Ram Hanuman Katha: भगवान हनुमान अयोध्यापति दशरथ नंदन श्री राम के अनन्य भक्त हैं. त्रेतायुग में स्वयं नारायण ने पृथ्वीलोक पर रावण सहित अनेकों बलशाली राक्षसों के वध और मर्यादा की स्थापना के लिए राम के रूप में मानव अवतार लिया था. तब भगवान शिव के अंश ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया था. परमभक्‍त हनुमान के प्रभु राम से मिलन की कथा तो अधिकांश लोग जानते हैं. लेकिन एक समय ऐसा भी आया था, जब प्रभु राम ने हनुमान जी को खुद से दूर कर दिया था और इस लीला के पीछे एक खास वजह थी.    


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कालदेव नहीं आ सकते थे करीब 


पौराणिक कथाओं के अनुसार अयोध्या में महाराजा दशरथ के बड़े पुत्र के रूप में अवतार लेने वाले श्री राम ने जब पृथ्वी लोक की लीला पूरी कर ली, तो मृत्यु के स्वामी कालदेव का समय आ गया. किंतु प्रभु जानते थे, कि जब तक हनुमान जी उनके पास में हैं कालदेव भी उनके पास नहीं आ सकते. इस पर प्रभु राम को हनुमान को अपने पास से दूर भेजने के लिए एक युति अपनानी पड़ी. 


हनुमान को भेजा अंगूठी लेने 


प्रभु राम ने हनुमान जी को खुद से दूर करने की एक योजना बनाई और जानबूझकर अपनी अंगूठी सरयू नदी में गिरा दी और हनुमान जी से कहा कि वे सीता की आखिरी निशानी को ढूंढकर ले आएं. आदेश मिलते ही हनुमान जी सरयू में कूद गए और अंगूठी की खोज करते हुए नागलोक जा पहुंचे. वहां पर शिव जी के गले की शोभा बढ़ाने वाले नागराज वासुकि हनुमान जी को देख कर मुस्कुराए और नागलोक आने का कारण पूछा तो उन्होंने पूरी कहानी बता दी. इस पर उन्होंने एक तरफ इशारा करते हुए कहा कि उधर कई अंगूठी पड़ीं हैं, आप स्वयं ही ढूंढ लें. हनुमान जी ने पहली अंगूठी उठाई जिस पर श्री राम का नाम लिखा था. इसके बाद वह जो भी अंगूठी उठाते हर किसी पर श्री राम का नाम ही लिखा था.


हर अंगूठी पर लिखा था 'श्री राम'


हनुमान जी यह देख कर आश्चर्य में पड़ गए कि सभी अंगूठियों पर श्री राम लिखा है. तभी हंसते हुए वासुकि ने उनसे पूछा कि क्या बात है हनुमान, आपको अंगूठी मिल गयी. इस पर हनुमान जी ने अपनी दुविधा बताई कि हर अंगूठी में प्रभु का नाम लिखा है. इस पर नागराज ने समझाया कि अब तक श्री राम कई बार अवतार ले चुके हैं और यहां की सारी ही अंगुठियां उनकी हैं. बुद्धि दाता रुद्रावतार हनुमान जी को सारी बात समझने में देर न लगी कि यह सब श्री राम ने उन्हें अपने से दूर करने के लिए किया है. ताकि वह अपनी लीला पूर्ण कर बैकुंठ लोक में जा सके. इसके बाद हनुमान जी ने भी वापस अयोध्या पहुंचने का इरादा त्याग दिया.