चीन की नापाक चाल! आसियान-भारत नेवी ड्रिल की जासूसी का था प्लान, लेकिन...
China News: चीन विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में बेहद आक्रामक रवैया अपना रहा है. यहां बीजिंग अपने पड़ोसियों के साथ क्षेत्रीय विवादों में उलझा हुआ है. वहीं भारत चीन पर दृढ़ता से नज़र रखने के साथ, आसियान देशों के साथ रक्षा संबंधों को लगातार बढ़ा रहा है.
South China Sea: चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीनी जहाजों और विमानों ने दक्षिण पूर्व सागर में पहले आसियान-भारत नौसैनिक अभ्यास की जासूसी करने की कोशिश की. हालांकि यह अभ्यास योजना के अनुसार आगे बढ़ा क्योंकि चीनी अभ्यास करने वाले युद्धपोतों के करीब नहीं आए. सोमवार को दक्षिण चीन सागर में यह अभ्यास समाप्त हो गया.
मीडिया रिपोट्स के अनुसार कई चीनी समुद्री ‘मिलिशिया’ जहाजों को इस क्षेत्र में देखा गया. इस दौरान भारत, फिलीपींस, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, थाईलैंड, ब्रुनेई और वियतनाम के युद्धपोत आसियान-भारत समुद्री अभ्यास (AIME) के ‘समुद्री चरण’ का संचालन कर रहे थे.
चीनी जहाजों पर रखी गई निगरानी
भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने कहा, ‘चीनी जहाज AIME अभ्यास या युद्धाभ्यास को प्रभावित करने के करीब नहीं आए. हालांकि, चीनी जहाजों पर सावधानीपूर्वक निगरानी रखी गई थी.’
इससे पहले, भारतीय निर्देशित-मिसाइल विध्वंसक आईएनएस दिल्ली और बहुउद्देश्यीय स्टील्थ फ्रिगेट आईएनएस सतपुड़ा ने सिंगापुर के चांगी नौसैनिक अड्डे पर अभ्यास के 'हार्बर चरण' में भाग लिया था.
बता दें चीन विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में बेहद आक्रामक रवैया अपना रहा है. यहां बीजिंग अपने पड़ोसियों के साथ क्षेत्रीय विवादों में उलझा हुआ है.
आसियान देशों के साथ संबंध बढ़ा रहा है भारत
चीन पर दृढ़ता से नज़र रखने के साथ, भारत सैन्य अभ्यासों, लड़ाकू विमानों और पनडुब्बियों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों और अब तेजी से हथियारों की आपूर्ति के माध्यम से आसियान देशों के साथ रक्षा संबंधों को लगातार बढ़ा रहा है.
उदाहरण के लिए, भारत ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के तट-आधारित एंटी-शिप सिस्टम की तीन बैटरी की आपूर्ति कर रहा है, जो 290 किमी की स्ट्राइक रेंज के साथ मैक 2.8 पर ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक उड़ती हैं. इसे लेकर फिलीपींस के साथ पिछले साल जनवरी में $375 मिलियन का अनुबंध हुआ था.
इस तरह के पहले ब्रह्मोस निर्यात ऑर्डर से इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे अन्य एशियाई देशों के साथ इस तरह के सौदों का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद है.