Shark Tank India: 10वीं पास, इंफोसिस के दफ्तर में चपरासी की नौकरी...कभी ₹80 की दिहाड़ी करने वाला आज ₹10 करोड़ की कंपनी का मालिक, जीता अमन गुप्ता का दिल

भले ही ये कहानी आपको फिल्मी लगे, लेकिन से बिल्कुल सच है. शार्क टैंक इंडिया सीजन 3 के मंच पर एक ऐसा पीच पहुंचा, जिसने सभी शार्क्स को भावुक कर दिया. महाराष्ट्र के बीड से आए दादासाहेब भगत के संघर्ष ने शार्क्स को हैरान कर दिया.

बवीता झा Tue, 12 Mar 2024-9:33 pm,
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शार्क टैंक इंडिया

Shark Tank India 3: भले ही ये कहानी आपको फिल्मी लगे, लेकिन से बिल्कुल सच है. शार्क टैंक इंडिया सीजन 3 के मंच पर एक ऐसा पीच पहुंचा, जिसने सभी शार्क्स को भावुक कर दिया. महाराष्ट्र के बीड से आए दादासाहेब भगत के संघर्ष ने शार्क्स को हैरान कर दिया. कभी 80 रुपये की दिहाड़ी करने वाला शार्क्स टैक्स के मंच पर अपनी कंपनी को लेकर पहुंचा था. 10वीं पास दादा साहेब कभी चपरासी की नौकरी करते थे. किसी को अंदाजा नहीं था कि कभी इंफोसिस के दफ्तर में झाड़ू-पोछा करने वाला अपनी कंपनी खड़ी कर लेगा.  

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दादासाहेब का संघर्ष

 

शायद ही कोई से सोच सके कि 80 रुपये की दिहाड़ी पर मिट्टी ढोने का काम करने वाला, ऑफिस में झाडू-पोछा करने वाला, अपनी कंपनी खड़ी कर सकता है. 1994 में महाराष्ट्र के बीड में जन्मे दादासाहेब ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ उनके कंधों पर था. माता-पिता मजदूरी करते थे. घर की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि उन्होंने पढ़ाई छोड़ने के बाद 14 साल की उम्र में ही मजदूरी का काम शुरू कर दिया, ताकि परिवार की कुछ मदद हो सके. उन्होंने कुआं खोदने, मिट्टी ढोने का काम किया, जिसके बदले उन्हें रोज 80 रुपये मिलते थे. 

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इंफोसिस में ऑफिस ब्वॉय की नौकरी

 

दादासाहेब पढ़ाई के महत्व को जानते थे. वो जानते थे कि पढ़ाई के बल पर ही वो अपनी किस्मत को बदल सकते हैं. उन्होंने साल 2009 में चेन्नई का रूख किया. उन्हें इंफोसिस कंपनी में नौकरी मिल गई. उन्हें सैलरी के तौर पर 9000 रुपये मिलते थे. चाय-पानी पिलाने से लेकर झाड़ू-पोछा, साफ-सफाई करना पड़ता था. उन्होंने परिवार को बताया नहीं कि वो चपरासी की नौकरी कर रहे हैं. उन्होंने देखा कि कंप्यूटर के सामने बैठकर लोग लाखों में सैलरी कमा रहे हैं. बड़ी-बड़ी गाड़ियों में आते हैं. उन्होंने सोच लिया कि वो कंप्यूटर सीखकर रहेंगे. 

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नाइट शिफ्ट में नौकरी, दिन में पढ़ाई

उन्होंने कंप्यूटर और उसकी तकनीक से जुड़ी डिटेल सीखना शुरू कर दिया. रात को नौकरी करते और दिन में कोडिंग, ग्राफिक्स डिजाइनिंग और एनीमेशन की पढ़ाई करते थे. उन्होंने नौकरी के साथ-साथ C++ और Python का कोर्स किया.  उन्होंने ग्राफिक्स, VFX, मोशन ग्राफ़िक्स सीखा. उन्हें बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल गई, लेकिन अचानक उनका एक्सीडेंट हो गया. जिसकी वजह से उन्हें अपने गांव जाना पड़ा. 

 

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गांव से शुरू कर दी 10 करोड़ की कंपनी

 

दादासाहेब अपने दोस्त से किराए पर लैपटॉप लेकर गावं चले गए. जहां वो बैठकर टेम्प्लेट बनाते थे. उन्हें यहां से बिजनेस का आइडिया मिला. उन्होंने अपने टेम्प्लेट ऑनलाइन बेचना शुरू कर दिया. उन्होंने अपनी कंपनी डिजाइन टेम्प्लेट बना दी और अपने प्लेटफॉर्म ग्राफिकल टेम्प्लेट बनाकर बेचना शुरू कर दिया उन्होंने Ninthmotion, DooGraphics नाम से दो कंपनियां खड़ी की. आज उनकी कंपनी का वैल्यूएशन 10 करोड़ का हो गया है.

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अमन गुप्ता का मिला साथ

 

शार्क टैंक में उन्होंने अपनी कंपनी के 2.5 फीसदी के इक्विटी के बदले 1 करोड़ की मांग की. हालांकि बोट के को फाउंडर अमन गुप्ता ने उनकी कंपनी में 10 फीसदी हिस्सेदारी के एवज में 1 करोड़ का निवेश कर डील पक्की कर ली।  

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