Ganga Dussehra Katha: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त नक्षत्र में गंगा जी का स्वर्ग से पृथ्वी पर आगमन हुआ था. इस बार यह तिथि 30 मई मंगलवार को होगी. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने के बाद अन्न, वस्त्र आदि का दान, तप व उपवास किए जाएं तो मनुष्य के दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं.


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कथा


एक बार महाराज सगर ने एक बड़ा यज्ञ किया और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने पौत्र अंशुमान ने संभाली. इंद्र ने यज्ञ में बाधा पहुंचाने के लिए यज्ञ के घोड़े का अपहरण कर लिया. अंशुमान ने साठ हजार प्रजा के साथ उसे ढूंढा पर वह नहीं मिला. पाताल लोक जाने के लिए पृथ्वी को खोदा गया तो उन्होंने देखा की महर्षि कपिल तपस्या कर रहे हैं और यज्ञ का घोड़ा घास चर रहा है. प्रजा उन्हें देख चोर-चोर कहने लगी तो उनकी समाधि भंग हो गई, उन्होंने क्रोध में नेत्र खोले तो सारी प्रजा भस्म हो गयी. 


इन मृत लोगों की मुक्ति के लिए राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने घोर तप किया तो ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए. भगीरथ ने गंगा की मांग की तो उन्होंने कहा पहले पृथ्वी से पूछ लो कि वह गंगा के वेग का भार संभाल पाएगी. अब भगीरथ ने गंगा का भार वहन करने के लिए शिवजी की आराधना की तो वह राजी हो गए. ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा की धारा को छोड़ा तो शिव जी ने धारा को अपनी जटाओं में बांध लिया, जिससे उन्हें रास्ता ही नहीं मिला. अब उन्होंने शिव को अपनी तपस्या से फिर से प्रसन्न किया तो उन्होंने धारा को मुक्त किया और गंगा जी हिमालय की घाटियों से निकल कर मैदान की ओर मुड़ी और उनकी साठ हजार प्रजा को मोक्ष प्राप्त हुआ. यही कारण है जब किसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए कठोर तप किया जाता है तो उसे भगीरथ प्रयास कहते हैं. 


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