जम्मू-कश्मीर: तो क्या सच में कश्मीरी पंडितों के आने वाले हैं अच्छे दिन? घाटी की चुनावी फिजा समझिए

Kashmiri Pandits: इस बार के चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में कई पार्टियों ने कश्मीरी पंडितों को जनादेश दिया है और कुछ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव लड़ रहे हैं. पुलवामा और अनंतनाग जिलों में एक दर्जन से अधिक कश्मीरी पंडित उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

सैयद खालिद हुसैन Sat, 07 Sep 2024-11:53 pm,
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तीन दशक पहले अपनी जड़ों से विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय राजनीति के माध्यम से अपनी मातृभूमि से फिर से जुड़ने की कोशिश कर रहा है. पहले दो चरण में कश्मीर से करीब 14 कश्मीरी पंडित उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और कई और पंडित उम्मीदवार तीसरे चरण में नामांकन दाखिल करेंगे. असल में 8 अक्तूबर को जब जम्मू कश्मीर चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे, तो कश्मीरी पंडित समुदाय के पास बहुत कुछ देखने को होगा. अपनी आवाज बुलंद करने से लेकर घाटी में सम्मानजनक वापसी और उचित पुनर्वास के साथ अपने समुदाय के प्रतिनिधियों की उम्मीद में वे जम्मू कश्मीर विधानसभा में अपने समुदाय के प्रतिनिधियों की उम्मीद कर रहे हैं.

परंपरागत रूप से श्रीनगर में केवल हब्बा कदल सीट ही थी, जहां कश्मीरी पंडित चुनाव लड़ते थे, क्योंकि इस निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता हैं. लेकिन इन चुनावों में पंडित समुदाय श्रीनगर से दूसरे जिलों में चला गया है. पुलवामा और अनंतनाग जिलों में एक दर्जन से अधिक कश्मीरी पंडित उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और कई उम्मीदवार तीसरे चरण में उत्तरी कश्मीर से नामांकन दाखिल करने के लिए तैयार हैं.

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इस बार के चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में कई पार्टियों ने कश्मीरी पंडितों को जनादेश दिया है और कुछ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव लड़ रहे हैं. मोहित भान पीडीपी प्रवक्ता का कहना है कि यह एक स्वागत योग्य कदम है, उम्मीदवार सभी जगहों से होने चाहिए, पहले भी पंडित उम्मीदवार होते थे और यह अच्छी बात है कि कश्मीरी पंडित भाग ले रहे हैं और मुख्यधारा की पार्टियाँ चाहे पीडीपी हो या एनसी, कश्मीरी पंडित अच्छे पदों पर हैं, यह अच्छी बात है और बहुसंख्यक समुदाय को भी उनकी स्वीकृति मिल रही है”

जो पंडित 90 के दशक में पलायन नहीं कर पाए थे, वे भी इस बदलाव का स्वागत करते हैं लेकिन उन्हें संदेह है कि यह किसी साजिश का हिस्सा नहीं होना चाहिए. संजय टिकू (कश्मीर पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष) कहते हैं, "अगर इसके पीछे कोई एजेंसी नहीं है तो यह एक अच्छा बदलाव है. मैंने देखा कि पुलवामा में एक महिला चुनाव लड़ रही है, लोग उसका स्वागत कर रहे हैं, लेकिन इसके पीछे कोई एजेंडा नहीं होना चाहिए, हमें इन लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए, राजनीति नहीं करनी चाहिए, और हब्बा कदल में कई उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, आम सहमति होनी चाहिए थी, तब उम्मीद थी कि कोई कश्मीरी पंडित विधायक के रूप में चुना जा सकता है.”

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समुदाय के उम्मीदवारों का कहना है कि वे अपने समुदाय के लिए काम करना चाहते हैं और चाहते हैं कि उनकी आवाज़ सुनी जाए और समुदाय का अपना प्रतिनिधि होगा जो उनके पुनर्वास के लिए लड़ सके. उनका आरोप है कि पिछले 35 सालों से राजनीतिक दलों के पास कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का कोई खाका नहीं रहा. उम्मीदवारों को यकीन है कि कश्मीर में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय भी उन्हें वोट देगा और उन्हें लोगों की सेवा करने का मौका देगा.

