धर्मशाला: लोकसभा चुनाव 2019 से पहले हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस के लिए राहत भरी खबर आई है. पार्टी ने कांगड़ा जिला परिषद उपाध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका देते हुए मात दे दी. जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले 9 महीने में बीजेपी की यह पहली हार है. कांगड़ा को हिमाचल प्रदेश की राजनीतिक राजधानी माना जाता है. चुनाव के समय हर पार्टी की रणनीति का केंद्र कांगड़ा ही रहता है. इसके अलावा, जयराम कैबिनेट में कांगड़ा के चार मंत्री हैं लेकिन बीजेपी की जीत नहीं दिला सके. बीते सोमवार को धर्मशाला में कांगड़ा जिला परिषद के उपाध्यक्ष के लिए चुनाव हुए. कांग्रेस की ओर से विशाल चंबियाल ने बीजेपी के शेर सिंह को 15 वोट से हरा दिया.
विशाल चंबियाल को 35 जबकि शेर सिंह को 20 वोट मिले. 


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चार-चार मंत्रियों की रणनीति काम नहीं आई 
जयराम ठाकुर सरकार के चार कैबिनेट मंत्री कांगड़ा से हैं. खाद्य आपूर्ति मंत्री किशन कपूर, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग मंत्री सरवीण चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री विपिन सिंह परमार और विक्रम ठाकुर पिछले डेढ़ महीने से लगातार रणनीति पर काम कर रहे थे. चुनाव के दिन बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी लेकिन कांग्रेस ने उनकी रणनीति को विफल करके अपना समर्थित उम्मीदवार जिता लिया. इंदौरा के रहने वाले विशाल चंबियाल वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव भी हैं. वहीं शेर सिंह उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह के विधानसभा क्षेत्र से आते हैं और जसवा परागपुर के रहने वाले हैं. उपाध्यक्ष पद पर मिली हार लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी बीजेपी के लिए बड़ा झटका है. 


इसलिए कराया गया था चुनाव
पूर्व उपाध्यक्ष गगन ठाकुर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित होने के बाद कांगड़ा जिला परिषद उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो गया था. बीते पांच सितंबर को नए उपाध्यक्ष के लिए चुनाव रखे गए, जिसमें बीजेपी समर्थित किसी भी सदस्य ने हिस्सा नहीं लिया. कोरम पूरा न होने के कारण चुनाव प्रक्रिया संपन्न नहीं हो पाई. इसके बाद 17 सितंबर को फिर से उपाध्यक्ष पद के निर्वाचन के लिए बैठक रखी गई. इस बैठक में कांगड़ा जिला के सभी 55 जिप सदस्यों ने भाग लिया. चुनाव प्रक्रिया सपन्न हुई और बीजेपी को निराशा हाथ लगी.


आखिर क्यों हारी बीजेपी
उपाध्यक्ष पद के चुनाव में बीजेपी की हार का प्रमुख कारण पार्टी द्वारा समय पर प्रत्याशी घोषित नहीं किए जाने को माना जा रहा है. प्रत्याशी की घोषणा देर से करने के कारण बीजेपी अपने पक्ष में कांग्रेस के मुकाबले समर्थन नहीं जुटा पाई. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी की ओर उपाध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति नहीं बन पाई. 4-5 सदस्यों ने दावेदारी जताई थी लेकिन इसके उलट कांग्रेस ने सबकी सहमति से अपना प्रत्याशी मैदान में उतार. इस चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई और उसका फायदा कांग्रेस को मिला. कांग्रेस के पास 27 सदस्यों का समर्थन था लेकिन क्रॉस वोटिंग के चलते आंकड़ा 35 तक पहुंच गया.