Gupt Gufa: जहां श्री राम के चरण पखारती हैं ‘गुप्त नदी’! वनवास के दौरान भगवान ने गुजारा था समय, कहां है ये `गुप्त गुफा`
Cave Mystery in Hindi: भगवान श्रीराम अपने 14 वर्ष का वनवास पूरा करने के लिए वन-वन भटके थे. इस दौरान वे एक रहस्यमय गुफा में भी रहे, जहां उनके चरण पखारने के लिए गुप्त नदी प्रकट हुई थी.
Gupt Godavri Mystery in Chitrakoot: युगों को लेकर वैदिक गणना और पौराणिक दावा कोई किवदंती नहीं, ये कई शोधों में प्रमाणिक साबित किया जा चुका है. सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर, इन युगों के किरदारों और घटनाओं को लेकर किसी की राय चाहे जैसी भी हो, आज भी धरती पर कुछ ऐसी जगह हैं, जहां कुछ चीजें ऐसी चौंकाने वाली मिलती है कि प्राचीन युगों का घटनाक्रम साक्षात होता दिखाई देता है. ऐसी ही एक जगह है चित्रकूट. इस जगह का नाम आप सबने सुना होगा.
यूपी और मध्य प्रदेश के सीमा क्षेत्र में फैला चित्रकूट तुलसीदास और रामायण की वजह से मशहूर है. आज की स्पेशल रिपोर्ट इसी चित्रकूट धरती से, जहां की एक प्राकृतिक गुफा साढ़े 9 लाख साल पुरानी बताई जाती है. इस गुफा की बनावट इतनी रहस्ययमी है, कि इसके अंदर दाखिल होते ही लगता है, किसी और लोक में पहुंच गए.
500 साल बाद भी नहीं सुलझा गुफा का रहस्य
500 साल पहले जिस गुप्त गुफा के बारे में रामायण के रचयिता तुलसीदास लिख गए थे, उस गुफा का रहस्य आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है. गुफा का दरवाजा, संकरा सा रास्ता और इसकी दीवारों पर गजब की कुदरती नक्काशी. सबकुछ इतने करीने से गढ़ा-बना दिखता है, कि आंखों के सामने एक एक दृश्य की पहेली उलझती चली जाती है. और इतनी संकरी गुफा में बहती ये रहस्यमयी नदी...? लोग इस देखकर हैरान तो होते ही हैं, लेकिन ये सुनकर और अचंभे में पड़ जाते हैं, कि इस नदी का पानी कभी न घटता है न बढ़ता है, सिर्फ घुटने तक ही रहता है.
पानी इतना स्वच्छ, कि इसके नीचे की पूरी पथरीली जमीन साफ दिखाई देती है. चाहें तो अंजुरी में भर कर पी लें या श्रद्धा से माथे से लगा लें. गुफा की इसी रहस्यमयी बनावट और गंगा जैसे पवित्र जल वाली नदी को देखकर तुलसीदास ने नाम दिया था...
रहस्ययमी गुफा में बहती ‘गुप्त गोदावरी’
गुप्त गोदावरी को लेकर रामायण में पूरी की पूरी कथा है. कैसे देश के पश्चिमी घाट पहाड़ से निकलने वाली नदी कैसे यहां चित्रकूट में प्रकट हुई. जबकि गोदावरी का बहाव क्षेत्र देखें, तो 920 मील लंबी ये नदी महाराष्ट्र के नासिक में त्रयम्बकेश्वर की पहाड़ी से निकलकर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है. इस रूट में कहीं भी यूपी मध्य प्रदेश का ये इलाका नहीं आता.
रूट मैप से अलग चित्रकूट में कैसे प्रकट हुई गोदावरी नदी?
गुफा के अंदर गुप्त गोदावरी की रहस्यमयी धारा कई सारी किवदंतियों को जन्म दे गई. इसके बारे में खुद तुलसीदास ने लिखा...
गंगा गुप्त गोदावरी, बसत जहां सुर सिद्ध।
सेवा प्रेम प्रतीत सो, प्रकट मिले नवनीत।।
तुलसी दास गुप्त गोदावरी में भगवान श्रीराम के दरबार और सिंहासन का भी चिक्र करते हैं. रामायण की एक चौपाई में वो लिखते हैं...
