Pakistan Politics: पाकिस्तान कार्यवाहक प्रधानमंत्री के लिए रूप में अनवर-उल-हक काकर को चुना गया है. वह बलूचिस्तान प्रांत के एक पश्तून हैं और बलूचिस्तान अवामी पार्टी (बीएपी) के सदस्य हैं. यह पार्टी देश के शक्तिशाली प्रतिष्ठान (सेना) के करीब मानी जाती है. काकर के समने कई बड़े काम पड़े हैं जिन्हें उन्हें पूरा करना होगा.


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काकर की सबसे बड़ी चुनौती 90 दिनों के भीतर चुनाव करानी होगी. लेकिन यह इतना आसान भी नहीं होगा. ज्यादातर एक्स्पर्ट्स का मानना है कि आम चुनाव में काफी वक्त लग सकता है. अगर निर्वाचन आयोग नई जनगणना के आधार पर परिसीमन करता है, तो इसमें अधिक समय लग सकता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि आयोग अब नए सिरे से परिसीमन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है.


बता दें नई जनगणना की अनुमति काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट्स (सीसीआई) द्वारा दी गई है. नए परिसीमन का का काम पूरा होने में 6 महीने या उससे अधिक समय लग सकता है. इसके साथ ही चुनाव आयोग को नई वोटर लिस्ट भी बनानी होगी. अगर चुनाव में 90 दिनों से अधिक की देरी होती है, तो संवैधानिक और कानूनी प्रश्न खड़े हो सकते हैं.


पाकिस्तान का आर्थिक संकट
काकर के सामने दूसरी बड़ी पाकिस्तान की खस्ताहल अर्थव्यवस्था है. पाकिस्तान में महंगाई आसमान पर है. देश में रोजमर्रा की चीजें जैसे की आटे दाल का भी संकट देखा गया है. इस्लामाबाद के सामने एक मात्र उम्मीद है IMF है जो कि पाकिस्तान को तीन अरब डॉलर का कर्ज देने को तैयार हो गया था. यह कर्ज 9 महीने में दिया जाएगा.


ऐसे में मुश्किल आर्थिक हालात में कांकर की भूमिका अहम हो जाता है. हालांकि पहले कार्यवाहक पीएम का मुख्य काम चुनाव करवाने तक ही सीमित होता है लेकिन पाकिस्तान सरकार द्वारा चुनाव अधिनियम 2017 में किए गए संशोधन से कार्यवाहक प्रधानमंत्री की भूमिका काफी बढ़ गई हैं. इस संशोधन के तहत कार्यवाहक सरकार को अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ जुड़ने के लिए अतिरिक्त शक्तियां प्रदान की गईं थीं.


सेना के साथ संबंध
पाकिस्तान में सरकार को सेना के साथ एक बेहतर समझ बनाना जरूरी होती है. पाक आर्मी को देश में असली ताकत माना जाता है और सरकार को उसके आधीन समझा जाता है. आजाद पाकिस्तान के इतिहास में तीन दशकों से ज्यादा समय तक फौज का सीधा शासन रहा है. हालांकि काकर की पार्टी को सेना का समर्थक माना जाता है लेकिन कार्यवाहक सरकार अपने तय समय के बाद भी जारी रहती है तो सेना को निर्वाचित सरकार के बिना अपना नियंत्रण और मजबूत करने का मौका मिल सकता है.