Pink Cobra: क्या आपने कभी देखा है सफेद-गुलाबी कोबरा? रिसर्चर ने किया चौंकाने वाला खुलासा
Trending News: रिसर्चर की खोज को अंतरराष्ट्रीय जर्नल `रेप्टाइल्स एंड एम्फीबियंस` में दर्ज किया गया है. इससे पता चलता है कि इन कोबरा में एल्बिनिज्म नामक एक आनुवंशिक घटना होती है, जिसमें प्राकृतिक रंग वर्णक मेलेनिन नहीं पाया जाता.
White Pink Cobra Found In Prayagraj: वाइल्डलाइफ प्रेमियों और रिसर्चर्स के लिए एक महत्वपूर्ण खोज में उत्तर प्रदेश में सांप की एक नई प्रजाति की पहचान की गई है. यह खोज स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में संभावित बदलाव का संकेत देती है. इस सांप को "अल्बिनो स्पेक्टेकल्ड कोबरा" नाम दिया गया है. ये सांप पूरी तरह से सफेद और गुलाबी रंग के शरीर और चमकती हुई लाल आंखों वाला होता है. इसकी दुर्लभ बनावट के कारण इस पर सबका ध्यान गया है. यह खोज प्रयागराज स्थित पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन आने वाले भारतीय वानिकी अनुसंधान शिक्षा प्रशिक्षण और पारिस्थितिकी पुनर्स्थापना केंद्र में शोधरत राहुल निषाद द्वारा की गई है.
रिसर्चर ने किया कोबरा पर रिसर्च
उनकी खोज को अंतरराष्ट्रीय जर्नल "रेप्टाइल्स एंड एम्फीबियंस" में दर्ज किया गया है. इससे पता चलता है कि इन कोबरा में एल्बिनिज्म नामक एक आनुवंशिक घटना होती है, जिसमें प्राकृतिक रंग वर्णक मेलेनिन नहीं पाया जाता. राहुल निषाद ने बताया कि यह खोज न सिर्फ जैव विविधता के बारे में हमारी समझ को बढ़ाती है बल्कि आर्द्रभूमि के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को भी रेखांकित करती है. राहुल निषाद ने पहले भी भारत भर में वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों और वन संरक्षण प्रयासों पर शोध किया है. प्रयागराज के रहने वाले राहुल निषाद ने देहरादून की दून यूनिवर्सिटी से वानिकी की पढ़ाई की है और फिर प्रयागराज के नैनी स्थित सुआट्स यूनिवर्सिटी (Shuats University) से पोस्टग्रैजुएशन की डिग्री हासिल की. उनकी शोध रुचि भारतीय वन्यजीवों और वन पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े कई विषयों को शामिल करती है.
अल्बिनो स्पेक्टेकल्ड कोबरा की खोज
राहुल निषाद ने बताया कि ये कोबरा दीमक और मेढकों का शिकार करना पसंद करते हैं, इसलिए ये अक्सर ऐसे इलाकों में पाए जाते हैं जहां ये शिकार आसानी से मिलते हैं, जैसे आर्द्रभूमि और मैदानी इलाके. अल्बिनो स्पेक्टेकल्ड कोबरा की खोज भारत में वन्यजीव अनुसंधान और संरक्षण कार्यों के महत्व को रेखांकित करती है. इससे देश में मौजूद विविध पारिस्थितिकी तंत्र को समझने और इन खास प्रजातियों के रहने के लिए उपयुक्त माहौल को बनाए रखने में मदद मिलेगी.