वक्त-वक्त की बात है...कभी कलाइयों की शान थी HMT की घड़ियां, टाटा की वजह से रुकी थी `धड़कन`, अब फिर से बदलने वाला है टाइम
समय बताने वाली घड़ी का वक्त कैसे बदलता है, इसका सटीक उदाहरण एचएमटी ( HMT) वॉच का सफरनामा है. जिसके बिना कभी शादियां अधूरी लगती थी, दूल्हे को जब तक एचएमटी की घड़ी न दी जाए शादी पूरी नहीं मानी जाती थी, वो आज हाथ के बजाए एल्बम का हिस्सा बन चुका है.
HMT की घड़ियां
Modi Govt on HMT: समय बताने वाली घड़ी का वक्त कैसे बदलता है, इसका सटीक उदाहरण एचएमटी ( HMT) वॉच का सफरनामा है. जिसके बिना कभी शादियां अधूरी लगती थी, दूल्हे को जब तक एचएमटी की घड़ी न दी जाए शादी पूरी नहीं मानी जाती थी, वो आज हाथ के बजाए एल्बम का हिस्सा बन चुका है. लेकिन एक बार फिर से उम्मीद जगी है कि 'देश की धड़कन' एक बार फिर से जाग उठेगी. जब घड़ी मतलब सिर्फ एचएमटी हुआ करता था, उसे एक बार फिर से जीवनदान मिल सकती है. एक बार फिर एचएमडी कलाईयों की शान बन सकता है.
क्या है HMT को लेकर सरकार का प्लान
HMT उस दौर की घड़ी है, जब हर आम आदमी की कलाई पर चाबी वाली घड़ियां टिक-टिक करती दिखाईं देती थीं. इन घड़ियों को बनाने वाली सरकारी कंपनी ‘हिंदुस्तान मशीन टूल्स’ (hmt) बर्बाद हो चुकी है. इस कंपनी ने देश को घड़ियों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने का काम किया था, लेकिन समय के साथ बर्बाद हो चुकी कंपनी को सरकार फिर से आबाद करना चाहती है. एचएमटी, हेवी इंडस्ट्री एंड स्टील मंत्रालय के तहत आने वाली सरकारी कंपनी है, जिसे लेकर केंद्र सरकार बड़ी प्लानिंग कर रही है. केंद्रीय मंत्री एचडी कुमारास्वामी ने एचएमटी के अधिकारियों के साथ एक अहम बैठक की है. सरकार कंपनी के रिवाइवल के लिए प्लान बना रही है. मोदी सरकार के मंत्री ने हिंदुस्तान मशीन टूल्स (एचएमटी) को पटरी पर लाने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश कोहली को कंपनी के
जवाहर लाल नेहरू के लिए HMT ने बनाई थी पहली घड़ी
HMT की शुरुआत साल 1961 में की गई. एचएमटी (हिंदुस्तान मशीन टूल्स) की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कहने पर की गई थी. जापान की सिटिजन वॉच कंपनी के साथ मिलकर एचएमटी ने प्रोडक्शन का काम शुरु किया था. कंपनी ने सबसे पहली घड़ी प्रधानमंत्री जाहर लाल नेहरू के लिए बनाई. HMT की पहली घड़ी का नाम 'जनता' रखा गया. ये मॉडल इतना फेमस हुआ को दो दशक तक इसने भारत में राज किया. कंपनी ने 'गांधी' नाम से सीनियर सिटीजंस के लिए घडडी बनाई. कारोबार की बात करें तो रिस्ट वॉच बेचने वाली इस पहली कंपनी ने शुरुआत 10 साल के कारोबार में 11 करोड़ से ज्यादा घड़ियां बेचीं.
चरम पर पहुंचा HMT का कारोबार
साल 1970 और 80 के दौर तक HMT की घड़ियों का कारोबार चरम पर था. 1970 में कंपनी ने सोना और विजय ब्रांड के नाम के साथ क्वार्ट्ज घड़ियों का प्रोडक्शन शुरू किया. कंपनी की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि हर कलाई पर इसकी घड़ियां दिखने लगी. शोरूम नें 300 से 8000 रुपये तक की कीमत में बिकने वाली घड़ियों का क्रेज बढ़ता चला गया. कंपनी ने पहली वॉच फैक्ट्री बेंगलुरु में 112 एकड़ के एरिया में शुरू किया. इस फैक्ट्री में सालाना 3.6 लाख घड़ियों का प्रोडक्शन हो रहा था, इसके बाद उत्तराखंड के रानीबाग में एचएमटी की फैक्ट्री शुरू की गई.
तीन दशक तक बनी रही देश की धड़कन
कंपनी ने तीन दशक तक भारतीय बाजार में राज किया. कंपनी का कारोबार बढ़ता जा रहा था. साल 2012-13 में इन घड़ियों का सालाना कारोबार 242 करोड़ रुपये से ज़्यादा का था. लेकिन उदारीकरण के बाद से कंपनी की मुश्किलें बढ़ने लगी. टाटा के टाइटन (Titan) के बाजार में आने के बाद कंपनी के लिए बुरे वक्त की शुरुआत हो गई. HMT ने स्टाइलिंग, डिजाइन और तकनीक पर बहुत अधिक काम नहीं किया. टाइटन समेत कई प्राइवेट कंपनियों के इस सेक्टर में उतरने के बाद एचएमटी को पुराने जमाने की घड़ियां कहा जाने लगा.
कैसे बर्बाद हुई HMT
बाजार में प्रतिस्पर्धी बढ़ी, कंपनी को सबसे ज्यादा टक्कर टाइटन से मिलने लगी. एचएमटी की घड़ियों को पुराने जमाने की तकनीक कहा जाने लगा. HMT के मुकाबले अधिक स्टाइलिश, एडवांस और बेहतर डिजाइन वाली घड़ियां बाजार में पहुंचने लगी थीं. HMT खुद को समय के साथ अपग्रेड नहीं कर पाई. कंपनी को लोगों की बेरुखी का शिकार होना पड़ा. कंपनी पर लगातार घाटा बढ़ता चला गया. जनवरी 2014 में जब आर्थिक मामलों की कैबिनेट कंपनी ने एचएमटी के तीन कारखाने बंद करवाए तो देश का पहला वॉच ब्रांड इतिहास का हिस्सा हो गया. कंपनी के बंद होने पर उसपर कर्ज का बोझ 2500 करोड़ रुपये पर पहुंच गया.