Geedarni Temple Mystery: देश का इकलौता शिवधाम, जहां होती है गीदड़ी की पूजा, आखिर क्या है इसके पीछे की गाथा
Geedarni Temple Mystery News: क्या आप जानते हैं कि देश में एक शिवधाम ऐसा भी है, जहां बड़े सम्मान के साथ गीदड़ी की पूजा की जाती है. आखिर इसके पीछे की गाथा क्या है.
Jammu Paramandal Devika River Mystery: काश्यां हि काशते काशी, काशी सर्वप्रकाशिका. ये वैदिक श्लोक बताता है, हमारी परंपरा में दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी काशी का क्या महत्व है. ये श्लोक बताता है, काशी आत्मज्ञान की नगरी है, जिसके प्रकाश से पूरा जग जगमगाता है. हमारी परंपरा में मोक्षप्राप्ति के जो 7 नगर बताए गए हैं, काशी का स्थान उसमें पहला है. इसी परंपरा में छोटी काशी का भी विधान है. पूरे देश में ऐसी कई जगहें हैं, जिन्हें छोटी काशी का दर्जा प्राप्त है. आज की स्पेशल रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे छोटी काशी का कॉन्सेप्ट क्या है. ये रिपोर्ट हमने तैयार की है, जम्मू के परमंडल देवस्थान से, जहां कुछ ऐसे रहस्य आज भी मिलते हैं, जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं.
जम्मू से 40 किमी दूर बसा शिवधाम
उत्तरी हिमालय की तराई में बसा परमंडल देवस्थान, यहां कदम रखते ही आपको एहसास होगा कि हम मां गंगा और शिव की पवित्र नगरी काशी आ गए. जम्मू से करीब 40 किलोमीटर दूर ये शिवधाम, काशी से साढ़े 1200 किलोमीटर सीधा उत्तर में है, लेकिन यहां वो हर निशान मौजूद, जो काशी की पहचान है.
जैसे एक देवस्थान पर शिव के 108 मंदिर, ठीक काशी विश्वनाथ जैसा शिव का चतुर्मुखी शिवलिंग और जमीन से कुछ इंच नीचे बहती गंगा. परमंडल देवस्थान के बारे में ये मान्यता बताती है, कि ये जगह कितनी पवित्र मानी जाती है. इस देवस्थान का रहस्य भी इसकी पवित्रता की निशानियों से जुड़ी है.
शुरुआत करते हैं परमंडल में गंगा की रहस्यमयी धारा से. गंगा के उदगम से 750KM दूर, उलटी दिशा में कहां से आई गंगा? भौगोलिक तथ्य तो यही कहते हैं, मध्य हिमालय के जिस गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा निकलती है, वो दक्षिण और फिर पूरब की तरफ बहती हुई, बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है.
अपने आप में रहस्य समेटे देविका नदी
तो फिर इस पूरे रूट मैप से उल्टी दिशा उत्तर में स्थित परमंडल में गंगा की जलधारा कैसे. देविका नाम की ये नदी अपने आप में एक रहस्य है. परमंडल इलाके में ये दिखती नहीं है. इसलिए इसे गुप्तगंगा कहते हैं. पूरे इलाके में लोग गंगा का पवित्र जल पाने के लिए लोग बस छोटा सा गड्ढा बनाते हैं.
देश के इस उत्तरी इलाके में गुप्त गंगा का ये पवित्र जल हासिल करने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं, इसे लेकर मान्यताएं वही हैं, जैसी मां गंगा और इसके किनारे बसी काशी नगरी को लेकर है. गुप्त गंगा के इस पवित्र जल में हर साल हजारों लोग अस्थि विसर्जन करते हैं, लेकिन जमीन के अंदर प्रवाहित होने के बावजूद अस्थियां कहां जाती हैं, ये पता नहीं चलता.
भूरी रेत से भरी इस पूरी जमीन पर कहीं भी कोई अस्थि, क्या राख जैसी कोई चीज भी नहीं दिखाई देती. ये दृश्य अपने आप में रहस्यमयी है.
