Bhagwan Buddha: माखा बुचा दिवस बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद महत्‍वपूर्ण पर्व होता है. इसे माघ पूजा भी कहते हैं. इसे कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और श्रीलंका में तीसरे चंद्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. यह पर्व भगवान बुद्ध और उनके शिष्‍यों के बीच हुई सभा की याद में मनाया जाता है. कुछ जगहों पर इसे संघ दिवस भी कहा जाता है. इस साल थाईलैंड में यह पर्व बहुत खास रहा. क्‍योंकि माखा बुचा दिवस के दिन थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में बड़ी संख्‍या में बौद्ध अनुयायियों ने भगवान बौद्ध के अवशेषों के दर्शन किए. भगवान बुद्ध के ये अवशेष भारत से भेजे गए थे. इसमें भगवान बुद्ध के अलावा उनके 2 शिष्यों अर्हत सारिपुत्र और अर्हत मौदगल्यायन के अवशेष भी शामिल थे. 


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26 दिनों के लिए थाईलैंड ले जाए गए हैं ये अवशेष 


भगवान बुद्ध और उनके शिष्‍यों के ये अवशेष 26 दिनों के लिए भारत से थाईलैंड ले जाए गए हैं. ऐसा पहली बार है जब भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों के अवशेषों को एक साथ प्रदर्शित किया गया है. 


कब-कहां मिले थे भगवान बुद्ध के अवशेष? 


बौद्ध मान्यताओं के अनुसार, भगवान बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में 80 वर्ष की आयु में मोक्ष प्राप्त किया था. इसके बाद एक एक सार्वभौमिक राजा के रूप में बड़े समारोह में उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया. इसके बाद उनके अवशेषों (अस्थियों) को 8 भागों में विभाजित किया गया और उन्‍हें मगध के अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवी, कपिलवस्तु के शाक्य, कुशीनगर के मल्ल, अल्लकप्पा के बुलीज, पावा के मल्ल, रामग्राम के कोलिया और वेथादिपा के एक ब्राह्मण के बीच वितरित कर दिया गया. ताकि इन पवित्र अवशेषों पर स्‍तूपों का निर्माण किया जा सके.


इसके बाद कई स्‍तूपों के निर्माण हुए. साल 1898 में पिपरहवा (UP के सिद्धार्थनगर के पास) में स्तूप स्थल पर एक उत्खनित ताबूत की खोज हुई. जहां से प्राचीन कपिलवस्तु की पहचान हुई. इस ताबूत के ढक्कन पर मौजूद शिलालेख बुद्ध और उनके समुदाय, शाक्य के अवशेषों को बताता है. फिर साल 1971-77 के बीच भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा एक और स्तूप की खुदाई में दो शैलखडी ताबूत सामने आए, जिनमें कुल 22 पवित्र अस्थि अवशेष थे, जो राष्ट्रीय संग्रहालय की देख-रेख में हैं.