अमरनाग किन्नर दिसपाला, चित्रकूट आए तेहि काला
राम प्रणाम कीन सब काहू, मदुति देव लहि लोचन लाहू!
तुलसीदास ने श्रीराम वनवास का लिखा था पूरा घटनाक्रम
यानी भगवान श्रीराम के दर्शन के लिए देवता, नाग, किन्नर और दिक्पाल, सभी चित्रकूट में आए और श्री रामचन्द्र जी को प्रणाम किया. तुलसीदास ने रामायण 16वीं सदी में, यानी भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना के बाद लिखा था. कहते हैं, तुलसीदास ने रामायण की रचना से पहले जैसे भगवान श्रीराम से जुड़ी जगहों का भ्रमण किया था, वैसे ही गुप्त गोदावरी की गुफा में भी गए थे. इसी के आधार पर उन्होंने गुफा का पूरा ब्योरा लिखा.
जैसे तुलसीदास ने भगवान श्रीराम के वनवास का पूरा घटनाक्रम- कैकई के वरदान से लेकर निषादराज के यहां पहले विश्राम तक जीवंत रूप में चित्रित किया है. वैसा सजीव चित्रण भगवान राम के चित्रकूट में सबसे लंबे पड़ाव का किया है. तुलसिदास लिखते हैं.
प्रथमः देवहि गिर गुहा, राखिर रुचिर बनाय
राम कृपानिधि कछुक दिन, वास करेंगे आय.
रामायण की इस चौपाई में तुलसीदास बताते हैं, कि भगवान राम के चित्रकूट आने से पहले देवताओं ने पर्वत की एक गुफा को सुंदर बना सजा रखा था.
तब से लेकर स्थानीय लोग यही मानते हैं. गुप्त गोदावरी की गुफा में जिस तरह से पत्थर का सिंहासन बना हुआ दिखता है, वो अपने आप में दैवीय निर्माण लगता है.
गुप्त गोदावरी में ‘राम सिंहासन’, वनवास में जहां रहे 11.5 साल
गुप्त गोदावरी की रहस्यमयी गुफा का जिक्र तुलसीदास रचित रामायण और कई दूसरे पुराणों में मिलता है. इसके आधार पर कई शोध भी हुए. इनमें से एक बड़ा शोध भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने भी किया था. तब उस टीम के अगुवा थे विभाग के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. सतीश त्रिपाठी. उस रिसर्च में पता चला था, कि गुप्त गोदावरी गुफा का निर्माण 9.5 लाख साल पहले का है.
गुफा का ये निर्माण काल इसे त्रेतायुग से जोड़ता है. इसे पौराणिक कालगणना से आप कुछ ऐसे समझ सकते हैं. कार्बन डेटिंग में 9.5 लाख साल पुरानी बताई गई है गुप्त गोदावरी की गुफा. इस लिहाज से गुफा का अस्तित्व त्रेतायुग में भी था. अगर द्वापर युग का काल देखें, तो 8,64,000 वर्ष का माना जाता है. इसमें कलियुग के बीते 5100 वर्षों को मिला दें, तो पूरा समय 8,69,100 साल होता है. यानी गुप्त गोदावरी की गुफा का निर्माण त्रेतायुग के आखिरी 80 हजार वर्ष में हुआ था.
श्रीराम के दर्शन करने आई थीं गोदावरी
इस कालगणना के मुताबिक अगर राम के वनवास और रावण के साथ युद्ध का समयकाल देखें, तो ये त्रेतायुग के उत्तरार्ध यानी आखिरी बरसों में ही हुआ था. उससे पहले भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और देवी सीता के साथ चित्रकूट में ही रहे थे. इसे लेकर लोग गुफा में कई निशानियों का जिक्र करते हैं. जैसे भगवान राम का कुंड, लक्ष्मण का कुंड और देवी सीता का कुंड.
इसी कुंड से जुड़ा हुआ है गुप्त गोदावरी का रहस्य. जैसा कि हमारी रिपोर्ट के पिछले हिस्से में गुफा के पुजारी ने बताया, गौतम ऋषि की बेटी गोदावरी यहां भगवान श्रीराम के दर्शन के लिए आई थीं.
