किसी के पैर नहीं तो किसी ने गंवाए दोनों हाथ...पैरालंपिक के 15 मेडल विनर्स, भावुक कर देंगी 15 कहानियां
Paralympics Medals Winners Story: भारत ने पेरिस में चल रहे पैरालंपिक खेलों में अब तक 15 मेडल जीत लिए हैं. उसने 29 अगस्त से 2 सितंबर के बीच 3 गोल्ड, 5 सिल्वर और 7 ब्रॉन्ज शामिल हैं. एथलेटिक्स में 2 ब्रॉन्ज जीतने वाली प्रीति पाल अब तक इकलौती ऐसी खिलाड़ी हैं जिन्होंने इस पैरालंपिक में 2 मेडल जीते हैं. वहीं, एक ब्रॉन्ज मेडल मिक्स्ड टीम ने जीते हैं. इस टीम में शीतल देवी और राकेश कुमार शामिल हैं. हम आपको भारत के 15 मेडल में योगदान देने वाले 15 खिलाड़ियों की कहानी यहां बता रहे हैं...
अवनि लेखरा
शूटर अवनि लेखरा ने 10 मीटर एयर राइफल एसएच-1 में गोल्ड मेडल जीता. तीन साल पहले टोक्यो में स्वर्ण जीतने वाली 22 साल की अवनि ने 249. 7 का स्कोर करके अपना ही 249. 6 का पुराना रिकॉर्ड ध्वस्त किया. ग्यारह साल की उम्र में कार दुर्घटना में कमर के नीचे के हिस्से में लकवा मारने की वजह से अवनि व्हीलचेयर से चलती हैं.
कुमार नितेश
पैरा बैडमिंटन में कुमार नितेश ने गोल्ड जीता. जब नितेश 15 वर्ष के थे तब उन्होंने 2009 में विशाखापत्तनम में एक रेल दुर्घटना में अपना बायां पैर खो दिया था लेकिन वह इस सदमे से उबर गए और पैरा बैडमिंटन को अपनाया. नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए रक्षा बलों में शामिल होने का सपना देखा था. हालांकि, दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया. उन्होंने आईआईटी मंडी से इंजीनियरिंग की है.
सुमित अंतिल
जेवलिन स्टार सुमित अंतिल ने पेरिस में एक शानदार प्रदर्शन के साथ पैरालंपिक में लगातार दूसरा गोल्ड मेडल जीता. सुमित ने गोल्ड का वादा किया था और उसे पूरा किया. टोक्यो के बाद अब पेरिस में भी उन्होंने सोने पर निशाना साधा. 7 जून 1998 को पैदा हुए सुमित ने बचपन में ही पिता को खो दिया था. पिता रामकुमार एयरफोर्स में थे. बीमारी के कारण उनकी मौत हो गई. जब सुमित 12वीं में थे तो सड़क दुर्घटना का शिकार हुए थे. सुमित की जान बच गई थी, लेकिन उन्हें अपना पैर गंवाना पड़ा था. उन्होंने हार नहीं मानी और जेवलिन को अपनाया.
मनीष नरवाल
शूटिंग में मनीष नरवाल ने सिल्वर मेडल अपने नाम किया. जन्म से ही उनके दाएं हाथ में समस्या थी. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी है. मनीष को शुरू से फुटबॉल खेलने का शौक था. हेल्थ की समस्याओं के कारण वह फुटबॉल में आगे नहीं बढ़ पाए और उन्होंने शूटिंग को अपनाया.
निषाद कुमार
भारत के एथलीट निषाद कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर कमाल कर दिया है. हाई जंप में मेडल जीतने वाले निषाद हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के अंब उपमंडल के गांव बदाऊं के रहने वाले हैं. उनका परिवार मुख्य रूप से खेती पर निर्भर है. किसान परिवार में पैदा हुए निषाद को बचपन में ही बड़ा सदमा लगा था. निषाद जब 8 साल के थे तो चारा काटने वाली मशीन में उनका हाथ कट गया था. इसके बाद परिवार ने उनका साथ दिया और आगे बढ़ने में हमेशा मदद की. किसी ने उन्हें यह महसूस नहीं होने दिया कि उनका हाथ कटा हुआ है. उन्होंने अपनी कमी को मजबूती में बदला और देश का नाम रोशन किया.
योगेश कथुनिया
भारत के योगेश कथुनिया ने मेंस एफ56 डिस्कस थ्रो इवेंट में 42.22 मीटर के साथ सिल्वर मेडल जीता. कथुनिया ने इससे पहले टोक्यो पैरालंपिक में भी इस इवेंट का सिल्वर मेडल जीता था. कथुनिया नौ साल की उम्र में ‘गुइलेन-बैरी सिंड्रोम’ से ग्रसित हो गए थे. यह एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें शरीर के अंगों में सुन्नता, झनझनाहट के साथ मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है और बाद में यह पक्षाघात (पैरालिसिस) का कारण बनता है. वह बचपन में व्हीलचेयर की मदद से चलते थे लेकिन अपनी मां मीना देवी की मदद से वह बाधाओं पर काबू पाने में सफल रहे. उनकी मां ने फिजियोथेरेपी सीखी ताकि वह अपने बेटे को फिर से चलने में मदद कर सके. कथुनिया के पिता भारतीय सेना में सेवा दे चुके हैं.
