Astrology: जानें ज्योतिष में क्या होता है उत्तरायण और दक्षिणायन का महत्व
सूर्य के उत्तर दिशा में अयन को उत्तरायण कहा जाता है और दक्षिण दिशा में अयन को दक्षिणायन कहा जाता है. इस तरह एक वर्ष में दो अयन होते हैं और दोनों छह माह तक रहते हैं.
Astrology: अयन का अर्थ होता है चलना, ग्रहों के राजा सूर्यदेव पूरे वर्ष गतिमान रहते हैं और सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं से ही ऋतुओं का निर्धारण किया जाता है. अयन दो प्रकार के होते हैं. सूर्य के उत्तर दिशा में अयन को उत्तरायण कहा जाता है और दक्षिण दिशा में अयन को दक्षिणायन कहा जाता है. इस तरह एक वर्ष में दो अयन होते हैं और दोनों छह माह तक रहते हैं.
उत्तरायण कब होता है
हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन यानी दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और इसी परिवर्तन को उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करते हैं तब तक का समय उत्तरायण कहा जाता है. यह अवधि लगभग 6 माह की होती है.
दक्षिणायन कब होता है
जब सूर्य कर्क राशि से धनु राशि में विचरण करते हैं तब उस समय को दक्षिणायन कहते हैं. यह अवधि भी छह माह की ही होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में छह ऋतुएं होती हैं. जब सूर्य उत्तरायण में आते हैं तब तीन ऋतुएं पड़ती हैं, शिशिर, बसंत और ग्रीष्म और जब सूर्य दक्षिणायन में होते हैं तो वर्षा, शरद और हेमंत ऋतुएं होती हैं.
उत्तरायण का महत्व
सूर्य नारायण पूर्व दिशा से उदित होकर छह महीनों तक दक्षिण दिशा की ओर अस्त होते हैं और छह महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होते हैं. उत्तरायन देवताओं का भी अयन कहलाता है, जिसे पुण्य पर्व भी माना जाता है. इसी कारण सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने को मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि इसके बाद से ही शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. सूर्यदेव मकर संक्रांति के दिन ही दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, उत्तरायण का महत्व इतना अधिक है कि इस स्थिति में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर माना जाता है कि उसे मोक्ष प्राप्ति होता है.