Kalpvas Date in Mahakumbh 2025: प्रयागराज के संगम तट पर 13 जनवरी से महाकुंभ के महापर्व का शुरुआत हो जाएगा. ऐसे में संगम की रेती पर तमाम धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे. यहां पर कल्पवास का एक ऐसा अनुष्ठान भी होगा, जो कई मायनों में ख़ास है. कल्पवास की शुरुआत माघ मास यानी पौष पूर्णिमा पर्व से माघी पूर्णिमा तक चलेगा. जहां सांसारिक मोह माया त्याग कर श्रद्धालु अपने पापों की मुक्ति के लिए एक माह का कठिन कल्पवास करेंगे.


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तंबुओं में रहकर मां गंगा की आराधना


गंगा किनारे तंबुओं में रहकर श्रद्धालू मां गंगा की उपासना करते हुए कल्पवास करेंगे. तीर्थपूरोहित प्रदीप पंडा ने बताया कि सनातन धर्म के ग्रंथों में इस बात का वर्णन है कि माघ मास में प्रयागराज की धरती पर देवताओं का वास होता है. इसी वजह से यहां माघ मास में कल्पवास का विधान है. ऐसी भी मान्यता है कि कल्पवास करने से घर परिवार में सुख शांति के साथ ही इस जन्म मृत्यु के बंधन से व्यक्ति को मुक्ति मिल जाती है. मोक्ष पाने की कामना से भी श्रद्धालु कल्पवास करते हैं.


देश के कई राज्यों से पहुंचते हैं श्रद्धालु


संगम के किनारे गंगा की रेती पर लगने वाले कुंभ, महाकुंभ और प्रत्येक साल लगने वाले माघ मेले में कल्पवास करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह भी मान्यता है कि प्रयागराज में कल्पवास करने से परिवार पर मां गंगा का आशीर्वाद बना रहता है, जिससे घर में सुख शांति का वास होता है और मां के भक्तों को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है. यही वजह है कि प्रयागराज के महाकुंभ और माघ मेले में देश के कई राज्यों से आकर हर साल हजारों परिवार कल्पवास करते हैं.


तीर्थ पुरोहितों के यहां होता है इंतजाम


कल्पवासियों के ठहरने का इंतजाम संगम तट के तीर्थ पुरोहितों के यहां होता है. तीर्थपुरोहितों के शिविर में रहकर कल्पवासी नियमित तीन समय का स्नान करके दान पुण्य व अन्य धार्मिक कर्म करते हैं. आम तौर पर देखा जाता है कि साधु संतों के यहां भी श्रद्धालु कल्पवास करते हैं. लेकिन धार्मिक मान्यता और परंपरा के अनुसार तीर्थपुरोहितों के यहां ही कल्पवास करने का विधान है. तीर्थपुरोहितों और कल्पवासियों का रिश्ता पारिवारिक माना जाता है. लोग अपने वृद्ध माता पिता को कल्पवास के लिए त्रिटज्पुरोहितों के शिविर में छोड़ देते हैं. 


12 साल में पूर्ण हो जाता है कल्पवास


पूरे माघ मास तक विधि विधान के साथ पूजन अर्चन के बाद कल्पवास की समाप्ति पर पुरोहित को दान भी दिए जाने की परम्परा है. पुरोहितों के मुताबिक आम तौर पर कल्पवास की शुरुआत लोग महाकुंभ से करते हैं, जो अगले यानी 12 साल बाद लगने वाले महाकुंभ में पूर्ण हो जाता है. कुछ लोग 6 साल का भी कल्पवास करते हैं. 


महज एक समय करना होता है भोजन


कल्पवासियों को महज एक समय भोजन करना होता है. प्रातः ब्रह्ममुहुर्त के साथ तीन समय नग्न पैर गंगा जी के स्नान के लिए पैदल जाने की मान्यता है. इसके साथ ही जमीन पर घास फूस पर सोने का विधान है. नित्य भजन कीर्तन भी कल्पवासियों को करना होता है. इसके साथ ही दान पुण्य का भी विधान है.