पढ़ाई के लिए सरकार पर केस, बिना आंखों के खड़ी कर दी ₹500 करोड़ की कंपनी, कौन हैं श्रीकांत बोला, जिनसे रतन टाटा भी इंप्रेस

Who is Srikanth Bolla: राजकुमार राव की अपकमिंग फिल्म `श्रीकांत` का ट्रेलर जैसे ही रिलीज हुआ, लोगों के दिलों में उनका किरदार बस गया. आंख से न देख पाना वाले एक बिजनेसमैन की कहानी ने ट्रेलर में ही लोगों के दिलों को छू लिया. राजकुमार राव के एक्टिंग के साथ-साथ लोगों श्रीकांत बोला की कहानी ने लोगों को भावुक कर दिया. बचपन से ही आंखों से न देख पाने वाले श्रीकांत ने अपनी कमियों के सामने घुटने नहीं टेके.

बवीता झा Sun, 14 Apr 2024-7:32 pm,
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श्रीकांत फिल्म

Who is Srikanth Bolla: 'आपने अपने दिमाग में हमारे लिए अलग ही कहानी बना रखी है. बेचारा, गरीब...कितना बुरा हुआ इसके साथ. हमारे साथ कुछ बुरा नहीं हुआ और बेचारे तो हम बिल्कुल नहीं हैं, आपको बेच खाएंगे...' राजकुमार राव की अपकमिंग फिल्म 'श्रीकांत' का ट्रेलर जैसे ही रिलीज हुआ, लोगों के दिलों में उनका किरदार बस गया. आंख से न देख पाना वाले एक बिजनेसमैन की कहानी ने ट्रेलर में ही लोगों के दिलों को छू लिया. राजकुमार राव के एक्टिंग के साथ-साथ लोगों श्रीकांत बोला की कहानी ने लोगों को भावुक कर दिया. बचपन से ही आंखों से न देख पाने वाले श्रीकांत ने अपनी कमियों के सामने घुटने नहीं टेके. बंद आंखों से ऊंचे ख्वाब देखें और अपने उन ख्वाबों को पूरा भी किया. आज कहानी उस बिजनेसमैन की, जिसने न केवल ये साबित कर दिया कि आंखों से देख पाने से जरूरी है अपने लिए विजन तय करना...

 

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कौन हैं रियल श्रीकांत बोला

1991 में आंध्र प्रदेश का मछलीपट्टनम में किसान परिवार में श्रीकांत बोला का जन्म हुआ. श्रीकांत आंखों से देख नहीं सकते थे. जन्म से ही अंधे बच्चे को लेकर परिवार में तरह-तरह की बातें होने लगी. परिवारवालों ने कहा अंधा है, बोझ बन जाएगा, इसे मार दो, लेकिन मां-बाप ने किसी की नहीं सुनी और श्रीकांत को बड़ा किया. आंखों की रौशनी नहीं थी, इसलिए वो खेतों में माता-पिता के साथ काम भी नहीं कर पाते थे. घर में अकेले न छोड़ना पड़े इसलिए उनका दाखिला स्कूल में करवा दिया. स्कूल कई किलोमीटर दूर था. दोस्तों और भाई की मदद से वो स्कूल जाने लगे, लेकिन उन्हें आखिरी बेंच पर जगह मिलती थी. कोई उनके साथ खेलता नहीं था. श्रीकांत को शुरुआत में बुरा लगता था और उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का भी मन बना लिया, लेकिन जब उन्हें पिता ने समझाया कि सिर्फ पढ़ाई ही उनकी जिंदगी बना सकता है, फरि उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.  पिता ने उनका दाखिला नेत्रहीनों के बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया, लेकिन उसके लिए उन्हें घर से करीब 400 किलोमीटर दूर हैदराबाद जाना पड़ा.  

