समंदर के बीचोबीच `नरक का दरवाजा`, राज खुला तो उड़ गए लोगों के होश

Indian Ocean : हिंद महासागर में एक ऐसी चीज मौजूद है, जिसके बारे में सोचकर सभी हैरान रह जाते हैं. बता जा रहा है, कि समुद्र के अंदर एक बहुत बड़ा छेद बन गया है. वैज्ञानिकों ने दावा किया है, कि उन्होंने इसके होने की वजह का पता लगा लिया है. रीसर्चरों की टीम ने इसका पता लगाने के लिए सुपर कम्यूटर का इस्तेमाल किया है. रीसर्चरों ने बताया है, कि इसके पीछे पृथ्वी के अंदर से निकलने वाला लावा का ढेर जिम्मेदार है. ये वही मैग्मा है जो ज्वालामुखी के निर्माण के लिए जिम्मेदार होता है.

कीर्तिका त्यागी Sat, 30 Mar 2024-10:12 pm,
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हमारी पृथ्‍वी में कई रहस्‍य छुपे हैं. बात करे समंदर की तो वह भी अपने अंदर कई रहस्यों को समेटे हुए है. जिसके बारे में सोचकर सभी हैरान रह जाते हैं. ऐसा ही एक रहस्य हिंद महासागर Indian Ocean के बीच भी स्थित है, जिसे ग्रेविटी होल ( gravity hole ) का नाम दिया गया है.

 

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इस इलाके में गुरुत्वाकर्षण इतना कम है, कि यहां पर पानी का स्तर 328 फीट नीचे जा चुका है. यानी इस इलाके में समुद्र के अंदर एक बहुत बड़ा छेद बन गया है. समंदर के इस रहस्यमयी विशालकाय छेद को 'नरक के दरवाजे' के नाम से भी जाना जाता है. लंबे समय से ये छेद रहस्य बना हुआ है लेकिन अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है, कि उन्होंने इसके होने की वजह का पता लगा लिया है. 

 

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रीसर्चरों की एक टीम ने कहा है, कि उनके पास भरोसेमंद वजह है, कि इसके पीछे पृथ्वी के अंदर से निकलने वाला लावा का ढेर जिम्मेदार है. ये वही मैग्मा है जो ज्वालामुखी के निर्माण के लिए जिम्मेदार होता है.

 

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रीसर्चरों  की टीम ने इसका पता लगाने के लिए सुपर कम्यूटर का इस्तेमाल किया है. इससे मिली जानकारी से पता चलता है, कि इस क्षेत्र का निर्माण 14 करोड़ साल पहले हुआ था. स्टडी में पाए नतीजों को जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में पब्लिश किया गया है. रीसर्चरों ने पाया कि इसके निर्माण में एक प्राचीन महासागर है, जो अब अस्तित्व में नहीं है.

 

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1948 में इस जगह की खोज होने के बाद से ही इस जगह के रहस्य को खोजने के लिए वैज्ञानिक कोशिश रहे हैं, लेकिन उन्हें अब सफलता मिली है. वैज्ञानिकों ने पांच कम्यूटर मॉडल के इस्तेमाल से ये जानने की कोशिश की, कि पिछले 14 करोड़ सालों में इस जगह का टेक्टोनिक मूवमेंट किस तरह से हुआ.

 

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इन पांचों मॉडल में वैज्ञानिकों को पता चला कि लो डेंसिटी प्लाज्मा प्लूम्स इस ग्रेविटी होल के निचले हिस्से से बाहर आ रहे थे. वैज्ञानिकों के मुताबिक, करोड़ों साल पहले भारत कभी अफ्रीका का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन यह धीरे-धीरे वहां से अलग होकर यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट की तरफ चला आया.

 

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जब ये हिस्सा आगे बढ़ रहा था, उस दौरान प्राचीन टेथीज सागर का सी बेड (समुद्री तल) मेंटल के नीचे आने लगा था. इस तरह हिंद महासागर बनने लगा. बाद में टेथीज का समुद्र तल पिघलने लगा. 

 

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अरबों सालों से इकठ्ठा हो रहे हाई डेंसिटी मेंटल के पिघलने से लो डेंसिटी प्लाज्मा प्लूम्स निकलने लगे. यही वजह है, कि इसके निचले हिस्से में दुनिया के बाकी समुद्र की तरह डेंसिटी नहीं है और यहां पानी का स्तर दूसरी जगहों से नीच चला गया है. 

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