When and how was Kinnar Akhara formed: यूपी के प्रयागराज में 12 साल बाद महाकुंभ शुरू होने जा रहा है. अगले वर्ष 13 जनवरी से शुरू होने वाले इस अखाड़े में करीब 40-45 करोड़ श्रद्धालुओं के शामिल होने का अनुमान है. इस कुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण साधु-संतों के अखाड़े रहने वाले हैं. कई अखाड़ों के साधु-संतों ने राजसी वैभव के साथ कुंभ में छावनी प्रवेश शुरू कर दिया है. इन्हीं में से एक प्रमुख अखाड़ा है- किन्नर अखाड़ा. अपने नाम के अनुरूप यह किन्नरों का अपना अखाड़ा है, जिसमें शामिल किन्नर पूर्णत साधु वेश में रहकर हिंदू पूजन पद्धति से कुंभ स्नान समेत सारे धार्मिक क्रियाकलाप करते नजर आते हैं. आज हम इस अखाड़े की बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं.  


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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुली राह


किन्नर अखाड़ा हरिद्वार के श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े से जुड़ा हुआ है. वर्ष 2018 में इस अखाड़े का जन्म तब हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में किन्नरों को थर्ड जेंडर्स की मान्यता देते हुए उन्हें सभी सरकारी लाभ और आरक्षण सुविधाएं देने का फैसला दिया. इसके बाद से किन्नरों के विकास और आगे बढ़ने का रास्ता खुल गया. उसी साल किन्नर लीडर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में किन्नर एकजुट होकर जूना अखाड़े के महंत से मिले और कुंभ मेले में अखाड़े के रूप में प्रतिभाग करने की अनुमति देने की मांग की. महंत ने इस मांग को सकारात्मक तरीके से लेते हुए जूना अखाड़े के अंतर्गत किन्नर अखाड़ा बनाने का ऐलान किया. वर्ष 2019 में किन्नर अखाड़े ने पहली बार कुंभ में भाग लिया.


समाज में होने लगा किन्नरों का सम्मान 


जूना अखाड़े ने लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को किन्नर अखाड़े के महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की. यह अखाड़ा समाज में सनातन धर्म के प्रचार प्रसार और  एलजीबीटी विषयों पर जागरूकता फैलाने को बढ़ावा देता है. बहुचरा माता समुदाय की आध्यात्मिक संरक्षक हैं. किन्नर अखाड़े से जुड़ीं साध्वी पवित्रा निंबोराकर बताती हैं कि अखाड़े का गठन होने के बाद किन्नरों के प्रति लोगों की सोच बदली और उन्हें समाज में सम्मान हासिल होने लगा. अब कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की सबसे ज्य़ादा भीड़ किन्नर अखाड़े के शिविर में देखने को मिलती है. लोग किन्नर साधुओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेकर जाते हैं. 


राजा दशरथ को भी दिया था आशीर्वाद


वे बताती हैं कि किन्नरों की मौजूदगी सभी युगों में रही है. द्वापर युग में जब राजा दशरथ को एक साथ 4 पुत्रों की प्राप्ति हुई, तब उन्हें नवजात शिशुओं को आशीर्वाद देने के लिए काफी किन्नर भी राजमहल में पहुंचे थे. किन्नरों ने भगवान राम की आरती उतारकर उन्हें आशीर्वाद दिया. तब से यह कार्य किन्नर समुदाय आज भी करता आ रहा है. सनातन पद्धति के तहत अखाड़े से जुड़े किन्नर साधु-संत शुभ अवसरों पर समाज के बीच रहकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं. 


महाकुंभ में ऐसा रहता है किन्नर साधुओं का रुटीन


चाहे कुंभ हो या महाकुंभ, किन्नर अखाड़े के साधु-संत संन्यास से जुड़े कठोर नियमों का पालन करते हैं. वे प्रतिदिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते हैं. इसके बाद नित्य क्रिया और पवित्र नदी में स्नानादि के पश्चात भगवान की आरती में लग जाते हैं. आरती के बाद सभी संत-महात्मा प्रभु का ध्यान करते हैं. इसके बाद नाश्ता करते हैं और फिर भगवान से जुड़े प्रसंगों का वाचन और श्रवण होता है. जब तक कुंभ चलता है, तब तक अखाड़े के सभी संत जमीन पर फूस के ऊपर सोते हैं और दिन में महज एक ही बार भोजन करते हैं. साथ ही दिन में 3 बार गंगा स्नान करने भी जाते हैं. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)