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एजुकेशन सिस्टम पर कर दिया केस

श्रीकांत बिना कि अपनों के सहारे  के नए माहौल में ढल गए. 10वीं में उन्होंने 96 फीसदी, 12वीं में 98 फीसदी नंबर लाकर सबकों चौंका दिया. लेकिन असली चुनौती तो अब शुरू होने वाली थी. वो साइंस पढ़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें किसी भी कॉलेज में साइंस स्ट्रीम में दाखिला नहीं मिल रहा था.  श्रीकांत ने ठान लिया था कि वो पढ़ेंगे तो साइंस ही. लेकिन उस वक्त नेत्रहीन बच्चों के लिए साइंस विषय पढ़ने की व्यवस्था नहीं थी. श्रीकांत ने भारत के एजुकेशन सिस्टम पर कोर्ट केस कर दिया. 6 महीने केस चलने के बाद जीत श्रीकांत की हुई. साइंस पढ़ने वाले वो पहले नेत्रहीन छात्र थे. हालांकि ये उनके लिए आसान नहीं था. नेत्रहीन बच्चों के लिए उस वक्त साइंस की अलग किताबें उपलब्ध नहीं थी, उन्होंने सामान्य किसानों का ऑडियो वर्जन करवाया और फिर उसकी मदद से पढ़ाई की. 

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IIT को मेरी जरूरत नहीं तो मुझे भी आईआईटी की जरूरत नहीं

श्रीकांत का सपना आईआईटी में पढ़ने का था. उन्होंने आईआईटी की कोचिंग के लिए कोशिश शुरू की, लेकिन उन्हें हर जगह रिजेक्ट कर दिया जाता. एक-दो बार नहीं, उन्हें 10-10 बार रिजेक्ट कर दिया गया. श्रीकांत ने ठान लिया कि अगर आईआईटी को उनकी जरूरत नहीं तो उन्हें भी आईआईटी की जरूरत नहीं है. उन्होंने मेहनत और लगन के बलबूते अमेरिका की  मशहूर MIT (Massachusetts Institute of Technology) में स्कॉलरशिप पर दाखिला मिला. वो MIT में पढ़ने वाले पहले इंटरनेशनल ब्लाइंड स्टूडेंट थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें कई जॉब ऑफर मिले, लेकिन वो सब छोड़कर देश लौट आएं. 

 

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शुरू किया अपना बिजनेस

श्रीकांत ने ठान लिया कि वो दिव्यांगों की मदद करेंगे. उन्होंने समझ लिया कि अगर तकनीक की मदद मिल जाए तो न देख पाने वाले भी मौका पा सकते हैं. उन्होंने किराए पर जगह ली, कंप्यूटर खरीदा और एक टीचर की मदद से दिव्यांगों को तकनीकी शिक्षा देना शुरू किया. शिक्षा तो दे दी, लेकिन अब उनके सामने चुनौती थी कि उन्हें नौकरी कैसे मिलेगी. उन्होंने अपनी सेविंग के सहारे  अपना कारोबार शुरू किया. सास 2012 में श्रीकांत ने हैदराबाद में  "बोलेंट इंडस्ट्रीज़" की शुरुआत की. यह ऐसी पैकेजिंग कंपनी है, जो इको-फ़्रेंडली उत्पाद का प्रोडक्शन करती हैं. 

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500 करोड़ की कंपनी, रतन टाटा का निवेश

श्रीकांत की कंपनी में टाटा समूह के चेयरमैन रहे रतन टाटा ने भी निवेश किया है. इतना ही नहीं उनका हौंसला पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी बढ़ाया. उनकी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों में 70 फीसदी ऐसे कर्मचारी हैं, जो दिव्यांग है. आज उनकी कंपनी से 7 प्लांट है. कंपनी का मार्केट वैल्यू  483 करोड़ के पार पहुंच गया. फोर्ब्स ने उन्हें एशिया के 30 अंडर 30 में शामिल किया था. साल 2021 में श्रीकांत को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की यंग ग्लोबल लीडर्स के लिस्ट में शामिल किया गया.  

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