स्वतंत्र उम्मीदवार अशोक कुमार ने कहा, "लोगों के पास अभी भी मौका है अगर वे समझ लें कि उनके (कश्मीरी पंडितों के) भीतर से उन्हें अच्छे उम्मीदवार मिल सकते हैं तो वे वोट क्यों नहीं दे सकते, पारंपरिक राजनीति क्यों अपनाएं, केंद्र सरकार ने भी कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें आरक्षित की हैं, लोगों को सोचना चाहिए कि कश्मीरी पंडित कभी उनके खिलाफ़ नहीं थे. एक बड़ा बदलाव आया है, हम बेवजह मारे जाते थे, लेकिन अब हम जो देख रहे हैं वह बदल गया है, मृत्यु दर कम हो गई है.

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एक और कश्मीरी पंडित उम्मीदवार नानजी दामी ने कहा, "यह एक अच्छा बदलाव है अगर कश्मीरी पंडितों को अपना प्रतिनिधि मिलता है, पुरानी सरकार ने हमें मूर्ख बनाया, आज उमर अपनी टोपी उतार कर वोट मांग रहे हैं, वे कहते हैं कि अनुच्छेद 370 वापस आएगा, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि आप लोगों को मूर्ख क्यों बना रहे हैं, हर कोई जानता है कि 370 वापस नहीं आएगा, लोग अब उनके साथ नहीं हैं."

उम्मीदवार संजय सराफ (लोक जन शक्ति पार्टी) लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार है और कश्मीर में उसका मूल है यह उसका अधिकार है इसका संदेश क्या है उसका मतदाता कौन है यह बहुसंख्यक समुदाय. कश्मीरी (पंडित) उम्मीदवार दुनिया के बाकी हिस्सों को संदेश देना चाहता है कि हम एक परिवार है. पंडित उम्मीदवार अच्छा है अगर उसके पास अच्छी साख है तो निश्चित रूप से बहुसंख्यक समुदाय उसके साथ खड़ा होगा. यह पंडित मुस्लिम का मामला नहीं है यह उम्मीदवारों का मामला है मैं आपको बताता हूं कि एक राजनीतिक पार्टी जो कहती है कि उन्हें आज सभी वोट मिलेंगे उनके नेता ने अपनी टोपी उतरी  और लोगों से वोट के लिए अनुरोध किया यह संदेश क्या है कि लोग उन्हें वोट नहीं दे रहे हैं इन  चुनावों में परिदृश्य अलग है.”

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आगामी जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए घाटी से चुनाव लड़ने के लिए लगभग 14 कश्मीरी पंडितों ने नामांकन दाखिल किया है पहले दो चरण में लगभग तीन उम्मीदवारों के पर्चे खारिज भी कर दिए गए. कश्मीर में मौजूद कश्मीरी पंडितों का कहना है कि यह एक बड़ा बदलाव है और इससे समुदाय के बीच कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों की वापसी और पुनर्वास को लेकर उम्मीद जगी है.

अश्वनी साधु ने कहा “मुझे लगता है कि यह सकारात्मक संकेत है, मैं सिर्फ़ 11 साल का था, मैंने देखा है कि कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ और कैसे 35 साल बीत गए, हमें इसका एहसास भी नहीं हुआ, लेकिन कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा वर्ग वापस आना चाहता है, लेकिन वे कैसे आएंगे, यह भी पता नहीं है, बहुत भ्रम है, और यह बात कि विभिन्न जिलों में कश्मीरी पंडित खुलेआम लोगों से मिल कर प्रचार कर रहे हैं, मैं इसे बहुत सकारात्मक मानता हूँ, हमें बोलने का मौका मिल रहा है, हम अपने समुदाय की आवाज़ बनना चाहते हैं, लेकिन यह व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं होना चाहिए, किसी ने हमारे साथ अच्छा नहीं किया है. एक समय था जब हम घर से बाहर निकलने से डरते थे, लेकिन आज जब मैं यहां आता हूं तो मुझे लगता है कि यहां एक बदलाव है जहां मुझे डर नहीं लगता. मैं सिर पर टीका लगाकर जाता हूं और स्थानीय परिवहन का सफ़र करता हूं.

