India-Pakistan 1971 War: आज भारत विजय दिवस (Vijay Divas) मना रहा है तो पाकिस्तान (Pakistan) सदमे में है. हर साल 16 दिसंबर की तारीख आती है और पाकिस्तान के जले पर नमक छिड़क देती है क्योंकि आज की तारीख भारत के सामने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों के सरेंडर की गवाह है. हाल ही में पाकिस्तानी सेना से रिटायर हुए सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने माना था कि 1971 के युद्ध में पाकिस्तान हार गया था. हालांकि उन्होंने उस हार को पाकिस्तानी फौज की नहीं बल्कि पाकिस्तानी सियासत की हार बताया था. विजय दिवस के जश्न के बीच आज जानिए कि बाजवा ने क्या कहा था.


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1971 की हार पर पाकिस्तान शर्मसार


1971 की शर्मनाक हार पर जब जनरल बाजवा बोल रहे थे तब वो पाकिस्तान के सेना प्रमुख थे. लेकिन अब वो रिटायर हो चुके हैं. पर ये बात सिर्फ 22 दिन पहले की है. बाजवा ने ये तो माना कि 1971 में भारत के हाथों पाकिस्तान बुरी तरह हारा लेकिन उन्होंने इसे सेना की नहीं बल्कि पाकिस्तान की सियासत की हार बताया.


बाजवा ने हार को बताया सियासी नाकामी


पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा था कि मैं आपके सामने एक ऐसे मुद्दे पर भी बात करना चाहता हूं जिस पर अक्सर लोग बात करने से कतराते हैं और ये 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में हमारी फौज की हार से जुड़ी है. मैं यहां पर कुछ बातें दुरुस्त करना चाहता हूं सबसे पहली पाकिस्तान का विभाजन एक फौजी नहीं सियासी नाकामी थी.


सरेंडर पर बाजवा का झूठ


बाजवा ने 1971 की हार वाले भाषण के दौरान सेना के बचाव में कई झूठी दलीलें भी दीं. उन्होंने सरेंडर करने वाले फौजियों की तादात पर ही झूठ बोल दिया. बाजवा ने कहा कि लड़ने वाले फौजियों की तादात 92 हजार नहीं 34 हजार थी. बाकी लोग अलग-अलग सरकारी विभागों के थे और इन 34 हजार लोगों का मुकाबला ढाई लाख हिंदुस्तानी फौजियों और 2 लाख प्रशिक्षित मुक्तिवाहिनी से था. हमारी फौज बहुत बहादुरी से लड़ी और बेमिसाल कुर्बानियां पेश कीं, जिसके बारे में खुद इंडियन आर्मी चीफ फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने भी किया है.


बाजवा के मुताबिक, 1971 की हार में 34 हजार सैनिकों ने सरेंडर किया था, जबकि सही आंकड़ा ये है कि 55 हजार 692 सैन्यकर्मी थे. 16 हजार 354 अर्धसैनिक बल के जवान थे. पांच हजार 2 सौ 96 पुलिसकर्मी थे. 1000 नौसैनिक थे और 800 वायुसैनिक थे. कुल मिलाकर ये आंकड़ा 79 हजार 676 हुआ, वहीं इनके साथ 13 हजार 324 असैन्य कैदी भी थे जो युद्ध में पाकिस्तानी सेना का साथ दे रहे थे. दुनिया के मानचित्र पर जब तक पाकिस्तान का नामोनिशान रहेगा. 1971 की हार का कलंक उसके हरे झंडे पर लगा रहेगा.


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