Haldiram Story: तो क्या सच में बिकने जा रहा `हल्दीराम`, 8वीं पास ने गुलाम भारत में खोली छोटी दुकान, बन गया आजाद भारत का नंबर वन ब्रांड, नाम के पीछे भी दिलचस्प है किस्सा ?
Haldiram Success Story: फेवरेट भुजिया और स्नैक्स ब्रांड हल्दीराम बिकने जा रहा है. प्राइवेट इक्विटी फर्म ब्लैकस्टोन इंक भारत के सबे बड़े नमकीन और स्नैक्स ब्रांड हल्दीराम में कंट्रोलिंग स्टैक खरीदना चाहती है. लोगों के मन में यही सवाल है कि आखिर इतना बड़ा ब्रांड, अच्छी-खासी कमाई, फिर क्यों बिकने जा रहा है.
बिकने जा रहा है हल्दीराम ?
Haldiram Success Story: जिस आलू भुजिया ने मिडिल क्लास को ‘प्रीमियम’ कस्टमर होने का अहसास दिलाया. आम और गरीब तक 5 और 10 रुपए में छोटे पैक में अपनी मौजूदगी दिखाई, वो हल्दीराम अब बिकने की ओर बढ़ रहा है. प्राइवेट इक्विटी फर्म ब्लैकस्टोन इंक भारत के सबे बड़े नमकीन और स्नैक्स ब्रांड हल्दीराम में कंट्रोलिंग स्टैक खरीदना चाहती है. इस डील को लेकर अगले दौर की बातचीत शुरू हो गई है. हल्दीराम को चलाने वाले अग्रवाल परिवार के सदस्यों के साथ 70,000 करोड़ रुपये के वैल्यूएशन पर कंट्रोलिंक स्टैक को लेकर बात बन सकती है. दोनों कंपनियों के बीच बीते कुछ महीनों से इस डील को लेकर बातचीत चल रही है. लेकिन वैल्यूएशन के मसले पर डील की गाड़ी आने नहीं बढ़ सकी. ब्लैकस्टोन से पहले टाटा और पेप्सी ने भी हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने की कोशिश की. लेकिन बात बन न सकी.
हल्दीराम में कितनी हिस्सेदारी बेचने की तैयारी
हल्दीराम को संभालने वाले अग्रवाल परिवार कंपनी की 51 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाहता है, जबकि ब्लैकस्टोन 74 फीसदी के करीब हिस्सेदारी खरीदना चाहता है. अगर दोनों कंपनियों के बीच बात बन जाती है, जो ये भारत के इतिहास में FMCG सेक्टर में सबसे बड़ी डील होगी. जिस कंपनी का भारत के स्कैन्स मार्केट में 13 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी हो, उसे खरीदने के लिए कई दिग्गज कंपनियों के बीच होड़ मची है. यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल के मुताबिक भारत का स्नैक्स मार्केट तकरीबन 6.2 अरब डॉलर का है, जिसमें से हल्दीराम की हिस्सेदारी 13 फीसदी की हिस्सेदारी है.
बिकने से पहले होगा हल्दीराम का विलय
इस डील से पहले हल्दीराम के तीन हिस्सों का विलय होगा. अग्रवाल परिवार हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड का हल्दीराम स्नैक फूड प्राइवेट लिमिटेड होगा. दरअसल हल्दीराम का बिजनेस तीन हिस्सों में बंटा है. एक ब्रांड नेम और लोगो के साथ अग्रवाल फैमिली 3 अलग-अलग फैक्शंस संभालती है. हल्दीराम के दिल्ली के कारोबार को मनोहर अग्रवाल और मधुसूदन अग्रवाल संभालते हैं. वहीं नागपुर का बिजनेस कमलकुमार शिवकिशन अग्रवाल के पास है.
बीकानेर से हुई थी हल्दीराम के सफर की शुरुआत
आज देश-दुनियाभर में कारोबार करने वाले हल्दीराम की शुरुआत साल 1937 में गंगा विशन अग्रवाल ने की थी. बीकानेर की गली में छोटी सी दुकान में उन्होंने भुजिया बेचना शुरू किया. गंगा विशन अग्रवाल की मां उन्हें प्यार से 'हल्दीराम' बुलाती थी, इसलिए उन्होंने अपनी नमकीन का नाम भी 'हल्दीराम' ही रखा. लोगों को उनकी नमकीन का स्वाद पसंद आ गया. बुआ से बेसन और मोठ दाल की बनी भुजिया बनाकर उन्होंने बीकानेर के स्वाद को दुनियाभर में पहुंचा दिया.
राजा के साथ हल्दीराम का कनेक्शन
बिजनेस को बढ़ाने के लिए उन्होंने बीकानेर के महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर भुजिया का नाम ‘डूंगर सेव’ रख दिया. महाराजा का नाम जुड़ने के बाद भुजिया की सेल में बड़ी बढ़ोतरी देखने को मिली. उस वक्त 5 पैसा प्रति किलो बिकने वाला डूंगर सेव पूरे बीकानेर में पॉपुलर हो गया. साल 1941 तक हल्दीराम नमकीन पूरे बीकानेर में मशहूर हो गया. एक शादी में जब वो कोलकाता पहुंचे तो अपने साथ भूजिया लेकर गए.लोगों को उसका स्वाद इतना पसंद आया कि उन्होंने कोलकाता में दुकान खोल ली. कोलकाता के बाद 1970 में हल्दीराम का पहला स्टोर नागपुर में खुला. साल 1982 में हल्दीराम ने दिल्ली में दस्तक दी.
हल्दीराम का विवाद
कारोबार बेटों के हाथ में आने के बाद ही विवाद शुरू हो गया. बड़े बेटे ने सबसे पहले अलग होने का फैसला किया और अलग होकर हल्दीराम एंड संस नाम से अलग दुकान शुरू कर दी. विवाद अगली पीढ़ी तक भी बढ़ा और अगली जेनरेशन ने नागपुर में कारोबार को बढ़ाया. पहुंच बढ़ाने के लिए कंपनी ने कारोबार को तीन हिस्सों में बांट दिया गया. हल्दीराम के दक्षिण और पूर्वी भारत का बिजनेस कोलकाता से हैंडल होता है. जिसे नाम ‘हल्दीराम भुजियावाला’ दिया गया. पश्चिमी भारत के कारोबार का कंट्रोल नागपुर से रखा गया, जिसे ‘हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल’ का नाम दिया गया. तीसरा हिस्सा ‘हल्दीराम स्नैक्स एंड एथनिक फूड्स’ को दिल्ली से नियंत्रित किया जाता है.
क्यों बिकने को मजबूर हुआ हल्दीराम
नमकीन, भूजिया. मिक्चर, सोन पपड़ी , सूखे समोसे, मठरी, नमकीन भुजिया, रेडी टू ईट स्नैक्स बिजनेस के बादशाह होने के बावजूद हल्दीराम क्यों अपना हिस्सा बेचना चाहती है, ये सवाल लोगों को परेशान कर रहा है. दरअसल कंपनी की नेक्स्ड जेनरेशन खुद कारोबार को आगे बढ़ाने में बहुत दिलचस्पी नहीं ले रही है. अब परिवार के बच्चे इस कारोबार को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा. ये बात उस समय सामने आई, जब अग्रवाल परिवार ने खुद कंपनी का सीईओ पद रखने के बजाए बाहरी व्यक्ति को इस पद पर बिठा दिया. अग्रवाल की नई पीढ़ी खुद को कंपनी के डे टू डे ऑपरेशन से भी अलग रखना चाहती है.