Chhath Puja Vrat Katha: चार दिवसीय आस्था के महापर्व छठ का आज यानी कि 30 अक्टूबर को तीसरा दिन है. इसे बड़ी छठ भी कहा जाता है. आज अस्तचलगामी सूर्य को पानी में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है. आज रातभर जागरण किया जाता है और छठी मइया की कथा सुनी जाती है. ऐसी मान्यता है कि छठी मैया की कथा सुनने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और हर मनोकामना पूरी होती है.


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प्रकृति से हुई उत्पत्ति


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की तो उन्होंने अपने शरीर को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया. दायां भाग पुरुष और बायां भाग प्रकृति कहलाया. प्रकृति के छठे भाग से षष्ठी देवी की उत्पत्ति हुईं. इन्हें देवसेना भी कहा जाता है.


ब्रह्मा जी की मानस पुत्री


छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री माना जाता है. इसके साथ ही वह भगवान सूर्य की भी बहन हैं. हालांकि, इनका नाम षष्ठी मैया है, जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में लोग इन्हें छठी मैया ही कहते हैं. लोग छठ पर भगवान सूर्य के साथ, इनकी पूजा भी करते हैं.


व्रत कथा


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं हुई, जिसके बाद महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को यत्र आहुति के लिए बने प्रसाद को खाने के लिए कहा. प्रसाद ग्रहण करने के बाद प्रियंवद की पत्नी मालिनी को संतान की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था.


मुराद हुई पूरी


प्रियंवद मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और वहां पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे. ऐसी मान्यता है कि उसी समय ब्रह्माजी की मानस पुत्री षष्ठी माता अवतरित हुईं. उन्होंने कहा कि उनकी पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होगी. इसके बाद राजा ने मां के कहे अनुसार ही किया और उनको पुत्र की प्राप्ति हुई. राजा ने जब यह पूजा की, तब कार्तिक शुक्ल षष्ठी का दिन था, तब से यह प्रथा चली आ रही है.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)