परमंडल में ‘गुप्त गंगा’ और अथाह शिवकुंड का रहस्य
गुप्त गंगा का ये रहस्य और गहराता है, जब आप देवस्थान के शिवमंदिर के गर्भगृह के अंदर आते हैं. यहां पर हर दिन सैकड़ो लोग भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं, लेकिन इतना छोटा सा कुंड कभी भरता नहीं. इसका आकार उतना ही रहता है, एक बाल्टी या सौ बाल्टी जितना भी जल चढ़ाए हैं, ये जल यहीं रहता है.
परमंडल इलाके में बहती गुप्तगंगा और 2600 साल पहले इसकी जलधारा में मिला प्रकृतिक शिवलिंग. ये दो ऐसे रहस्य थे, जो अपने आप में चौंकाने वाले थे. तब इस इलाके को अवंतिपुर कहा जाता था. इसी अवंतिपुर के राजा को कभी न भरने और कभी न सूखने वाले इस शिवकुंड का पता चला. लेकिन यहां शिव मंदिर कैसे बना, इसकी कथा भी कम रहस्यमयी नहीं है. परमंडल में छोटी काशी बनाने का ख्याल इसी रहस्य की वजह से राजा के जेहन में आया.
परमंडल शिव मंदिर के पुजारी महेश शर्मा इस कुदरती शिवलिंग का जो रहस्य बताते हैं, वो अवंतिपुर राजपरिवार के दस्तावेजों में दर्ज है. इसके मुताबिक 2600 साल पहले यहां ना तो धरती के नीचे बहती गुप्तगंगा का पता था और ना ही इस जलकुंड के बारे में, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है...
देश का इकलौता मंदिर, जहां होती है गीदड़ी की पूजा
तब ये इलाका जंगलों से घिरा था, इसमें तमाम तरह के जानवर होने की वजह से राजपरिवार के लोग शिकार के लिए आया करते थे. गीदड़ी यहां पानी पीने के लिए रहती थी. अवंतीपुर के राजा रैनी दत्त इधर आये थे, जल पीते हुए गीदड़ी को तीर मारा. गीदड़ी को राजा का तीर गलती से लगा था, उसके बाद राजा चले गए. कथा के मुताबिक गीदड़ी की मौत के बाद राजा इस घटना को तो भूल गए, लेकिन गीदड़ी की मौत के बाद राजा रैनी दत्त के घर बेटी पैदा हुई.
राजा की बेटी जन्म के बाद से ही बीमार रहती थी. राजा ने बीमार बेटी को तमाम वैद्यों और ज्योतिषियों से दिखावाया. किसी पंडित ने कहा कि आपकी कन्या को पाप लगा है, आपने किसी देव स्थान पर किसी जानवर का वध किया है, आप उस स्थान पर जाकर पश्चाताप कीजिए, मंदिर बनवाइए, तब ये जाकर लड़की ठीक होगी.
राजा रैनी दत्त ने गीदड़ी की हत्या के पश्चाताप के लिए ये शिव मंदिर बनवाया. शिव भगवान के साथ देवस्थान परिसर में गीदड़ी की मूर्ति भी बनवाई गई, जिसकी पूजा के बिना परमंडल में मांगी गई मनोकामना पूरी नहीं होती. पूरी दुनिया में ऐसा कोई मंदिर नहीं जहां गीदड़ गीदड़ी की पूजा होती हो, लेकिन उमापति महादेव मंदिर इकलौता है. माना जाता है कि मंदिर निर्माण में गीदड़ी का बड़ा हाथ था.
राजा रैनी दत्त ने मंदिर बनवाने के साथ गीदड़ी की मूर्ति बनवाई. इसके साथ एक शिव ज्योति का भी विधान करवाया. ये शिव मंदिर के ही एक कोने में है. इस अखंड ज्योति का रहस्य ये है कि ये पिछले 2600 साल से लगातार जल रही है. कोई पशु पक्षी किसी की भी आत्मा के लिए तेल चढ़ाया जाता है, 24 घंटे जलती रहती है.
