Ganesh Utsav: बाल गंगाधर तिलक ने इसलिए शुरू कराई सार्वजनिक गणेश पूजा, जल विसर्जन की ये है मान्यता
Bal Gangadhar Tilak: आखिर गणेश उत्सव कब से मनाया जा रहा है, इसके बारे में कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है. स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है का नारा देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए गणेश उत्सव को बडे स्तर पर आयोजित किया था.
Bal Gangadhar Tilak Starts Ganesh Utsav: गणेश चतुर्थी पर गणपति प्रतिमा की स्थापना और दस दिन बाद चतुर्दशी के दिन प्रतिमा के विसर्जन की परंपरा को समझना बहुत जरूरी है. जिस प्रतिमा को दस दिन घर में रखकर पूजन भजन किया जाता है और फिर उसका विसर्जन वास्तव में बहुत कष्टकारी होता है, क्योंकि इन दस दिनों में बप्पा के साथ रहने के कारण विशेष लगाव हो जाता है. दरअसल, मान्यता है कि सारी सृष्टि की उत्पत्ति जल से ही हुई है और जल, बुद्धि का प्रतीक है तथा भगवान गणपति बुद्धि के अधिपति हैं. भगवान गणपति की प्रतिमाएं नदियों की मिट्टी से ही बनती हैं. अत: अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की प्रतिमाओं को जल में इसीलिए विसर्जित कर देते हैं, क्योंकि वे जल के किनारे की मिट्टी से बने हैं और जल ही भगवान गणपति का निवास स्थान है.
स्वराज आंदोलन को गति देने के लिए तिलक जी ने शुरू कराई परंपरा
आखिर गणेश उत्सव कब से मनाया जा रहा है, इसके बारे में कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है, किंतु सभी जानते हैं कि 1893 के पहले गणपति उत्सव लोगों के घरों तक ही सीमित था और उस समय आज की तरह भगवान गणपति की बड़ी-बड़ी मूर्तियां या बड़े-बड़े पंडाल नहीं बनाए जाते थे और न ही सामूहिक गणपति विराजते थे. भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है का नारा देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें लोग लोकमान्य के नाम से भी जानते थे, उन्होंने 1893 में अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए गणेश उत्सव को बडे स्तर पर आयोजित किया था, जो धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में मनाया जाने लगा है. आज गणपति उत्सव महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में एक प्रकार के राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
गणेश उत्सव के जरिए घर-घर पहुंचा आजादी का संदेश
जिस समय तिलक जी ने इस उत्सव को बडे स्तर पर मनाना शुरू किया था, उस समय वे एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे. वे बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी भाषण देने में माहिर थे. तिलक ‘स्वराज’ के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे. इसके लिए उन्हें ऐसा सार्वजनिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सकें और इस काम के लिए उन्होंने गणपति उत्सव को चुना. उसी गणेश उत्सव का सुंदर व भव्य स्वरूप हमें आज दिखाई देता है. बाल गंगाधर तिलक के इस कार्य से स्वराज आंदोलन को बल मिला और भारत आजाद होने में एक कदम और आगे बढा. इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उनमें जोश भर दिया. इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आजादी की लड़ाई में अव्यक्त रूप से एक अहम भूमिका निभाई.