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एक अन्य युवा कश्मीरी पंडित कहते हैं, "यह हमारे लिए एक शानदार अनुभव है. एक समय था जब प्यारेलाल हांडू और मक्खन लाल फोतेदार चुनाव लड़ते थे, लेकिन 35 साल का अंतराल हो गया. हमने अपने समुदाय का कोई प्रतिनिधित्व नहीं देखा. कोई हमारी आवाज उठाने वाला नहीं था. 2019 के बदलावों के बाद हमने कई उम्मीदवारों को देखा है. कई जिलों से लगभग 10-13 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. यह एक सकारात्मक बदलाव है और वे हमारे समुदाय की आवाज बनेंगे. इस बदलाव की उम्मीद नहीं थी. यह किसी सपने से कम नहीं है, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है."

श्रीनगर का हब्बा कदल विधानसभा क्षेत्र विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए चुनावी रणक्षेत्र में बदल गया है. हब्बा कदल में पंडित समुदाय के छह उम्मीदवारों ने अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है. चार ने मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के तहत नामांकन दाखिल किया है, जबकि दो ने निर्दलीय के रूप में नामांकन दाखिल किया है. हब्बा कदल निर्वाचन क्षेत्र, जो 90 के दशक से पहले कश्मीरी पंडित समुदाय की पहचान रहा है, यहाँ लगभग 94 हजार वोट हैं और उनमें से 22 हजार से अधिक कश्मीरी पंडित वोट हैं, लेकिन पंडित उम्मीदवार इस बार आश्वस्त हैं कि उन्हें मौका दिया जाएगा, यह ध्यान में रखते हुए कि दो पंडित विधायक पहले भी इस निर्वाचन क्षेत्र से जीत दर्ज कर चुके हैं.

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अशोक भट (बीजेपी उम्मीदवार) कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह वही समय है जो 90 के दशक से पहले था, वही प्यार और वही रिश्ता देखने को मिलता है. आज हम जहां भी जाते हैं लोग हमारा स्वागत करते हैं, मैं भी इसी धरती से हूं और लोगों ने समझ लिया है कि बीजेपी ने लोगों के लिए बहुत कुछ किया है मुझे कश्मीरी मुसलमानों का अच्छा समर्थन प्राप्त है, वे यहाँ शांति चाहते हैं, यहाँ कई पंडित नेता जीते हैं और हम उनके मार्गदर्शन पर चल रहे हैं, समय बदल गया है, लोगों को यहाँ भाजपा की आवश्यकता लगती है”

गले में भाजपा का दुपट्टा डाले मुस्लिम युवा लड़के भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार करते हुए दिखाई दिए, उनका कहना है कि कश्मीर में बहुत कुछ बदल गया है मोहसिन कहते हैं, देखिए कितना बदलाव आया है, निर्दोष लोग मर रहे थे, कई लोगों की जान बच गई, भाजपा ने युवाओं के लिए बहुत कुछ किया. बहुत बदलाव हुआ है, भाजपा जो कहती है, वही करती है, सिर्फ वादे नहीं करती”

मोहम्मद हुजैफ खान कहते हैं, “अगर हमारे नेता अशोक भट्ट जीतते हैं तो निश्चित रूप से बदलाव आएगा, कुछ साल पहले तक कोई गारंटी नहीं थी कि जब कोई व्यक्ति अपने घर से बाहर जाता है तो वह जिंदा वापस आएगा या नहीं, लेकिन जब से भाजपा आई है, चीजें बदल गई हैं, आप देख सकते हैं कि आज डाउंटाउन कितना शांत है , विकास हो रहा है.

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दिलचस्प बात यह है कि कश्मीर में आतंकवाद के फैलने के बाद पहली बार दो कश्मीरी पंडित महिलाएं कश्मीर से चुनाव लड़ रही हैं, एक दक्षिण से डेजी रैना (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया) जो दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के राजपुरा गाँव से लड़ रही है वह त्रिचल गांव की पूर्व सरपंच भी रही हैं और दूसरी आरती नेहरू ने उत्तर कश्मीर के सोपोर से अपना पर्चा लिया है.

कुछ साल पहले तक कश्मीरी पंडित कश्मीर की सड़कों पर डरे हुए चलते थे, ज़्यादातर गांवों में, लेकिन आज कश्मीरी पंडित चुनाव लड़ रहे हैं और प्रचार कर रहे हैं और न केवल चुनाव बल्कि अपने सभी धार्मिक त्यौहार पूरे उत्साह के साथ मना रहे हैं, चाहे वह महाशिवरात्रि हो या गणेश चतुर्थी, जिसे आज हब्बा कदल के ऐतिहासिक गणपतियार मंदिर में पारंपरिक तरीके से पूरे धार्मिक उत्साह के साथ मनाया गया.

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