जैसे बाकी देवता श्रीराम के दर्शन के लिए आए, गोदावरी ने सुना कि भगवान राम चित्रकूट आए हैं, तो उन्होंने भगवान राम से मिलने के लिए सौ योजन, यानी करीब 1600 मीटर लंबे भूमिगत मार्ग से यहां प्रकट हुईं. चित्रकूट में अपने यात्रा मार्ग से सैकड़ो किलोमीटर दूर गोदावरी के प्रकट होने की बात महर्षि बाल्मिकी भी करते हैं. वो अपने रामायण में लिखते हैं:-
तस्मिन गोदावरी पुण्य नदी पाप प्रमोचिनी,
गुप्त गोदावरी नाम्नां ख्याता पुण्य विवर्धिनी।।
- महर्षि वाल्मीकि
कन्या तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है गुप्त गोदावरी
गुप्त गोदावरी को लेकर इन्हीं पौराणिक गाथाओं ने इसे एक पवित्र तीर्थ के रूप में मशहूर किया. एक तीर्थ के रूप में गुप्त गोदावरी को कन्या तीर्थ कहा जाता है. ज्योतिष गणना के मुताबिक जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में हो, तो गुप्त गोदावरी में स्नान से तमाम कष्ट दूर होते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यताओं के साथ गुप्त गोदावरी की गुफा को आध्यात्मिक दृष्टि से भी काफी अहम माना जाता है. इसके पीछे भगवान शिव का वरदान माना जाता है. इस गुफा में एक रहस्यमयी शिवलिंग है, जो कुदरती तौर पर बना है. मान्यता है, कि भगवान राम ने अपने चित्रकूट प्रवास के दौरान इसकी पूजा की थी.
भगवान राम और शिव के बीच संबंध अनूठा है. भगवान शिव जहां श्रीराम को मन में बसाते हैं, तो श्रीराम शिव को अपना अराध्य मानते हैं. इस दैविक संबंध की एक झलकी रामायण के बालकांड की इस चौपाई में मिलता है.
शिवद्रोही मम दास कहावा
सो नर सपनेहु मोही ना पावा
-रामायण, बालकांड
शिवलिंग में भगवान शिव के 5 भाव समाहित
इस चौपाई के मुताबिक भगवान राम कहते हैं, जो शिव से विभुख है, लेकिन मुझसे भक्ति रखता है, उसे में सपने में भी नहीं मिलूंगा. मान्यता है कि आदिदेव शिव के प्रति इसी भावना के साथ भगवान राम ने गुप्त गोदावरी में इस शिवलिंग की पूजा शुरू की थी. स्थानीय पुजारी बताते हैं, ये शिवलिंग अपने आप में दुर्लभ इसलिए है, क्योंकि इसमें भगवान शिव के 5 भाव समाहित हैं.
इस तरह गुप्त गोदावरी की गुफा में ये शिवलिंग भी त्रेतायुग का पौराणिक सबूत है. ये शिवलिंग राम सिंहासन से अलग दूसरी गुफा में है, यहीं पर गोदावरी गुप्त रूप से प्रकट होती हैं. इस नदी के रहस्य को समझने के लिए कई वैज्ञानिक रिसर्च हुए, लेकिन इस गुफा में प्रकट होने के बाद ये नदी कहां गायब हो जाती है, ये आज तक किसी को ये पता नहीं चल पाया.
अनुसुइया के तपोबल से प्रकट हुई थीं गोदावरी
इसलिए ये मान्यता बलवती हुई, कि अत्रि मुनि की तपस्विनी पत्नी अनुसुइया के तपोबल से यहां गोदावरी प्रकट हुई थीं. क्योंकि इस गुफा के बाहर, ना तो किसी नदी के आने और ना ही जाने का कोई निशान नहीं मिलता. गुप्त गोदावरी का पानी सिर्फ दोनों गुफाओं में ही बहता है.
हाल ही में एक भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के एक सर्वे में गुप्त गोदावरी से सटी एक और गुफा मिली है, लेकिन वो भी सूखी है. इसमें ना तो किस नदी का निशान है और ना ही त्रेतायुग या भगवान राम से जुड़ा हुआ कोई और संकेत. इस तरह विंध्य पर्वतमाला के बीच ये गुप्त गोदावरी गुफा अपने आप में रहस्ययमी बनी हुई है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)