International Crisis Group Latest Report on India-China Border Dispute: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में शुरू हुई सैन्य तनातनी को 4 साल पूरे होने जा रहे हैं. सरहद पर दोनों देशों के 50-50 हजार सैनिक भारी हथियारों और साजो-सामान के साथ तैनात हैं. इस तनातनी का हल कब निकलेगा, किसी को पता नहीं है. इसी बीच ग्लोबल थिंक टैंक ने अपनी नई रिपोर्ट में अंदेशा जताया है कि भारत और चीन के बीच आपसी अविश्वास के कारण दो एशियाई शक्तियों के बीच एलएसी पर अचानक हिंसा भड़कने का खतरा बना हुआ है, जिसके परिणाम क्षेत्र से कहीं आगे तक पहुंच सकते हैं. 


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इस सेक्टर में शुरू कर सकते हैं सीमांकन कार्य


रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों को अल्पावधि में मजबूत करना अब असंभव लग रहा है. सहयोगी वेबसाइट WION के मुताबिक थिंक टैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि संबंधों (India-China Border Dispute) को थोड़ा सामान्य बनाने के लिए दोनों देश अपने मिडल सेक्टर (उत्तराखंड) में बाउंड्री के डिमार्केशन की पहल शुरू कर सकते हैं. 'हिमालय में पतली बर्फ: भारत-चीन सीमा विवाद को संभालना' शीर्षक वाली यह रिपोर्ट इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप नाम के थिंक टैंक की ओर से जारी की गई हैं. 


मिडिल सेक्टर में बनी रही है शांति


रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2013 में जब से शी जिनपिंग ने चीन (India-China Border Dispute) की सत्ता संभाली, तब से एलएसी पर चीनी सेना की घुसपैठ की दर तीन गुनी हो चुकी है. ईस्टर्न और वेस्टर्न सेक्टर में चीनी सेना ने कई बार अंदर घुसने की कोशिश की. हालांकि मिडिल सेक्टर में इसकी तीव्रता उतनी नहीं रही है. इसीलिए अनुमान जताया जा रहा है कि इस सेक्टर में दोनों देशों की बाउंड्री चिह्नित करने के लिए दोनों आगे बढ़ सकते हैं. 


दोनों देशों ने एक्सचेंज किए थे नक्शे


इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के भारत में वरिष्ठ विश्लेषक प्रवीण डोंथी बताते हैं कि सितंबर 2000 में पीएम अटल बिहारी बाजपेयी और चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन ने एलएसी को स्पष्ट करने की प्रक्रिया शुरू की थी. इसके लिए दोनों एशियाई शक्तियों के बीच मानचित्रों का आदान-प्रदान किया गया. उत्तराखंड के बाराहोती क्षेत्र पर दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण मतभेद था, इसके बावजूद सीमांकन की शुरुआत इसी मिडिल सेक्टर से की गई. 


प्रवीण डोंथी ने कहा कि एलएसी को स्पष्ट करने की प्रगति आखिरकार वर्ष 2002 में रुक गई थी. तीन साल बाद, चीनी प्रधान मंत्री वेन जियाबाओ की नई दिल्ली यात्रा के दौरान, दोनों पक्ष सीमा मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर सहमत हुए लेकिन आगे बढ़ने में विफल रहे. इसके बाद से मामला जहां का तहां लटका रहा. 


गलवान हिंसा से रसातल में संबंध


जून 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेना के बीच 45 साल बाद हिंसक झड़प हुई, जिसमें चीन (India-China Border Dispute) के 45 सैनिक मारे गए. जबकि भारत के भी 20 सैनिक शहीद हो गए. इसके बाद से दोनों देशों के हजारों सैनिक पूर्वी लद्दाख में युद्ध सामग्री के साथ तैनात हैं. भारत का कहना है कि संबंधों को सामान्य बनाने के लिए चीन को एलएसी पर अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल करनी होगी. भारत इस बात पर भी जोर देता है कि चीन को पश्चिमी सेक्टर में अपने सैनिकों और सैन्य सुविधाओं को अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में वापस ले जाना चाहिए.


एलएसी पर ढांचा विकसित कर रहे दोनों देश


डोंथी बताते हैं कि जहां भारत अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति की बहाली देखना चाहता है. वहीं चीन (India-China Border Dispute) पीछे हटने को अनिच्छुक लगता है, जिससे दोनों देशों में गतिरोध बना हुआ है. दोनों देश एलएसी पर अपनी बुनियादी ढांचे को तेजी से मजबूत करने में लगे हुए हैं. साथ ही वहां पर एक से बढ़कर एक संहारक हथियारों की भी तैनाती हो रही है. सैनिकों के रहने और तेजी से मूवमेंट के लिए साधन विकसित किए जा रहे हैं. वर्ष 1962 की जंग के बाद दोनों देशों के बीच पहली बार इतना बड़ा अविश्वास नजर आ रहा है. 


इस वजह से पटरी पर आ सकते हैं संबंध


इन सबके बावजूद दोनों देश जंग (India-China Border Dispute) के लिए अनिच्छुक नजर आते हैं. इसकी ठोस वजहें भी हैं. दोनों देशों को हालात बिगड़ने पर होने वाले गंभीर आर्थिक नुकसान और टू फ्रंट वार खुल जाने का अंदेशा है, जिसके चलते वे इस डेडलॉक से बाहर आने का रास्ता ढूंढने के लिए प्रेरित हो सकते हैं. ऐसे में वे सीमा विवाद सुलझाने के लिए बाउंड्री के डिमार्केशन के लिए सहमत हो सकते हैं, जिसकी शुरुआत मिडिल सेक्टर से हो सकती है.