Taliban said Durand Line is imaginary line: बदलते भौगोलिक परिवेश में अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान और पाकिस्तान की अदावत किसी से छिपी नहीं है. अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा (Afghanistan Pakistan Border) पर लंबे समय से जारी तकरार और हिंसक टकराव के बीच अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री (Afghan Defense Minister) और तालिबान (Taliban) के संस्थापक मुल्ला उमर (Mullah Omar) के बेटे मौलवी याकूब मुजाहिद (Molvi Yaqoob Mujahid) ने कहा है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच का बॉर्डर सिर्फ ‘काल्पनिक रेखा’ है.


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पूरा इलाका हमारा जब चाहेंगे...


पाकिस्तान को उसकी सही औकात और जगह बताते हुए अफगानिस्तान की फौज के मुखिया ने कहा अफगानिस्तान सीमा पार के पाकिस्तानी हिस्से वाला पूरा पश्तून इलाका हमारा है. याकूब मुजाहिद ने साफ-साफ कह दिया कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच का बॉर्डर यानी डूरंड लाइन बस एक ‘काल्पनिक रेखा’ है. अफगान लोग चाहेंगे तब ये मामला पाकिस्तान से उठाया जाएगा. अभी हम कोई नई जंग नहीं चाहते इसलिए हम इस पूरे इलाके और हालात पर अपनी नजर बनाए हुए हैं.


तालिबान ने बांधे थे पाकिस्तानी फौज के हाथ!


आपको बताते चलें कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच पश्तून इलाको के लेकर अदावत लंबे समय से चल रही है. साल 2021 में तालिबान ने इस सीमा पर पाकिस्तान की फौज को तारबंदी करने से रोक दिया था. अफगानिस्तान की सत्ता मिलने के बाद से तालिबान लगातार दावा कर रहा है कि पाकिस्तानी हिस्से वाले पूरा पश्तून इलाका उनका है. 


क्या है पूरा मामला?


रिपोर्ट्स के मुताबित 9/11 आतंकी हमले से पहले पश्तून लोग आराम से जब चाहे डूरंड लाइन को पार कर सकते थे. लेकिन उस हमले के बाद पाकिस्तान ने उस इलाके में सख्ती शुरू कर दी थी. ऐसे कई खतरों के बीच पाकिस्तान ने अपनी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के नाम पर 2640 किमी लंबी डूरंड लाइन पर तारबंदी का काम शुरु कराया था. जिसे लेकर अब आए दिन झड़प होती रहती है. 12 नवंबर 1893 को ब्रिटिश इंडिया के सेकेट्री सर मोर्टिमर डूरंड और अफगानिस्तान के शासक अब्दुर रहमान खान के बीच एक सीमा समझौता हुआ था. 1947 में भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान बना तो उसने इलाके पर कब्जा कर लिया. अफगानिस्तानी लोगों का कहना है कि डूरंड लाइन ‘औपनिवेशिक रूप से थोपी’ गई थी. पश्तून जनजातियों के पैतृक घरों को दो देशों में बांट देती है. कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि अंग्रेजों और रहमान के बीच हुए समझौते की 100 साल की समय सीमा थी जो 1993 में समाप्त हो गई थी. इसी सीमा विवाद को लेकर अब तालिबान पाकिस्तान को लगातार आंख दिखा रहा है.