कई महीनों से पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ से बेलआउट पैकेज की राह देख रही है. पाकिस्तान बेलआउट पैकेज के लिए आईएमएफ की हर शर्त मानने को तैयार है, जिसके लिए उसने कई बड़े फैसले भी लिए हैं. 


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6.5 अरब डॉलर की एक्सटेंडेड ग्रांट फैसिलिटी यानी (ईएफएफ) के रेस्टोरेशन के लिए आईएमएफ की पहले की शर्तों को पूरा करने के लिए टैरिफ, ईंधन की कीमतों, ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी जैसे हानिकारक राजनीतिक फैसलों के बावजूद सरकार का संघर्ष जारी है.


सरकार के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां


शहबाज शरीफ ने अविश्वास प्रस्ताव के दम पर सत्ता हासिल की थी, जिसके बाद उनके सामने कई चुनौतियां थीं. अब तो पाकिस्तान की हालत ऐसी हो गई है कि जिस तिकड़म से वह आईएमएफ की डील पहले हासिल कर लेता था, वह ट्रिक्स भी धरी रह गईं. 


वित्तीय बाजार से जुड़े फराज अहमद ने पाकिस्तानी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के लिए एक आर्टिकल लिखा है, जिसमें उन्होंने शहबाज शरीफ सरकार के सामने चुनौतियों के बारे में बताया है. 


उनके मुताबिक, देश के सियासी संकट की वजह से IMF साइकिल टूट गई है. जब भी देश में कोई नई सरकार बनती है तो वह लोन प्रोग्राम के तहत इकोनॉमी को संभालने के लिए कुछ सख्त फैसले लेती है.


अब पाकिस्तान के हाथों में कुछ नहीं


आगे फराज ने लिखा, कई सालों के करप्शन, मिसमैनेजमेंट और लोन देने वालों के बढ़ते अविश्वास की वजह से पाकिस्तान उस स्थिति में आ गया है, जहां से आईएमएफ से समझौता करना उसके अपने हाथों में नहीं है. 


और उस मोर्चे पर भी, पाकिस्तान अब अविश्वास और संदेह की धारणा का सामना कर रहा है, यहां तक कि उसके मित्र देश, जो अब इस्लामाबाद से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान की बिगड़ती छवि के साफ संकेत दे रहे हैं.


प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की ओर से आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा से 2.5 बिलियन डॉलर मूल्य की शेष किश्तों को हासिल करने में समर्थन मांगने के बाद इस्लामाबाद को बेलआउट कार्यक्रम को बहाल करने के लिए मनाने की आखिरी बातचीत नाकाम हो गई. तुर्की, चीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे मित्र देश भी अब बदलाव करते दिख रहे हैं.


वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अदनान शौकत ने कहा, पाकिस्तान को लेकर आईएमएफ की उपेक्षा का एक प्रमुख कारण देश में राजनीतिक अशांति है. पीडीएम सरकार न केवल आईएमएफ की मांगों को पूरा करने में विफल रही है, बल्कि राजनीतिक स्थिति को स्थिर करने में भी विफल रही है. आईएमएफ ने खुद इस चिंता का जिक्र अपने हालिया बयान में किया है. पाकिस्तान जैसे राजनीतिक अस्थिर देश को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है. कम से कम आईएमएफ की नजर में तो नहीं.


(IANS के इनपुट के साथ)