Bhujriya 2022: आज मनेगा भुजरिया पर्व! जानें क्यों एक-दूसरे को बांटी जाती हैं गेहूं की कजलियां
Bhujriya 2022 Date: रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया या कजलिया पर्व मनाया जाता है. इस दिन लोग एक-दूसरे को गेहूं की भुजरिया देकर सुख-समृद्धि की शुभकामनाएं देते हैं.
Kajaliya 2022 Katha Significance: सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन मनाने के बाद अगले दिन भाद्रपद महीने की प्रतिपदा को भुजरिया पर्व मनाया जाता है. इसे कजलिया पर्व भी कहते हैं. इस साल आज यानी कि 12 अगस्त 2022 को भुजरिया पर्व मनाया जाएगा. इस दिन लोग एक-दूसरे से मिलकर गेहूं की भुजरिया देते हैं और उन्हें भुजरिया पर्व की शुभकामनाएं देते हैं. यह पर्व अच्छी बारिश होने, फसल होने, जीवन में खूब सुख-समृद्धि आने की कामना के साथ मनाया जाता है. लिहाजा इस दिन लोग एक-दूसरे को धन-धान्य से भरपूर होने की शुभकामना के संदेश देते हैं. यह पर्व बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है.
गेहूं-जौ से बनती हैं भुजरिया
गेहूं और जौ के दानों से भुजरिया उगाई जाती हैं. इसके लिए सावन के महीने की अष्टमी और नवमीं को बांस की छोटी टोकरियों में मिट्टी बिछाकर गेहूं या जौं के दाने बोए जाते हैं. फिर उन्हें रोजाना पानी दिया जाता है. करीब एक सप्ताह में इनमें अंकूर फूट आते हैं और भुजरिया उग आती हैं. भुजरिया पर्व के दिन यही भुजरिया एक-दूसरे को बांटी जाती हैं और बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लिया जाता है. इन भुजरियों की पूजा भी की जाती है ताकि इस साल अच्छी बारिश हो और फसल हो सके.
भुजरियों की पूजा का महत्व
इन भुजरियों की पूजा अर्चना की जाती है एवं कामना की जाती है, कि इस साल बारिश बेहतर हो जिससे अच्छी फसल मिल सकें. ये भुजरिया चार से छह इंच की होती हैं और नई फसल की प्रतीक होती हैं. भुजरिया को लेकर पौराणिक कथा है कि राजा आल्हा ऊदल की बहन चंदा से जुड़ी है. आल्हा की बहन चंदा जब सावन महीने में नगर आई तो लोगों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था. तब से ही यह परंपरा चली आ रही है. इसके अलावा
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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