Janeu Sanskar Significance: हिंदू धर्म में जितने भी संस्कार बताए गए हैं, उनमें यज्ञोपवीत संस्कार को उत्तम स्थान दिया गया है. यज्ञोपवीत को ही जनेऊ भी कहा जाता है. इसको द्विज अर्थात दूसरा जन्म भी कहा जाता है. हिंदू धर्म में पैदा होने के बाद इंसान को जनेऊ संस्कार के बाद ही धार्मिक कार्य करने के अधिकार मिलते हैं.


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धार्मिक कार्य


यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार में बुरे संस्कारों का शमन करके अच्छे संस्कारों को स्थायी बनाया जाता है. बिना यज्ञोपवीत संस्कार के इंसान किसी कर्म का अधिकारी नहीं होता है. इस संस्कार के होने के बाद ही बालक को धार्मिक कार्य को करने का अधिकार मिलता है. 


पाप नष्ट


शास्त्रों के मुताबिक, जनेऊ धारण करने के बाद ही इंसान के जाने-अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं. इसको धारण करने से शुद्ध चरित्र और कर्तव्य पालन की प्रेरणा मिलती है. हिंदू धर्म में जनेऊ को बहुत पवित्र माना गया है.


महत्व


जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है, जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहनते हैं. इन तीन धागों को देवऋण,पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है. एक-एक धागे में तीन-तीन तार होते हैं. इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है. ये नौ तार शरीर के नौ द्वार यानी कि मुख, दो नाक के छिद्र, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के माने गए हैं. इसमें लगाई जाने वाली पांच गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई हैं. 


नियम


जनेऊ को मल-मूत्र का त्याग करने से पहले दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथों को धोने के बाद ही कान से उतारना चाहिए. इसका कोई धागा टूट जाए तो बदल लेना चाहिए. जनेऊ को उतारने के बाद नया धारण कर लेना चाहिए.


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)