. इसी बीच सोशल मीडिया पर ट्रेन के कोच में के विंडो में लगी लोहे की रॉड भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने दुर्घटना के बाद की कुछ तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हुए यह कहा कि यह लोहे की रॉड इतनी मजबूत होती है कि अंदर बैठे यात्री इसे तोड़कर बाहर नहीं आ सकते हैं. इस लोहे की रॉड का दुर्घटना के बाद क्या भूमिका होनी चाहिए. क्या ये मौत का सबब हैं.


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रॉड को लेकर पहले पक्ष का तर्क
दरअसल, ओडिशा के बालासोर में हुए दर्दनाक एक्सीडेंट के बाद भारतीय ट्रेनों में सुरक्षा को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है. ट्रेनों में लगी विंडो को लेकर सोशल मीडिया पर दो हिस्सों में लोग बंटते हुए नजर आ रहे हैं. एक धड़े का कहना है कि यह लोहे की रॉड इतनी मजबूत होती हैं कि एक्सीडेंट के बाद लोग अंदर से बाहर अगर निकलना चाहें, तो वे नहीं निकल सकते हैं, जबकि अगर यह रॉड नहीं होती तो आसानी से बिना दरवाजे के भी निकल सकते हैं.


रॉड की जगह कुछ और?
इसके साथ ही यह भी तर्क दिया जाता है कि कोच में एक से अधिक इमरजेंसी खिड़कियां होती हैं और दुर्घटना के तुरंत बाद अधिक लोगों को निकलना रहता है, ऐसे में एक साथ इतने लोग इतनी जल्दी नहीं निकल सकती हैं या निकाले जा सकते हैं. ऐसे में या तो इमरजेंसी खिड़कियों की संख्या बढ़ाई जाए या फिर लोहे की रॉड की जगह कुछ और चीजों का प्रयोग किया जा सकता है, ताकि दुर्घटना के बाद लोगों को निकलने में आसानी हो सके.


दूसरे पक्ष का तर्क
वहीं दूसरे पक्ष का तर्क है कि दुर्घटनाएं तो हमेशा से ही दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं, लेकिन जब दुर्घटनाएं नहीं होती हैं, ट्रेनें लगातार चलती हैं तो खिड़की में लगाई जाने वाली रॉड सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होती हैं. अगर ये लोहे की रॉड ना लगाई जाएं तो ना सिर्फ विंडो के पास बैठे हुए यात्री के जानमाल का नुकसान रहता है बल्कि ट्रेन के अंदर बैठे लोगों की सुरक्षा भी जोखिम में रहती है. यहां तक कि चलती ट्रेन में कई बार लोग अपने शरीर के हिस्से को बाहर निकाल सकते हैं. इससे उनको नुकसान हो सकता है.


वहीं अगर ये लोहे की रॉड ना रहें तो स्टेशनों पर लोग दरवाजे की बजाए इसी खिड़की से निकलने और बाहर निकलने की कोशिश करेंगे. यह भी सुरक्षा के लिहाज से बेहतर नहीं होगा. फिलहाल बालासोर रेल दुर्घटना के बाद एक बार फिर से सुरक्षा उपकरणों और हाल के दिनों में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के द्वारा किए गए तमाम दावों पर प्रश्नचिन्ह उठते दिख रहे हैं. अब देखना यह होगा कि रेल मंत्रालय इस दिशा में क्या कदम उठाता है.