जान‍िये कौन थे सुभाष चंद्र बोस? भारतीय इतिहास में क्‍या थी उनकी भूमिका?

सुभाष चंद्र बोस (1897-1945) एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख लोगों में से एक थे. भारतीय इतिहास में उनकी भूमिका उनकी देशभक्ति, स्वतंत्रता के लिए समर्पण और नेतृत्व के ल‍िए जाना जाता है. जान‍िये, भारतीय इत‍िहास में सुभाष चंद्र बोस का क्‍या योगदान रहा.

वन्‍दना भारती Sun, 18 Aug 2024-9:29 am,
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कैसा था शुरुआती जीवन

23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे बोस एक प्रतिष्ठित बंगाली परिवार से थे. उन्होंने भारत और विदेशों में शिक्षा प्राप्त की और यूनाइटेड किंगडम के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी. 

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राजनीत‍ि में उनकी एंट्री

बोस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920-1922) के दौरान राजनीति में प्रवेश किया. 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए लेकिन वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 

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फॉरवर्ड ब्लॉक बनाया

दूसरे  विश्व युद्ध के समय कांग्रेस पार्टी के दृष्टिकोण से वो संतुष्‍ट नहीं थे. इसल‍िए बोस ने साल 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ अधिक आक्रामक रुख की वकालत की. 

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जर्मनी और जापान भागे

दूसरे विश्व युद्ध में, बोस ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अंतरराष्ट्रीय सपोर्ट मांगा. साल 1941 में अंग्रेजों ने उन्‍हें कलकत्ता में नजरबंद कर द‍िया था. इससे भागकर, बोस जापान और जर्मनी पहुंच गए और वहां उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए सहायता मांगी. 

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भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) का गठन

1943 में, जापान के सपोर्ट से बोस ने आजाद हिंद फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना या आईएनए) की स्थापना की, जिसमें भारतीय युद्ध कैदी और नागरिक शामिल थे. आईएनए का उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था और इसने बर्मा और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में जापान की तरफ से लड़ाई भी लड़ी. 

 

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दिल्ली चलो और इम्फाल की लड़ाई

बोस का प्रसिद्ध नारा "दिल्ली चलो" (दिल्ली की ओर मार्च) भारतीय राजधानी पर कब्जा करने के आईएनए के लक्ष्य का प्रतीक था. आईएनए ने जापानी सेना के साथ मिलकर 1944 में इम्फाल की असफल लड़ाई शुरू की.

 

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विरासत और गुमशुदगी

सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व और आईएनए के प्रयासों का भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा. युद्ध के बाद बोस का भाग्य अटकलों का विषय बना हुआ है. 1945 में ताइवान में विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु की परिस्थितियों पर बहस होती है, कुछ सिद्धांतों के अनुसार वे बच गए थे. 

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