Govind Mandir: यूपी के वृंदावन में स्थित थी ये मूर्ति, जानें कैसे पहुंच गई राजस्थान
Govind Mandir: उत्तर प्रदेश के वृंदावन में स्थित यह मूर्ति राजस्थान के जयपुर पहुंच गई. यूपी से राजस्थान जाने की यात्रा इसकी बहुत ही रोचक है. तो चलिए जानते हैं कि आखिर यूपी से राजस्थान कैसे पहुंची ये मूर्ति.
Govind Mandir: श्री राधा गोविंद जी की मूर्ति पहले तो उत्तर प्रदेश के वृंदावन में था लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि यह वहां से जयपुर पहुंच गया. वृंदावन से जयपुर पहुंचने की यह यात्रा काफी आनंददायक है. दरअसल, श्री गोविंदजी की मूर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी जिसको तब के जयपुर के राजा सवाई जय सिंह द्वितीय की ओर से अपने परिवार की देवता यानि कि कुल देवता के रूप में यहां स्थापित किया था.
गौड़िया संप्रदाय का है यह मंदिर
यह मंदिर गौड़िया संप्रदाय का माना जाता है. इसकी उदगम श्री चैतन्य महाप्रभु के द्वारा हुआ है. इतिहास के मुताबिक जब सन 1669 में औरंगजेब ने मथुरा के समस्त मंदिरों को विध्वंस करने का आदेश दिया तो गौड़ीय संप्रदाय के पुजारियों ने रातों-रात इन मूर्तियों को लेकर जयपुर भाग गए. पुजारियों ने एक साथ तीन विग्रहों को लेकर जयपुर चले गए. जिसके बाद तीनों को जयपुर में स्थापित कर दिया गया.
हर दिन होती है सात बार आरती
मंदिर की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक हर दिन सात आरती होती है. सबसे पहले मंगल आरती सुबह 4:30 बजे उसके बाद धूप आरती 7:30 बजे, सुबह 9:30 बजे श्रृंगार आरती, 11 बजे राजभोग आरती होती है. इसके बाद शाम 5:45 बजे ग्वल आरती, शाम 6:45 बजे सांध्य आरती और शयन आरती रात 9:00 बजे की जाती है.
माता से सुनी कहानी के आधार पर बनाई थी मंदिर
भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र और मथुरा के राजा वज्रनाभ ने अपनी माता से कहानी सुनी थी. माता से सुनी कहानी के मुताबिक वज्रभान ने भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप समझते हुए तीन विग्रहों का निर्माण करवा दिया. इनमें से पहला विग्रह है गोविंद देव जी का. जबकि दूसरा है जयपुर के श्री गोपीनाथ जी का. वहीं तीसरा विग्रह है श्री मदन मोहन जी करौली का.
गजनवी के डर से जंगल में रखा गया था विग्रह
शुरुआत में यह तीनों विग्रह मथुरा में स्थापित किए गए थे. लेकिन जब 11वीं शताब्दी मे मोहम्मद गजनवी के आक्रमण के डर से इन विग्रहों को जंगल में छिपा दिया गया. हालांकि 16 वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु की ओर से आदेश मिलने के बाद उनके शिष्यों ने विग्रहों को खोज लिया. जिसके बाद मथुरा-वृंदावन में फिर से स्थापित कर दिया गया. लेकिन बाद में औरंगजेब के डर से इसे जयपुर जाकर स्थापित कर दिया गया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)