Why Lord Shri Krishna stop playing flute: आज जन्माष्टमी है यानी सृष्टि के रचयिता भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव. वे भगवान विष्णु के अवतार थे, जिन्होंने धरती से बढ़ते पापों को खत्म करने के लिए जन्म लिया था. भगवान श्रीकृष्ण की बड़ी पहचान उनकी मुरली थी. यह मुरली उनके जन्म के बाद खुद भगवान शिव ने दी थी, जो साधु का भेष बनाकर उनका दर्शन करने गोकुल पहुंचे थे. इसके बाद से मुरली कान्हा जी की आजीवन पहचान बन गई. वे जब भी इस मुरली को बजाते थे तो पूरा गोकुल जहां का तहां ठहर जाता था. केवल इंसान ही नहीं बल्कि गायें और दूसरे पशु-पक्षी भी उनकी मुरली की धुन सुनने के लिए दौड़े चले आते थे. उनके जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन एक बार ऐसी घटना घटी, जिससे भगवान कृष्ण खुद फूट-फूटकर रोने लगे. यह दुख उनके लिए इतना भारी था कि उन्होंने अपनी मुरली तोड़कर फेंक दी और इसके बाद जीवन में कभी भी दूसरी बांसुरी नहीं बजाई. वह घटना क्या थी, यह आज आपको जरूर जाननी चाहिए. 


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बड़े भाई बलदेव के साथ मथुरा चले गए कान्हा जी


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कंस का वध करने के लिए जब श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलदेव के साथ वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए थे. इसके साथ राधा- कृष्ण की जोड़ी हमेशा के लिए बिछड़ गई. श्रीकृष्ण बाद में मथुरा के राजा बने तो राधा जी बरसाने में अकेली रह गईं. बाद में श्रीकृष्ण जी का रुक्मिणी से विवाह हो गया. वहीं राधा का भी अन्य जगह विवाह हो गया. दोनों की गृहस्थी अलग हो चुकी थी लेकिन वे एक दूसरे को कभी भूल नहीं पाए और आजीवन एक-दूसरे को अमिट प्यार करते रहे. असल में भगवान श्रीकृष्ण ने जिस काम के लिए धरती पर अवतार लिया था, उसके लिए राधा जी से उनका दूर होना जरूरी था.


वृद्धावस्था में कान्हा से मिलने द्वारका पहुंचीं राधा जी


इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन का सारथी बनकर सक्रिय रूप से भाग लिया और साथ ही खुद भी कई बड़े अत्याचारियों का अंत किया. जरासंध के बार-बार के हमलों से बचने के लिए वे मथुरा छोड़कर गुजरात के द्वारका चले गए और वहां पर समुद्र किनारे नई नगरी बनाकर अपना राज्य बना लिया. तब तक राधा जी भी वृद्ध हो चुकी थी और नाती-पोतों का विवाह कर चुकी थी लेकिन वे हमेशा श्रीकृष्ण को याद करती रहती थी. उन्होंने जीवन के आखिरी दिनों में अपने प्रिय कान्हा जी के साथ रहने का फैसला किया और वे अलग-अलग तरीके से यात्रा करके द्वारका पहुंच गई.


महल में रहते हुए राधा जी का उचट गया मन


जब श्रीकृष्ण ने इतने बरसों के बाद राधा जी को अपने सामने देखा तो वृद्धावस्था के बावजूद वे उन्हें पहचान गए लेकिन रुक्मिणी साथ में होने की वजह से कुछ नहीं कह पाए. बाद में राधा जी के मन की बात जानकर उन्होंने उन्हें राजमहल में प्रमुख सेविका की जिम्मेदारी दे दी, जिससे वे रोजाना उनके दर्शन कर सकें. राधा जी कई दिनों तक राजमहल में रहीं लेकिन फिर उनका मन उचट गया. असल में उन्होंने अपनी आंखों में भगवान कृष्ण के बाल रूप कान्हा जी की वही सौम्य छवि बसाई हुई थी, जो गोकुल में उनके साथ बिताई थी. लेकिन अब भगवान श्रीकृष्ण राजा थे और उनकी अपनी अलग जिम्मेदारियां थीं. 


वन में जाकर अकेले रहने लगीं राधा रानी


लिहाजा एक दिन राधा जी एक दिन महल से निकली और वन में जाकर रहने लगीं. वहां पर रहते-रहते वे एक दिन गंभीर रूप से बीमार हुई. जब वन में गमन कर रहे कुछ लोगों ने उन्हें बीमार हालत में देखकर उनका इलाज करने की कोशिश की तो उन्होंने भगवान कृष्ण को बुलाने कि इच्छा जाहिर की. राधा जी के गंभीर रूप से बीमार होने का पता चलते ही भगवान कृष्ण जब वन में पहुंचे तो राधा जी की दयनीत हालत देखकर भावुक हो गए. उन्होंने राधा जी को हिम्मत दी कि उन्हें कुछ नहीं होगा और अच्छे इलाज के बाद वे जल्द ही ठीक हो जाएंगी.


आखिरी बार भगवान कृष्ण से किया मुरली बजाने का आग्रह


लेकिन राधा जी को अपना अंतिम समय निकट होने का अहसास हो चुका था. लिहाजा उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा कि अब कुछ नहीं होने वाला है. अब गोलोक जाने का समय आ गया है. इसके बाद उन्होंने कान्हा जी से आखिरी बार मुरली बजाने का आग्रह किया. अपनी प्रिय राधा की बात सुनते ही कृष्ण जी ने अपनी कमर से बंधी मुरली निकाले और पूरी तन्मयता से बजाने लगे. मुरली की धुन सुनते-सुनते राधा जी के प्राण पखेरू उड़ गए और उनका सिर कृष्ण जी की गोद में लुढक गया. अपनी प्रिय राधा जी को हमेशा के लिए विदा होते देख भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह टूट गए.


राधा जी के देहांत से टूट गए भगवान श्रीकृष्ण, तोड़ दी मुरली


वे अपनी गोद में राधा जी का पार्थिव शरीर लिए काफी देर तक फूट-फूट कर रोते रहे. उनके साथ आए खास दरबारी और सैनिक भी अपने प्रिय राजा को रोते देख खूब रो रहे थे. इसके बाद राधाजी के देहांत से बुरी तरह दुखी भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी हाथ में ली और कहा कि जिसके लिए मैं बांसुरी बजाया करता था, जब वो ही सुनने वाली नहीं रही तो अब मैं इस मुरली का क्या करूंगा. इसके साथ ही उन्होंने मुरली दो हिस्सों में तोड़कर फेंक दी. इसके बाद दुनिया ने कभी भगवान कृष्ण जी को फिर कभी बांसुरी बजाते नहीं देखा. कान्हा जी को बांसुरी बेहद प्रिय थी लेकिन अपनी राधा के लिए उनका प्रेम इससे भी कहीं ज्यादा था, इसलिए जब राधा जी चली गईं तो उन्होंने वियोग में फिर कभी बांसुरी 
भी नहीं बजाई.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)