तुलसीमति मुरुगेसन
बैडमिंटन में 22 साल की शीर्ष वरीय तुलसीमति को फाइनल में चीन की गत चैंपियन यैंग कियू शिया के खिलाफ 17-21 10-21 से हार का सामना करना पड़ा. उन्हें सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा. बचपन से ही उनके बाएं हाथ का अंगूठा नहीं है. वह एक हादसे में बाल-बाल बच गई थीं. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और बैडमिंटन को अपनाया. महान खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद की एकेडमी में उन्होंने ट्रेनिंग ली. तुलसीमति दिग्गज खिलाड़ी साइना नेहवाल को आदर्श मानती हैं.
सुहास यथिराज
2007 बैच के आईएएस अधिकारी 41 वर्ष के सुहास को एकतरफा मुकाबले में का हार सामना करना पड़ा. फ्रांस के लुकास माजूर के खिलाफ हार के बाद उन्हें सिल्वर मेडर से संतोष करना पड़ा. सुहास ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से कंप्यूटर साइंस में पूरी की. 2005 में उनके पिता का निधन हो गया, जिससे वह टूट गए. इस दुखद घटना के बाद सुहास ने सिविल सेवा में शामिल होने का फैसला और UPSC का एग्जाम क्लियर किया. उन्हें शुरू से ही खेल से प्यार था और कलेक्टर बनने के बाद भी उन्होंने इसे जारी रखा.
मोना अग्रवाल
पैरा शूटर मोना अग्रवाल ने 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 इवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता. मोना का जन्म राजस्थान के सीकर में हुआ था. पोलियो बीमारी के कारण वह बचपन से ही चलने में असमर्थ हो गई थीं. दादी की मदद से वह शूटर बनने के लिए जयपुर चली गईं और फिर अपना नाम बनाया.
प्रीति पाल
इस पैरा ओलंपिक में दो मेडल जीतने वाली इकलौती एथलीट प्रीति पाल ने विमेंस 100 मीटर T35 और विमेंस 200 मीटर T35 में ब्रॉन्ज मेडल जीता. यूपी की एक साधारण किसान की बेटी प्रीति पाल ने अपने अदम्य हौसले और लगन से न केवल अपने लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल कायम की है. पैदाइशी बीमारी के कारण प्रीति के पैर कमजोर थे। उन्हें बचपन से ही कैलीपर्स पहनने पड़े. छह दिनों तक प्लास्टर में रहने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. कठिन परिस्थितियों और चुनौतियों के बावजूद प्रीति ने खेलों की ओर रुख किया और पैरालंपिक में भारत का नाम रोशन किया.
रुबीना फ्रांसिस
शूटिंग में रुबीना फ्रांसिस ने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर अपना नाम रोशन किया. वह जबलपुर की रहने वाली हैं. रुबीना बचपन से ही रिकेट्स बीमारी से ग्रस्त हैं. इससे वह 40 प्रतिशत दिव्यांग हो गईं. पहले तो उन्हें खड़े होने में समस्या होती थी, लेकिन माता-पिता ने डॉक्टर को दिखाया और वह किसी तरह अपने पैरों पर खड़ी हो गईं.
मनीषा रामदास
मनीषा रामदास ने पैरा-बैडमिंटन में इतिहास रच दिया. वह इस खेल में मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गईं. 19 वर्षीय खिलाड़ी ने एसयू5 श्रेणी में कमाल कर दिया. एर्ब पाल्सी के जन्म लेने वाली मनीषा ने 11 साल की उम्र में खेल को चुना. दोस्तों और परिवार की मदद से वह आज इस मुकाम तक पहुंच गईं.
शीतल देवी
पैरालंपिक से भारतीय खेल जगत की नई सनसनी बनी शीतल देवी के दोनों हाथ नहीं हैं. वह पैरों से तीर चलाती हैं. उन्होंने राकेश कुमार के साथ मिलकर आर्चरी के मिक्स्ड टीम इंवेंट में ब्रॉन्ज मेडल जीता. जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में पैदा हुईं शीतल के पिता किसाना हैं और उनकी मां बकरियां चराती थीं.
राकेश कुमार
शीतल देवी के साथ आर्चरी में ब्रॉन्ज जीतने वाले राकेश कुमार को रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी. 2009 में वह ठीक हुए तो उन्हें जीवन भर व्हीलचेयर पर रहने की सलाह दी गई. इससे वह तनाव में चले गए थे. बाद में उन्होंने खेलों को अपनाया और देश का नाम रोशन किया.
नित्या श्री सिवन
तमिलनाडु के होसुर की रहने वाली नित्या ने बैडमिंटन में ब्रॉन्ज जीता. मिडिल क्लास फैमिली में जन्म लेने वाली नित्या बैडमिंटन नहीं, क्रिकेट को अपनाना चाहती थीं. 2016 में किसी में उन्होंने बैडमिंटन को अपना लिया और लगातार आगे बढ़ती चली गईं. अब उन्होंने पेरिस पैरालंपिक खेलों में ब्रॉन्ज जीतकर देश का नाम रोशन कर दिया.