Annapurna Vrat: देवी अन्नपूर्णा माता का महाव्रत की कल यानि कि शुक्रवार को अंतिम तिथि है. यह व्रत मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से प्रारम्भ होकर मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को खत्म हो जाता है. यह व्रत 17 दिनों की होती है. इस व्रत के दौरान 17 दिन तक अन्न का त्याग करना होता है. लेकिन, अगर कोई व्यक्ति अन्न का त्याग करके इस व्रत को नहीं कर पा रहा है तो उसे एक वक्त का फलाहार करने की भी छूट होती है.


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इन चीजों का करें सेवन


इसके अलावा कुछ व्रती एक वक्त का खाना खाकर भी इस व्रत को पूरा करते हैं. ऐसे में व्रत करने वालों को क्या खाना चाहिए यहां हम बता रहे हैं. व्रत करने वाले मूंग की दाल,चावल, जौ का आटा खा सकते हैं. इसके अलावा अरवी, केला, आलू, कन्दा, मूंग दाल का हलवा खाते हैं. इस व्रत के दौरान नमक पूरी तरह से वर्जित रहता है. इस व्रत में सुबह घी का दीपक जलाया जाता है और माता अन्नपूर्णा की कथा पढ़ी जाती है.


व्रत को करने से मिलता है यह फल


अब लोगों के मन में सवाल उठता है कि आखिर इस इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है. इस व्रत के करने से आयु में बढ़ोतरी होती है. घर में लक्ष्मी का वास होता है और अगर किसी दंपत्ती संतान की कामना करते हुए इस व्रत को करता है तो उसे श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है. अन्नपूर्णा व्रत के प्रभाव से धनादि का वियोग कभी नहीं देखने को मिलता है.


अन्नपूर्णा मां भर देती हैं भंडार


शास्त्रों में दी गई जानकारी के मुताबिक मां अन्नपूर्णा का व्रत जिस घर में होता है वहां अन्न के भंडार खाली नहीं होते हैं. साथ ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. जो भी इंसान इस व्रत को करता है उसके घर में श्रीलक्ष्मी का सदैव वास होता है. इसके अलावा घर से गृह क्लेश दूर रहता है.


माता को चढ़ाते हैं धान की पहली बाली


इस व्रत के दिन पूर्वांचल के किसान अपने धान की पहली फसल माता के मंदिर में अर्पित करते हैं. मंदिर परिसर को धान की बालियों से सजाया जाता है. पूजा के बाद इन बालियों को प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच बांटी जाती है. माना जाता है कि ऐसा करने से किसानों का कल्याण होता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)