2600 साल पहले गुप्तगंगा का पता चला
गुप्त गंगा के जल में परमंडल के कुदरती शिवलिंग और इस ज्योति की रहस्यमयी रौशनी ने सबका ध्यान खींचा, इसके बाद शुरू हुई इसे छोटी काशी का रूप देने की प्रक्रिया...
2600 साल पहले अवंतिपुर के राजा रैनी दत्त ने रहस्यमयी गुप्तगंगा और प्राकृतिक शिवलिंग के आधार पर शिवमंदिर बनवाया. लेकिन जो तीन चीजें यहां आश्चर्यजनक रूप से मौजूद थी- गंगा, शिवलिंग और काशी से 1250 किमी की दूरी, इन वजहों से एक नए धाम की शुरुआत हुई. काशी विश्वनाथ जैसा परमंडल शिवधाम. ये अपने आप में कोई अनूठा कॉन्सेप्ट नहीं. पूरे देश में गुप्त गंगा और छोटी काशी के कई उदाहरण मौजूद हैं. लेकिन परमंडल के रहस्यों की बात कुछ और थी.
मरणं मंगलम् यंत्र विभुतेश्च विभूषणम्
कौपीनम् यत्र कौशेयम् , सा काशी केन मीयते।
परमंडल पंचायत के पूर्व प्रमुख और शिव मंदिर के पुजारी, जो इस देवस्थान का रहस्य बताते हैं, वो अपने आप में अनूठा है. इसकी शुरुआत होती है, इतिहास के आधुनिक काल से, जब अवंतिपुर कश्मीर राजा के अधीन हो चुका था. परमंडल को काशी बनाने की कवायद इसी दरान शुरू हुई.
छोटी काशी कैसे बन गया परमंडल?
परमंडल के छोटी काशी बनने का सिलसिला दरअसल 20वीं सदी में शुरु होता है, जब गुलाब सिंह कश्मीर के राजा हुआ करते थे. गुलाब सिंह ने ही परमंडल की भौगोलिक स्थिति, गुप्त गंगा और प्राकृतिक शिवलिंग का खाका तैयार कराया और इसे छोटी काशी का रूप दिलवाने के लिए 108 शिव मंदिर बनवाए. हर मंदिर में 11 शिवलिंग, हर शिवलिंग की पूजा का फल मिलता है.
जैसा कि आप इस मंदिर में देख रहे हैं, इसके परिसर में आज भी 11-11 के समूह में 108 शिव मंदिरों की परिकल्पना साफ दिखाई देती है. इसके पीछे वजह है कश्मीर के राजा रणवीर सिंह की शिव भक्ति, जिसकी वजह से उन्हें शिवांश यानी शिव का अंश कहा जाता था...
काशीधाम की परिकल्पना को साकार करने के लिए ही परमंडल में काशी विश्वनाथ की तरह मूर्ति स्थापित की गई. हालांकि काशी से अलग ये देश में कोई पहली परंपरा नहीं. अगर बात करें गुप्त गंगा की तो राजस्थान के रणथंभौर में भी गुप्त गंगा की मान्यता है. इसके अलावा उज्जैन में भी गुप्त गंगा के जल की मान्यता है. इसी तरह छोटी काशी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में भी मानी जाती है. राजस्थान के बीकानेर को भी छोटी काशी के नाम से जाना जाता है. हिमाचल का मंडी जिला भी बड़ी संख्या में मंदिरों की वजह से छोटी काशी कहा जाता है.
यानी मोक्ष नगरी काशी की अवधारणा देश के कई नगरों में जीवित है. ये सिर्फ मान्यताएं नहीं, इसके पीछे कई वजहें रहस्यमयी हैं, जैसे परमंडल का रहस्य. यहां की गुप्त गंगा और कुदरती शिवलिंग की प्राप्ति.