Indo-Pak Partition Pain: भारत-पाक बंटवारे में खो दिया था 22 रिश्तेदारों को, अब 75 साल बाद पाकिस्तान में मिला भतीजा
Independence Day: दोनों लोगों को एक-दूसरे से मिलने का इंतजार था. उनके इस इंतजार को यूट्यूब के जरिये दोनों देशों के दो यूट्यूबर ने मिलकर खत्म किया. अब 75 साल बाद मोहन सिंह अपने चाचा सरवन सिंह से मिलने के लिए तैयार हैं. दोनों परिवार अगले कुछ दिनों में करतारपुर में मिलेंगे.
Latest Trending News from Pakistan: आज के समय में सोशल मीडिया का खास महत्व हो गया है. यह सिर्फ एंटरटेनमेंट या किसी समस्या के समाधान का साधन ही नहीं, बल्कि कई बिछड़ों को मिलवाने का प्लेटफॉर्म भी बनता जा रहा है. इसने कई ऐसे लोगों को भी मिलवाया है जो 20-25 साल से भी ज्यादा समय से एक-दूसरे से बिछड़े थे. इसने अलग-अलग देशों में मौजूद बिछड़े भाइयों और दोस्तों को भी मिलवाया है. हाल ही में ऐसा ही एक और मामला पंजाब से सामने आया है. यहां 92 साल के एक बुजुर्ग करीब 75 साल बाद अपने परिवार के उन सदस्यों से मिलने में सफल हुए जो आजादी के बाद हुए विभाजन के दौरान उनसे बिछड़ गए थे.
1947 में बिछड़ गया था पूरा परिवार
यह कहानी शुरू होती है 1947 से, जब विभाजन के बाद शुरू हुए दंगे की वजह से 6 वर्षीय मोहन सिंह अपने परिवार से अलग हो गए थे. उनके परिवार के 22 सदस्य एक दूसरे से बिछड़ गए थे. अधिकतर पुरुषों की हत्या कर दी गई थी, जबकि कई महिलाओं ने बच्चों संग कुएं में कूदकर जान दे दी थी. मोहन सिंह किसी तरह बच गए थे. वहां उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार ने किया. मोहन अब अब्दुल खालिक हैं और उनकी उम्र 75 साल हो गई है, लेकिन उन्होंने बचपन से लेकर अब तक अपने बिछड़े हुए परिवार वालों से मिलने की आस नहीं छोड़ी थी. इधर बिछड़कर भारत आ गए उनके चाचा सरवन सिंह ने भी अपने भतीजे और परिवार के दूसरे सदस्यों की तलाश की उम्मीद नहीं छोड़ी थी.
यूट्यूबर की कोशिशों से मिले, अब करतारपुर में होगी मुलाकात
दोनों लोगों को एक-दूसरे से मिलने का इंतजार था. उनके इस इंतजार को यूट्यूब के जरिये दोनों देशों के दो यूट्यूबर ने मिलकर खत्म किया. अब 75 साल बाद मोहन सिंह अपने चाचा सरवन सिंह से मिलने के लिए तैयार हैं. दोनों परिवार अगले कुछ दिनों में करतारपुर के गुरुद्वारा में एक दूसरे से मिलेगा. भारत से सरवन सिंह के साथ उनकी बेटी रछपाल कौर भी मौजूद रहेंगी.
ऐसे शुरू हुई मिलाने की कोशिश
जालंधर में रहने वाले 92 साल के सरवन सिंह ने बताया कि 1947 में दंगों के दौरान उनके माता-पिता, दो भाई और दो बहनों की हत्या कर दी गई थी. सरवन सिंह की बेटी, रछपाल कौर ने बताया कि, “हमारे परिवार के सदस्य, जो दंगों से बच गए ने हिंसा के बाद भी मोहन की तलाश की, लेकिन वह नहीं मिला.” परिवार को यह नहीं पता था कि 6 साल के मोहन का क्या हुआ, लेकिन कुछ समय पहले पंजाब मूल के गुरदेव सिंह जो ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं, ने मोहन का पता ढूंढ निकाला. दरअसल, सिख लेखक सुखदीप सिंह बरनाला ने विभाजन की त्रासदी पर 'द अदर साइड ऑफ फ्रीडम' शीर्षक से एक यूट्यूब डॉक्युमेंट्री बनाई थी. इस सीरीज का एक एपिसोड सरवन सिंह के परिवार पर भी था. इस एपिसोड को गुरदेव सिंह ने भी देखा. इसमें सरवन सिंह ने लापता बच्चे के पहचान के निशान का उल्लेख किया था, जिसे सुनकर गुरदेव सिंह ने उसकी तलाश शुरू करने का फैसला किया.
डॉक्युमेंट्री में ये बताई थी निशानी
गुरदेव सिंह ने बताया कि डॉक्युमेंट्री में सरवन सिंह ने बताया था कि मोहन के दो अंगूठे थे और उसकी एक जांघ पर एक काला धब्बा था. इसके बाद गुरदेव ने एक और वीडियो यूट्यूब पर देखा, जिसमें पाकिस्तान का एक शख्स कुछ इसी तरह की निशानी के बारे में बता रहा था. इसके बाद उन्होंने पाकिस्तानी यूट्यूबर की मदद से मोहन का नंबर पता किया और एक दिन मोहन और सरवन सिंह की फोन पर बात कराई. इसके बाद दोनों ने एक दूसरे से करतारपुर में जल्द मिलने का वादा किया.
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